राजस्थान के सिरोही जिले के आबू रोड ब्लॉक का निचलागढ़ गांव इन दिनों चर्चा में है। यहां एक 70 साल की बीमार दादी को उनका पोता अपनी पीठ पर बैठाकर लगभग एक किलोमीटर का लंबा, उबड़-खाबड़ और पथरीला रास्ता तय करता है। पहली नज़र में यह दृश्य किसी फिल्म का हिस्सा लगता है, लेकिन यह गांव की सच्चाई है। इस दृश्य ने हर किसी का दिल जीत लिया और आंखों को नम कर दिया।
कच्चे पथरीले रास्ते पर संघर्ष और पोते का बड़ा दिल
गांव का रास्ता इतना खराब है कि वहां तक गाड़ी या एंबुलेंस पहुंच पाना मुश्किल है। ऐसे हालात में यह दसवीं कक्षा में पढ़ने वाला किशोर पोता अपनी बीमार दादी को हर दिन पीठ पर लादकर सड़क तक पहुंचाता है। चाहे धूप हो, बारिश हो या फिर ठंडी हवाएं बह रही हों, पोते का यह संघर्ष गांव वालों के लिए भी हिम्मत और श्रद्धा की मिसाल बन चुका है।
दादी की बीमारी और पोते की मजबूरी
70 साल की दादी काफी लंबे समय से बीमार हैं। उन्हें चलने-फिरने में तकलीफ होती है। डॉक्टर से दिखाने या दवा लेने के लिए उन्हें हर हाल में सड़क तक जाना पड़ता है। लेकिन घर से मुख्य सड़क तक पहुंचने का रास्ता बेहद कठिन है। इस स्थिति में पोता हर बार अपनी दादी को कंधे पर बैठाकर वहां तक ले जाता है। यह नजारा देखकर कोई भी व्यक्ति भावुक हो जाता है।
पोते का प्यार, गांव की सच्चाई और गरीब परिवार की मजबूरी
इस परिवार की आर्थिक हालत भी बेहतर नहीं है। न तो उनके पास पक्के घर की सुविधा है और न ही निजी गाड़ी। ऐसे में दादी को इलाज के लिए ले जाना आसान नहीं होता। लेकिन पोते ने अपनी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया और अपनी दादी को कभी अकेला नहीं छोड़ा। गांव के बुजुर्ग लोग कहते हैं कि आजकल के समय में जहां बड़े-बड़े शहरों में बुजुर्गों को दरकिनार कर दिया जाता है, वहां इस पोते ने सच्चा उदाहरण पेश किया है।
गांव वालों की आंखें भर आईं, हर कोई कर रहा है तारीफ
जब गांव वालों ने पोते को दादी को पीठ पर लादकर ले जाते देखा तो उनकी आंखें भर आईं। हर कोई यही कह रहा था कि इंसानियत अभी भी जिंदा है। बच्चों और युवाओं के लिए यह नजारा सीख जैसा बना कि परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने में कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। इस घटना ने यह भी दिखाया कि परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, सच्चा प्यार और भावनाएं रास्ता बना ही देती हैं।
सरकारी व्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी पर बड़ा सवाल
यह कहानी सिर्फ भावुक कर देने वाली नहीं है बल्कि सरकार और व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है। आजादी के इतने साल बाद भी गांव के लोग अब तक पक्के रास्ते और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं। अगर सही व्यवस्था होती, तो किसी पोते को अपनी दादी को कंधे पर लादकर अस्पताल ले जाने की नौबत न आती। यह तस्वीर गांव की सच्चाई को सामने लाती है कि वहां विकास की कई सुविधाएं अभी भी केवल कागजों तक सीमित हैं।
पोते और दादी के रिश्ते की मिसाल
इस पूरे वाकये में सबसे बड़ा संदेश यही है कि रिश्ते सबसे ऊपर होते हैं। पोते का यह कदम न सिर्फ गांव बल्कि पूरे समाज को यह संदेश देता है कि बुजुर्गों की देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है। जीवन की असली परीक्षा इसी तरह की परिस्थिति में होती है, और इस पोते ने सबको दिखा दिया कि सच्चा प्यार और आदर कैसा होना चाहिए।
भविष्य के लिए उम्मीद और सीख
निचलागढ़ गांव की यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जिन बुजुर्गों ने हमें पाला-पोसा, हमारी खातिर अपने जीवन की कुर्बानियां दीं, उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। पोते की यह कहानी हमें यह भी बताती है कि सच्चे रिश्ते किसी सुविधा या साधन के सहारे नहीं टिके होते, बल्कि दिल से निभाने पर अधिक मजबूत होते हैं।
इस घटना से समाज को क्या मिला संदेश
हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अपने बुजुर्गों का ख्याल रखे। गांव में रहने वाला यह पोता भले ही आर्थिक रूप से कमजोर है, लेकिन उसने अपने कंधों से यह साबित कर दिया कि इंसान कितना भी मजबूर क्यों न हो, अगर दिल में भावनाएं सच्ची हों तो हर मुश्किल रास्ता आसान बन जाता है। यही वजह है कि यह कहानी सिर्फ गांव तक सीमित नहीं रही बल्कि हर जगह दिलों को छू गई।
70 साल की दादी और पोते की संवेदनशील गाथा
निचलागढ़ गांव की यह भावुक कहानी सिर्फ 70 साल की दादी और उनके पोते का संघर्ष ही नहीं दर्शाती, बल्कि यह हमारे समाज की सच्चाई को भी उजागर करती है। एक तरफ यह तस्वीर रिश्तों की गहराई और त्याग का उदाहरण है तो दूसरी ओर यह सरकारी व्यवस्था की कमजोरियों की भी गवाही है। चाहे इंसान कितना भी गरीब क्यों न हो, अगर उसके भीतर इंसानियत और प्यार जिंदा है, तो वह हर कठिनाई का सामना करने के लिए तैयार हो सकता है।