भारत में चुनाव प्रणाली को समय-समय पर बदलने और सुधारने की कई चर्चाएं होती रही हैं। अब संसद की स्थायी समिति ने एक अहम सुझाव दिया है कि संसद और विधानमंडल के चुनाव लड़ने की न्यूनतम उम्र को 25 साल से घटाकर 21 साल कर दिया जाए। इस सिफारिश के बाद पूरे देश में बहस छिड़ गई है कि क्या वास्तव में ऐसा होना चाहिए और इससे राजनीति पर क्या असर पड़ेगा। चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति साफ कर दी है और कहा है कि वर्तमान में वह ऐसी किसी सिफारिश के पक्ष में नहीं है।
संसद की समिति ने घटाने की रखी सिफारिश, युवाओं के लिए बड़ी उम्मीद
संसद की स्थायी समिति का मानना है कि युवाओं को राजनीति में आगे आने का अवसर देना बहुत जरूरी है। आज की पीढ़ी तेजी से बदलती सोच और विचार के साथ समाज में योगदान देना चाहती है। समिति के अनुसार अगर चुनाव लड़ने की उम्र 21 साल कर दी जाती है, तो देश के करीब 8 करोड़ नए युवा सीधे तौर पर लोकतंत्र में उम्मीदवार बनकर हिस्सा ले सकेंगे। इससे युवाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ेगी और उनके विचार जनप्रतिनिधित्व में भी झलकेंगे।
चुनाव आयोग का रुख साफ, अभी 25 साल की न्यूनतम सीमा कायम
हालांकि, इस पर चुनाव आयोग का नजरिया बिल्कुल अलग है। चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि वर्तमान कानून में जो न्यूनतम आयु 25 साल तय की गई है, उसे बदलने का कोई तर्कसंगत कारण नहीं है। आयोग का कहना है कि राजनीति सिर्फ उत्साह से नहीं चलती, इसके लिए अनुभव और गंभीरता की भी आवश्यकता होती है। 21 साल की आयु में बहुत से युवा अभी पढ़ाई कर रहे होते हैं और जीवन को लेकर फैसले लेना शुरू ही कर पा रहे होते हैं। ऐसे में आयोग को लगता है कि संसद और विधानमंडल जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों में प्रतिनिधि बनने के लिए 25 साल की उम्र आवश्यक है।
विशेषज्ञों की राय में क्यों है उमर घटाने की गुंजाइश
देश के कई राजनीतिक विश्लेषकों और विशेषज्ञों का मानना है कि लोकतंत्र में युवाओं की अधिक भागीदारी हमेशा से एक सकारात्मक कदम रहा है। उनका कहना है कि चुनाव लड़ने की उम्र 21 साल करने से राजनीति अधिक जमीनी स्तर पर युवाओं की जरूरतों और उनके मुद्दों को समझ पाएगी। इसके अलावा, आज के युवा टेक्नोलॉजी और नए विचारों में काफी आगे हैं, ऐसे में उन्हें मौका देने से नीतियों में नयापन आएगा। हालांकि, यह भी सच है कि अनुभव की भूमिका राजनीति में हमेशा एक अहम स्थान रखती है। इसलिए कुछ विशेषज्ञ संतुलन बनाए रखने की ओर भी ध्यान दिलाते हैं।
देशभर के युवाओं पर पड़ेगा सीधा असर, खुल सकते हैं राजनीति के नए रास्ते
अगर संसद की स्थायी समिति की यह सिफारिश मान ली जाती है तो इसका सीधा असर देश के लाखों विद्यार्थियों और युवाओं पर होगा। अभी तक जहां कोई छात्र या युवा 25 साल की उम्र से पहले चुनाव का टिकट पाने या उम्मीदवार बनने का सपना नहीं देख सकता था, वहीं 21 साल की आयु में चुनाव लड़ना संभव होगा। यह बदलाव उन युवा नेताओं और छात्र संगठनों के लिए बड़ी खबर साबित हो सकती है, जो राजनीति में जल्दी कदम रखना चाहते हैं।
2023 में भी आई थी ऐसी सिफारिश पर चर्चा, लेकिन बनी नहीं सहमति
यह पहली बार नहीं है जब इस मुद्दे पर बात हो रही हो। साल 2023 में भी ऐसी ही एक सिफारिश आई थी कि चुनाव लड़ने की उम्र घटाई जाए। उस समय भी कई विभागों और हितधारकों से राय मांगी गई थी। लेकिन तब भी कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आ पाया। इस बार एक बार फिर से संसद की स्थायी समिति ने इस विषय को उठाया है और अब भी वही प्रक्रिया अपनाई जाएगी। यानी विभागों और हितधारकों से राय लेकर ही आगे का फैसला होगा।
राजनीति में युवाओं की भूमिका और समाज की सोच
भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में जहां 65 प्रतिशत से ज्यादा आबादी 35 साल से कम उम्र की है, वहां राजनीति में युवाओं की भूमिका का विस्तार होना समय की मांग भी है। कई बार यह सवाल उठता है कि जब 18 साल की उम्र में वोट डालने का अधिकार दिया जाता है, तो फिर प्रतिनिधि बनने का अधिकार 21 साल में क्यों नहीं हो सकता। इस सवाल से युवा वर्ग खुद को जोड़कर देखता है और इसी कारण यह चर्चा और अधिक तेजी से बढ़ रही है।
भविष्य में हो सकता है बड़ा बदलाव लेकिन फिलहाल इंतजार जरूरी
चुनाव आयोग के रुख को देखते हुए साफ है कि अभी यह बदलाव तुरंत लागू नहीं होने वाला। लेकिन यह भी तय है कि संसद की स्थायी समिति के सुझाव और विशेषज्ञों की बहसें इस मुद्दे को लंबे समय तक जिंदा रखेंगी। अगर एक दिन सच में चुनाव लड़ने की उम्र घटकर 21 साल होती है, तो राजनीति का चेहरा काफी हद तक बदल सकता है। तब हमें और ज्यादा युवा नेता संसद और विधानसभाओं में देखने को मिलेंगे जो अपने ही उम्र के युवाओं के मुद्दों को उठाएंगे।
युवा राजनीति में बदलाव के प्रतीक हो सकते हैं
इस समय भारत बड़ी राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों से गुजर रहा है। ऐसे दौर में अगर युवा वर्ग को संसद और विधानसभाओं में शामिल किया जाता है, तो नए दृष्टिकोण और ऊर्जा से लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी। हालांकि, अनुभव और परिपक्वता जैसी बातें भी महत्वपूर्ण हैं जिनके बिना नेतृत्व अधूरा लग सकता है। इसलिए जरूरी है कि सरकार और आयोग सभी पहलुओं को संतुलित करके ही कोई निर्णय लें।