Afghanistan : में तालिबान ने इंटरनेट पर लगाया आपातकाल, जानें इसके पीछे की असली वजह?

अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने अचानक से पूरे देश में इंटरनेट सेवा बंद कर दी है। यह फैसला न सिर्फ आम लोगों के लिए परेशानी बना है बल्कि विदेशों में रहने वाले अफगान परिवारों का अपने प्रियजनों से संपर्क टूट गया है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया भी काबुल से अपने संवाददाताओं से बात नहीं कर पा रहा। इस डिजिटल आपातकाल के पीछे की असली वजह क्या है।

Afghanistan : में तालिबान ने इंटरनेट पर लगाया आपातकाल, जानें इसके पीछे की असली वजह?

खबर का सार AI ने दिया · GC Shorts ने रिव्यु किया

    अफगानिस्तान में एक रात में सब कुछ बदल गया। जहाँ पहले लोग अपने मोबाइल फोन से दुनिया भर से बात कर सकते थे, वहीं अब सिर्फ सन्नाटा है। तालिबान सरकार ने बिना किसी पूर्व सूचना के पूरे देश में इंटरनेट सेवा बंद कर दी है। यह फैसला न सिर्फ आम लोगों के लिए परेशानी का कारण बना है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय भी है।

    काबुल से लेकर कंधार तक, हेरात से मजार-ए-शरीफ तक - कहीं भी इंटरनेट की कोई सुविधा नहीं है। लोग अपने स्मार्टफोन को देखकर हैरान हैं कि कैसे अचानक से डिजिटल दुनिया से उनका नाता टूट गया। यह स्थिति अफगानिस्तान के इंटरनेट इमरजेंसी का नाम दे दी गई है।

     

    परिवारों का टूटा रिश्ता

    सबसे दुखदायी बात यह है कि विदेशों में रहने वाले अफगान परिवार अब अपने प्रियजनों से बात नहीं कर सकते। अमेरिका, यूरोप और पड़ोसी देशों में बसे लाखों अफगान शरणार्थी अपने माता-पिता, भाई-बहन और बच्चों से संपर्क खो चुके हैं। जो लोग रोजाना व्हाट्सऐप या फेसबुक के जरिए अपने घर की खुशखबरी सुनते थे, वे अब अंधेरे में हैं।

    पाकिस्तान में रहने वाली फातिमा बीबी का कहना है कि वह तीन दिन से अपने बेटे से बात नहीं कर पाई है। उसे पता नहीं कि उसका परिवार सुरक्षित है या नहीं। यह सिर्फ एक कहानी नहीं है - हजारों परिवारों की यही दुर्दशा है।

     

    मीडिया की आवाज भी दब गई

    दुनिया भर की न्यूज एजेंसियों के काबुल स्थित कार्यालयों से संपर्क टूट गया है। बीबीसी, सीएनएन, रॉयटर्स और अल जजीरा जैसी बड़ी मीडिया कंपनियों के पत्रकार अपने हेडऑफिस से बात नहीं कर पा रहे। यह स्थिति मीडिया की स्वतंत्रता पर एक और हमला है।

    स्थानीय अफगान पत्रकारों की हालत और भी खराब है। वे न तो अपनी खबरें भेज सकते हैं और न ही बाहरी दुनिया से जानकारी ले सकते हैं। समाचार की दुनिया में जैसे एक काला पर्दा गिर गया हो।

     

    तकनीकी रूप से कैसे संभव हुआ यह इंटरनेट बंदी

    अफगानिस्तान में इंटरनेट सेवा मुख्यतः कुछ बड़ी कंपनियों के हाथ में है। तालिबान प्रशासन ने इन सभी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों को आदेश दिया कि वे तुरंत अपनी सेवा बंद कर दें। चूंकि ये कंपनियां सरकारी नियंत्रण में हैं, उन्होंने इस आदेश का पालन करने में कोई देरी नहीं की।

    मोबाइल टावरों को बंद कर दिया गया और फाइबर ऑप्टिक केबलों में सिग्नल रोक दिया गया। यहाँ तक कि सैटेलाइट इंटरनेट की सुविधा भी काम नहीं कर रही। यह दिखाता है कि यह कोई तकनीकी गड़बड़ी नहीं बल्कि सोची-समझी रणनीति है।

     

    व्यापार और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रहार

    इंटरनेट बंद होने से अफगानिस्तान की वैसे ही कमजोर अर्थव्यवस्था को और भारी नुकसान हुआ है। बैंकिंग सेवाएं ठप हो गई हैं, ऑनलाइन व्यापार रुक गया है और छोटे व्यापारी अपने ग्राहकों से संपर्क नहीं कर सकते।

    काबुल के बाजारों में सन्नाटा छा गया है। जो दुकानदार पहले ऑनलाइन ऑर्डर लेते थे, अब वे सिर्फ स्थानीय ग्राहकों पर निर्भर हैं। डिजिटल पेमेंट सिस्टम बंद होने से नकदी की समस्या और भी बढ़ गई है।

     

    तालिबान के इस फैसले के पीछे की असली वजह

    विशेषज्ञों का मानना है कि तालिबान की इंटरनेट नीति कई कारणों से प्रेरित है। पहला कारण है विपक्षी आवाजों को दबाना। इंटरनेट के जरिए लोग अपनी बात दुनिया तक पहुंचा सकते थे, जो तालिबान को पसंद नहीं था।

    दूसरा कारण है महिलाओं की शिक्षा और कामकाज पर नियंत्रण। कई महिलाएं घर बैठकर ऑनलाइन काम करती थीं या पढ़ाई करती थीं। इंटरनेट बंद करके उन्होंने इस संभावना को भी खत्म कर दिया।

    तीसरा और शायद सबसे महत्वपूर्ण कारण है बाहरी प्रभाव से बचना। तालिबान नहीं चाहता कि अफगान लोग बाहरी दुनिया के विचारों से प्रभावित हों।

     

    अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया

    संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने इस कदम की कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि इंटरनेट तक पहुंच एक बुनियादी मानव अधिकार है। यूरोपीय संघ ने चेतावनी दी है कि यह कदम अफगानिस्तान को और भी अलग-थलग कर देगा।

    अमेरिका और भारत जैसे देशों ने भी इस फैसले पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यह कदम अफगान लोगों के मूल अधिकारों का हनन है।

    हालांकि, अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के पास सीमित विकल्प हैं क्योंकि अफगानिस्तान पहले से ही आर्थिक प्रतिबंधों के दायरे में है।

    यह डिजिटल आपातकाल दिखाता है कि आज के युग में इंटरनेट कितना महत्वपूर्ण है। जब यह सुविधा छीन ली जाती है, तो एक पूरा देश अंधेरे में चला जाता है। अफगानिस्तान की यह स्थिति दुनिया भर के लिए एक चेतावनी है कि डिजिटल अधिकार कितने नाजुक हैं।

    अफगानिस्तान में इंटरनेट बंदी का असली कारण क्या है?

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