150 Years of Vande Mataram: जानिए कैसे इस गीत ने जगाई थी आज़ादी की आग!

150 Years of Vande Mataram भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 साल पूरे। जानिए बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय से लेकर आज़ादी आंदोलन तक इस गीत की प्रेरक कहानी।

150 Years of Vande Mataram: जानिए कैसे इस गीत ने जगाई थी आज़ादी की आग!

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    150 Years of Vande Mataram: देश आज अपने राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने का ऐतिहासिक अवसर मना रहा है। यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा, भारतीय एकता का प्रतीक और मातृभूमि के सम्मान का संदेश है। 7 नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखे गए इस गीत ने लाखों भारतीयों को आज़ादी की राह पर प्रेरित किया था। आज, डेढ़ सदी बाद भी, यह गीत हर भारतीय के दिल में उसी श्रद्धा के साथ गूंजता है।

     

    ‘आनंदमठ’ से उठी भारत माता की आवाज

    1875 में पहली बार बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित और 1882 में उपन्यास आनंदमठ में शामिल हुआ ‘वंदे मातरम’ भारतीय चेतना का आधार बन गया। बंकिमचंद्र ने इसमें ‘मां भारती’ को तीन रूपों में दिखाया—अतीत की गौरवमयी माता, वर्तमान की पीड़ित माता, और भविष्य की पुनर्जीवित माता। यह भाव भारतीय इतिहास में राष्ट्रप्रेम की सबसे मजबूत नींव बना।
    इस गीत को संगीतबद्ध करने का श्रेय रवींद्रनाथ टैगोर को जाता है, जिन्होंने इसे कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन (1896) में पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया। यहीं से यह कविता आंदोलन की धड़कन बन गई। स्वदेशी आंदोलन में इस गीत की आवाज़ हर कोने में गूंजी यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय अस्मिता की घोषणा थी।

     

    क्रांति की रगों में बहा ‘वंदे मातरम’

    1905 के स्वदेशी आंदोलन में यह गीत राजनीतिक नारा बन गया। कोलकाता से लेकर लाहौर तक सड़कों पर “वंदे मातरम” के जयघोष गूंजते थे। यही वह दौर था जब यह गीत Indian Independence का प्रतीक बन गया।
    विदेशों में भी इस गीत ने भारतीय क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। 1907 में भीकाजी कामा ने जब जर्मनी के स्टुटगार्ट में भारत का तिरंगा फहराया, उस पर यही शब्द लिखे थे “वंदे मातरम”। मदनलाल धींगरा के अंतिम शब्द भी यही थे। यहां तक कि गोपालकृष्ण गोखले का स्वागत दक्षिण अफ्रीका में इसी गीत से हुआ। यह गीत सीमाओं के पार जाकर भारतीयता का प्रतीक बन गया।

     

    जब ‘वंदे मातरम’ बना राष्ट्रगीत

    1950 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा में इसे भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित किया। उन्होंने कहा था “वंदे मातरम ने स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, इसे ‘जन गण मन’ के समान सम्मान दिया जाएगा।” तब से यह गीत Indian History में अमर हो गया।
    आज, इस गीत को स्कूलों, राष्ट्रीय पर्वों और समारोहों में गर्व से गाया जाता है। यह गीत हमें याद दिलाता है कि भारत की शक्ति उसकी एकता और विविधता में है। यह सिर्फ अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है।

     

    150वीं वर्षगांठ पर देशभर में उत्सव

    इस वर्ष, केंद्र सरकार ने वंदे मातरम के 150 वर्ष को भव्य रूप से मनाने का निर्णय लिया है। दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में राष्ट्रीय स्तर पर समारोह आयोजित होगा। देशभर में India Celebration के तहत जिला और तहसील स्तर पर विशेष कार्यक्रम होंगे।
    डाक टिकट, स्मारक सिक्का, और वंदे मातरम पर आधारित प्रदर्शनी जारी की जाएगी। विदेशों में भी भारत के दूतावासों में “Vande Mataram Salute to Mother Earth” थीम पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और वृक्षारोपण अभियान होंगे। यह अभियान नई पीढ़ी को यह संदेश देगा कि मातृभूमि का सम्मान ही सच्ची देशभक्ति है।

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