अहमदाबाद में 9वीं के छात्र ने ली 10वीं के छात्र की जान ,जानिए
अहमदाबाद स्कूल मर्डर केस 9वीं के छात्र ने 10वीं के छात्र की हत्या की, जुवेनाइल एक्ट पर उठे सवाल
गुजरात के अहमदाबाद में एक नामी स्कूल के कैंपस में हुई घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। एक 9वीं कक्षा के छात्र ने मामूली झगड़े के बाद 10वीं कक्षा के छात्र पर चाकू से हमला कर उसकी हत्या कर दी। यह वारदात दर्जनों छात्रों के सामने हुई और बाद में आरोपी ने अपने दोस्त के साथ मोबाइल पर चैट कर इस घटना का जिक्र भी किया।
छोटी बात से बड़ा कत्ल
यह मामला अहमदाबाद के सेवंथ डे स्कूल का है, जहां करीब 2,000 छात्र पढ़ते हैं।एक हफ्ते पहले 9वीं और 10वीं के छात्र में सीढ़ी पर पहले चढ़ने को लेकर झगड़ा हुआ था।मामला भले ही छोटा लग रहा था, लेकिन 9वीं के छात्र के मन में बदले की भावना बैठ गई।19 अगस्त को छुट्टी के बाद उसने अचानक 10वीं के छात्र पर चाकू से हमला कर दिया।हमला इतना अचानक हुआ कि आसपास खड़े छात्र कुछ समझ ही नहीं पाए। पीड़ित छात्र जमीन पर गिर गया, जबकि हमलावर मौके से भाग निकला।
आधे घंटे तक स्कूल कैंपस में पड़ा रहा घायल
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि घायल छात्र करीब आधा घंटा स्कूल कैंपस में पड़ा रहा लेकिन कोई टीचर या स्टाफ उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया।बाद में किसी छात्र ने पीड़ित के परिजनों को खबर दी।परिजन मौके पर पहुंचे और उसे अस्पताल ले गए।देर रात घायल छात्र ने दम तोड़ दिया।
कत्ल के बाद आरोपी की चैट
हत्या के तुरंत बाद आरोपी ने अपने एक दोस्त से मोबाइल चैट की। चैट में उसकी बेफिक्री और आत्मविश्वास साफ दिखाई दिया।
दोस्त: भाई, तुमने चाकू मारा था?
आरोपी: तुझे किसने बोला?
दोस्त: वो मर गया है।
आरोपी: उस आदमी को बोल देना कि मैंने मारा है।
दोस्त: मारना नहीं था, पीट देता।
आरोपी: जो हुआ, सो हुआ।
यह बातचीत पढ़कर किसी को भी यकीन करना मुश्किल हो जाएगा कि यह बातें किसी 15-16 साल के बच्चे ने लिखी हैं, न कि किसी पेशेवर अपराधी ने।
स्कूल और पुलिस पर सवाल
घटना के बाद गुस्साए परिजन और स्थानीय लोग स्कूल में जमा हो गए और जमकर हंगामा किया।
अभिभावकों का आरोप है कि स्कूल प्रशासन लापरवाह रहा।
घायल छात्र को समय पर मदद नहीं मिली, जिससे उसकी जान चली गई।
पुलिस भी देर से सक्रिय हुई और दबाव बनने के बाद आरोपी को हिरासत में लिया।
जुवेनाइल एक्ट पर उठे सवाल
अब पूरा मामला जुवेनाइल जस्टिस एक्ट पर बहस छेड़ रहा है।कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र के अपराधियों को नाबालिग माना जाता है।हत्या जैसे संगीन अपराध के बावजूद अधिकतम सजा 3 साल बाल सुधार गृह में है।विशेषज्ञों का कहना है कि चैट में आरोपी का रवैया बालिग मानसिकता का परिचय देता है।निर्भया केस के बाद भी यह मुद्दा उठ चुका था कि हर नाबालिग को सिर्फ उम्र के आधार पर राहत नहीं मिलनी चाहिए, बल्कि केस-टू-केस उसकी मानसिकता और अपराध की गंभीरता देखनी चाहिए।
अभिभावकों में डर और गुस्सा
इस घटना के बाद माता-पिता में गुस्सा और डर दोनों है। सवाल यह है कि अगर स्कूल के अंदर ही बच्चे सुरक्षित नहीं हैं, तो आखिर उन्हें कहां सुरक्षित रखा जा सकता है?क्या स्कूलों में सुरक्षा जांच व्यवस्था होनी चाहिए?क्या बच्चों की काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया जा रहा?क्या कानून को और सख्त बनाने का समय आ गया है?