ABVP : की लगातार जीत से बदल रहा है दिल्ली-हैदराबाद के कॉलेज जाने वाले Gen-Z का राजनीतिक मूड

दिल्ली विश्वविद्यालय और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनावों में ABVP ने बड़ी जीत हासिल की है। इससे स्पष्ट होता है कि कॉलेज जाने वाले युवा, यानी Gen-Z, अब राष्ट्रवाद और विकास के एजेंडे को प्राथमिकता दे रहे हैं। NSUI और वामदलों के लंबे समय से चले आ रहे प्रभाव में कमी आई है। यह बदलाव भारतीय छात्र राजनीति में एक नया दौर लेकर आ रहा है जहां युवा नेतृत्व और साफ-सुथरी सोच की मांग बढ़ रही है।

ABVP : की लगातार जीत से बदल रहा है दिल्ली-हैदराबाद के कॉलेज जाने वाले Gen-Z का राजनीतिक मूड

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में जबरदस्त प्रदर्शन किया और अब हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में भी सभी अहम पदों पर कब्जा कर लिया है। वामपंथी संगठन और एनएसयूआई लगातार Gen-Z युवाओं में क्रांति की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन चुनावी नतीजे ने उनकी सारी उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया। इन चुनावों में एबीवीपी ने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, संयुक्त सचिव, खेल सचिव और सांस्कृतिक सचिव समेत सभी प्रमुख पदों पर विपक्षी दलों को पछाड़ दिया है। हैदराबाद में तो वामपंथी गुटों का छह साल पुराना वर्चस्व भी टूट गया। अब इन यूनिवर्सिटियों में पूरी तरह एबीवीपी का दबदबा हो गया है। 81% से ज्यादा छात्रों ने मतदान किया और एबीवीपी को भरपूर समर्थन दिया।
 

छात्र राजनीति का बदलता चेहरा और एबीवीपी का संगठन

छात्रसंघ चुनाव हमेशा से देश की छात्र राजनीति का बैरोमीटर माने जाते रहे हैं। एबीवीपी की इन लगातार जीतों के पीछे संगठन की ताकत सबसे बड़ा कारण है। एबीवीपी छात्र जीवन में हमेशा सक्रिय रहती है, चाहें चुनाव हो या न हो, उनका नेटवर्क पूरे साल चलता रहता है। यही कारण है कि दिल्ली विश्वविद्यालय, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी जैसे अहम संस्थानों में इन्हें छात्रों का समर्थन मिल रहा है।
 

Gen-Z का मूड और बदलाव की वजह

भारत के Gen-Z यानी कॉलेज जाने वाली नई पीढ़ी अब सियासी विचारधाराओं के दबाव से बाहर निकलना चाहती है। सोशल साइंस डिपार्टमेंट जैसे वामपंथी गढ़ों में भी एबीवीपी की जीत बता रही है कि युवा अब केवल विचारधारा या 'क्रांति' की अपील पर नहीं चल रहे, बल्कि रोजगार, प्रगति और राष्ट्रवादी सोच को तवज्जो दे रहे हैं। विपक्षी नेताओं ने हाल ही में नेपाल जैसा छात्र आंदोलन भड़कने की उम्मीद की थी, लेकिन भारत के युवाओं ने बहस और सोशल मीडिया पोस्ट से ज़्यादा वोटिंग में अपनी ताकत दिखा दी है।
 

एबीवीपी की जीत और NSUI, वामदलों का टूटता भरोसा

नेशनल स्टुडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) और वाम दलों के संगठनों ने हैदराबाद में चुनाव स्थगित होने और समिति बनाए जाने को लेकर प्रशासन को आड़े हाथों लिया था। वे ईवीएम, चुनावी प्रक्रिया और संविधान जैसी बातों को उठाते रहे, लेकिन मैदान में जब वोट पड़े तो छात्रों ने एबीवीपी को चुन लिया। दिल्ली विश्वविद्यालय में भी कांग्रेस समर्थित NSUI ने सिर्फ उपाध्यक्ष पद जीत लिया, बाकी सभी अहम पोस्ट एबीवीपी ने ले लिए। इससे यह साफ दिखता है कि युवाओं का भरोसा अब NSUI या वामदलों से हटकर एबीवीपी की तरफ आ गया है।
 

राजनीतिक हलचल और नेताओं के बयान

चुनाव के बाद बीजेपी नेताओं और एबीवीपी के प्रवक्ताओं ने Gen-Z की पसंद को राष्ट्रवादी सोच की जीत बताया है। वहीं विपक्ष के नेता जैसे राहुल गांधी 'Gen-Z क्रांति' की बार-बार बात करते रहे, मगर युवाओं का मूड देश में नेपाल जैसा कोई आंदोलन खड़ा करने का नहीं दिख रहा है। सोशल मीडिया पर भड़काने की बजाय छात्रों ने मतदान बॉक्स में अपनी राय दी और उसी आधार पर भारत में छात्र राजनीति की दिशा बदल रही है।
 

परिणामों का भारतीय राजनीति में असर

छात्रसंघ चुनावों में एबीवीपी की लगातार जीत ने देश की सियासत पर बड़ा असर डाला है। इन चुनाव नतीजों के बूते एबीवीपी, भाजपा और संघ परिवार ने यह साफ संदेश दिया है कि कॉलेज जाने वाली Gen-Z पीढ़ी उन विचारों के साथ है, जो देश में विकास, रोजगार और राष्ट्रवाद की बातें करते हैं। अब विपक्ष अब अपने संगठन और विचारधारा में बदलाव लाएगा या नहीं, यह देखना बाकी है। फिलहाल तो छात्रों ने मतदान के जरिए यह साफ कर दिया है कि उनका भरोसा पुराने नारों और राजनीति में नहीं, बल्कि ठोस काम और भरोसे पर है।
 

क्या आगे फिर बदलेगा छात्रसंघ का माहौल?

यह सवाल बड़ा है कि क्या आगे आने वाले वर्षों में भी एबीवीपी का ही दबदबा रहेगा या विरोधी दल कोई बड़ा परिवर्तन लाएंगे। मौजूदा हालात बताते हैं कि भारतीय Gen-Z अब सोशल मीडिया की क्रांति या विदेशों की तर्ज पर आंदोलनकारी सोच से हटकर अपने जीवन की जरूरतों को देख रहा है। अगर छात्र संगठन रोजगार, पढ़ाई और देशहित के मुद्दों को अड्ग रखते हैं, तो युवा उन्हें जरूर समर्थन देगा। फिलहाल दिल्ली और हैदराबाद दोनों जगह परचम एबीवीपी का ही है, मगर छात्र राजनीति बदलती रहती है, आने वाले दिनों में भी बदलाव की उम्मीद बनी रहेगी।

नतीजों की गूंज, कॉलेज कैंपस में युवा क्या सोच रहे हैं?

कॉलेजों के बाहर और कैंपस में छात्रों की चर्चा है कि 'अब बदलाव आ चुका है'। दिल्ली और हैदराबाद के चुनावों ने दिखाया है कि Gen-Z अब “नारेबाजी” और “आंदोलन” नहीं, बल्कि काम, अच्छे नेतृत्व और भविष्य की ओर देख रहा है। जीत के बाद एबीवीपी ने छात्रों को धन्यवाद कहा और विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। कॉलेज में अब चर्चा राष्ट्रवाद, विकास, और रोजगार की हो रही है, Gen-Z का मूड विपक्ष के लिए सोचने लायक स्थिति में है।

क्या ABVP : की लगातार जीत से बदल रहा है

कुल वोट: 0