नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी माँ के अलग-अलग रूप की पूजा और आराधना के लिए समर्पित होता है। 28 सितंबर 2025, रविवार के दिन शारदीय नवरात्र का छठा दिन है। हालांकि तिथियों के दोहराव की वजह से इसे नवरात्र का सातवां दिन भी माना जाता है। इस दिन की पूजा माँ दुर्गा के छठे स्वरूप माँ कात्यायनी को समर्पित होती है।
माँ कात्यायनी को विशेष रूप से युद्ध, साहस, शक्ति और विजय की देवी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन उनकी आराधना करने से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं, विवाह में आ रही रुकावटें समाप्त होती हैं और शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।
माँ कात्यायनी का स्वरूप
माँ कात्यायनी का रूप अत्यंत तेजस्वी और दिव्य बताया गया है।
उनके चार भुजाएँ हैं।
दाहिने हाथ में वरमुद्रा और अभयमुद्रा रहती है।
बाएँ हाथ में कमल पुष्प और तलवार धारण किए हुए हैं।
उनका वाहन सिंह है, जो साहस और निर्भीकता का प्रतीक है।
माँ कात्यायनी का शुभ रंग
नवरात्रि के छठे दिन का शुभ रंग ग्रे (स्लेटी) माना गया है। भक्त इस दिन इसी रंग के वस्त्र धारण करके देवी को प्रसन्न कर सकते हैं।
माँ कात्यायनी की कथा
प्राचीन काल में महर्षि कात्यायन ने हिमालय पर कठोर तपस्या की और देवी से अपनी पुत्री के रूप में अवतार लेने की प्रार्थना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने वचन दिया और उनके घर में पुत्री रूप में प्रकट हुईं।
उसी समय असुरराज महिषासुर को ब्रह्माजी से ऐसा वरदान मिला था कि देवता, दानव या कोई पुरुष उसका वध नहीं कर सकता। इस वरदान के बल पर उसने तीनों लोकों में अत्याचार मचाया और देवताओं को पराजित कर दिया।
देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा के तेज से माँ कात्यायनी का प्राकट्य हुआ। सभी देवताओं ने उन्हें अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र भेंट किए। देवी ने सिंह पर सवार होकर महिषासुर का सामना किया। नौ दिनों तक चला भीषण युद्ध दसवें दिन समाप्त हुआ, जब माँ ने त्रिशूल से महिषासुर का वध किया। इसी कारण उन्हें महिषासुरमर्दिनी कहा जाता है।
माँ कात्यायनी का मंत्र
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
माँ कात्यायनी की आरती
जय कात्यायनी माता, जय महाशक्ति माता।
जो भी नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥
सिंह सवारी भवानी, हाथ खड्ग करणी।
जगमाता जगदम्बे, दुःख हरनी सुखकरनी॥
कात्यायनी अम्बे, जय कात्यायनी अम्बे।
मंगल करणी अम्बे, दुःख हरणी अम्बे॥
आरती कात्यायनी की जो कोई नर गावे।
मनवांछित फल पावे, सुख-संपत्ति पावे॥