Ahmedabad plane crash : में मेरे बेटे को दोषी क्यों कहा गया, 91 साल के पिता ने बताया अपना दुख
अहमदाबाद विमान हादसे ने कई परिवारों को झकझोर दिया, लेकिन 91 साल के उस पिता का दर्द सबसे अलग है, जिनके बेटे कैप्टन सुमित सभरवाल को बिना वजह दोषी ठहराया गया। हादसे के बाद लगातार बेटे की छवि खराब हुई और परिवार को सामाजिक दबाव झेलना पड़ा। पिता का कहना है कि कंपनी को जब क्लीनचिट मिल सकती है तो बेटे को क्यों बदनाम किया गया। उनका केवल यही सपना है कि बेटे का नाम बेदाग रहे।
अहमदाबाद विमान हादसे ने कई घरों को दर्द दिया है, लेकिन 91 साल के उस बुजुर्ग पिता का दुख सबसे अलग दिखाई देता है, जिनके बेटे कैप्टन सुमित सभरवाल को इस मामले में बदनाम किया गया। पिता ने अपने लिखित पत्र में साफ कहा कि हादसे के बाद मीडिया और कई लोग उनके बेटे की छवि को दोषी बताते रहे। इस बात ने न केवल बेटे की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई बल्कि पिता की मानसिक स्थिति और स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डाला। उन्होंने कहा कि इतने लंबे संघर्ष के बाद जब जांच रिपोर्ट में कंपनी को क्लीनचिट मिली, तब सवाल और भी गहरे हो गए कि आखिर उनके बेटे को बदनाम क्यों किया गया। एक पिता की बेबसी तब और गहरी हो जाती है जब वह देखता है कि उसका बेटा अपनी मेहनत और ईमानदारी के बावजूद समाज में संदेह और आलोचना का सामना करता है। यह हादसा केवल तकनीकी गड़बड़ या कंपनी की चूक भर नहीं था, बल्कि उस परिवार के लिए जीवनभर का बोझ बन गया जिसमें सत्य और न्याय की तलाश लगातार जारी रही। समय बीतने के साथ बुजुर्ग पिता का यह दर्द और अधिक गहरा हुआ है।
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कैप्टन सुमित सभरवाल की छवि पर उठे सवाल
हादसे के बाद जिन लोगों ने कैप्टन सुमित सभरवाल को सवालों के घेरे में खड़ा किया, उन्होंने मानो पूरे सच को नज़रअंदाज़ कर दिया। एविएशन विशेषज्ञों की जांच में साफ हुआ कि तकनीकी कारणों और कंपनी से जुड़ी कई जिम्मेदारियों पर गहराई से विचार की जरूरत थी, लेकिन आम जनता के बीच सीधे पायलट पर दोष डालना सबसे आसान रास्ता बना दिया गया। इससे न केवल एक पेशेवर पायलट की प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ बल्कि उनके पूरे परिवार पर मानसिक दबाव भी पड़ा। पिता ने कहा कि उन्होंने अपने बेटे को बचपन से मेहनत करते हुए और अपने पेशे में ईमानदार रहते हुए देखा है। एक पल में उसकी सारी मेहनत को नकारना और उसे ‘हादसे का गुनहगार’ बताना न केवल अन्यायपूर्ण था, बल्कि मानवीय संवेदनाओं के खिलाफ भी रहा। आज जब जांच रिपोर्ट सामने है, तब 91 साल के पिता यह सवाल पूछते हैं कि अगर कंपनी को क्लीनचिट दी जा सकती है तो बेटे की बदनामी का जिम्मेदार कौन होगा।
कंपनी को मिली क्लीनचिट और न्याय पर उठे सवाल
अहमदाबाद विमान हादसा केवल तकनीकी जाँच का हिस्सा नहीं था, बल्कि इसमें कई जीवन जुड़े हुए थे। जब जांच के बाद एयरलाइन कंपनी को क्लीनचिट दी गई तो सवाल और गहरे हो गए। अगर कंपनी की कोई गलती नहीं थी, तो फिर हादसा क्यों हुआ और क्यों उसकी जिम्मेदारी का बोझ एक पायलट के परिवार पर डाल दिया गया? पिता ने अपने पत्र में भी इसी बात पर जोर दिया कि उनकी उम्र जीवन के अंतिम पड़ाव पर है और वे केवल इतना चाहते हैं कि उनके बेटे की सच्चाई सबके सामने आए। वह कहते हैं कि जिस तरह से परिवार ने मानसिक और सामाजिक दबाव झेला, वह किसी भी न्यायिक व्यवस्था में उचित नहीं कहा जा सकता। कंपनी को क्लीनचिट देने से यह सवाल खत्म नहीं हो जाता कि उस हादसे की असली technical वजह क्या थी। आज भी यह परिवार यह जानना चाहता है कि आखिर हादसे की पूरी जिम्मेदारी किस पर डाली जानी चाहिए।
मानसिक और सामाजिक दबाव से टूटा परिवार
हर हादसे से प्रभावित परिवार केवल अपने करीबी को ही नहीं खोता, बल्कि आम तौर पर समाज के उन सवालों से भी जूझता है जिनका कोई आसान जवाब नहीं होता। कैप्टन सुमित सभरवाल के परिवार के साथ भी यही हुआ। हादसे के बाद उनकी छवि पर दाग लग गया और यह दाग केवल मीडिया रिपोर्टिंग और अफवाहों के कारण गहरा होता गया। पिता ने कहा कि लगातार मानसिक दबाव ने उनकी सेहत को नुकसान पहुँचाया। 91 साल की उम्र में उनका संघर्ष केवल इस बात का प्रतीक है कि एक पिता अपने बेटे की सच्चाई और न्याय के लिए कितनी मजबूती से खड़ा रह सकता है। इस पूरे मामले ने दिखाया है कि किसी हादसे के बाद केवल तकनीकी और कागजी जांच ही काफी नहीं होती, बल्कि इंसानियत और संवेदना के साथ पीड़ित परिवारों के मनोबल का भी ख्याल रखा जाना चाहिए।
एक पिता की अंतिम उम्मीद और संदेश
पत्र में जताए गए दर्द से साफ होता है कि 91 साल के इस बुजुर्ग पिता की सबसे बड़ी इच्छा केवल सम्मान और सच्चाई की पहचान है। उन्होंने कहा कि हादसे की वजह से उनके बेटे के नाम को बदनामी मिली और परिवार को समाज में उपेक्षा झेलनी पड़ी। अब जबकि कंपनी को क्लीनचिट दी गई है, तो यह जरूरी है कि कैप्टन सुमित सभरवाल की छवि को भी साफ किया जाए। न्याय केवल अदालत में लिखे फैसलों का नाम नहीं है, बल्कि वह उन परिवारों तक भी पहुंचना चाहिए जिन्हें समाज और मीडिया ने संदेह की नजर से देखा। यह कहानी केवल एक हादसे की नहीं, बल्कि भरोसे, न्याय और संवेदना की भी है। एक पिता का यही कहना है कि वह बुजुर्ग हैं, जीवन का अधिक समय बाकी नहीं है, इसलिए वह अपनी अंतिम साँसें चैन से लेना चाहते हैं और इसके लिए जरूरी है कि उनके बेटे का नाम समाज और इतिहास में साफ-सुथरा दर्ज हो।
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