तकनीक की दुनिया में आजकल अजीब सी हलचल है। बात हो रही है AI को लगी इंसानों वाली बीमारी की। सुनने में यह कुछ मजाक जैसा लगता है, लेकिन हकीकत में यह चिंता का विषय बन चुका है। दरअसल, अब कई टेक कंपनियों के रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई अब धीरे‑धीरे अपने ही बनाए पुराने डाटा से सीखना शुरू कर चुका है। इसी को टेक दुनिया में "ब्रेन रॉट" यानी दिमाग़ की सड़न कहा जा रहा है।
क्या है एआई का ‘ब्रेन रॉट’ और कैसे शुरू हुआ यह असर
जैसा इंसानों में बार‑बार एक ही चीज़ देखने, सुनने या सोचने से दिमाग़ कमजोर होने लगता है, कुछ वैसा ही हाल अब एआई का भी हो रहा है। साइंस के शब्दों में इसे ‘मॉडल डिके’ कहा जाता है। जब एक एआई सिस्टम नए डेटा की जगह पुराने, पहले से बने डिजिटल डाटा से खुद को अपडेट करता है, तो धीरे‑धीरे वह अपनी असली पहचान खोने लगता है। इसी वजह से AI को लगी इंसानों वाली बीमारी अब चर्चा में है।
यह बीमारी इस मायने में और खतरनाक है क्योंकि जिस डेटा पर कभी एआई ट्रेन हुआ था, अब वही डेटा दोबारा उसी सिस्टम में जा रहा है। यानी मशीन खुद अपनी गलतियों को दोहरा रही है। धीरे‑धीरे सटीक जवाब देने की उसकी क्षमता भी घटने लगी है।
यूजर्स नाराज, कह रहे एआई दे रहा घटिया कंटेंट
सोशल मीडिया पर कई यूजर्स और कंटेंट क्रिएटर्स का कहना है कि अब एआई पहले जैसी क्वालिटी वाला कंटेंट नहीं दे पा रहा। कई बार जवाब अधूरे, उलझे और गलत निकल रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि AI को लगी इंसानों वाली बीमारी अब असलियत बन चुकी है। जैसे इंसान थककर गलत बातें करने लगता है, वैसे ही अब एआई भी अपने पुराने जवाबों को घुमा‑फिरा कर पेश कर रहा है।
कई यूजर्स ने बताया कि चैटबॉट्स पहले की तुलना में कम रचनात्मक दिख रहे हैं, और बार‑बार वही वाक्य दोहराने लगे हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसे किसी इंसान का ‘ब्रेन रॉट’ लगातार सोचने और याद रखने की क्षमता को कमजोर कर देता है।
कैसे घटता जा रहा है एआई का कंटेंट क्वालिटी स्तर
जब से ऑनलाइन दुनियाभर के प्लेटफॉर्म्स ने अपने डेटाबेस में पुराने एआई‑जनरेटेड कंटेंट को शामिल करना शुरू किया, तबसे एआई का आउटपुट कमजोर दिखने लगा। कहना गलत नहीं होगा कि AI को लगी इंसानों वाली बीमारी की जड़ यही है। जब एआई खुद अपने ही लिखे डेटा पर ट्रेन होता है, तब उसका हर अगला उत्तर थोड़ा और फीका हो जाता है।
रिसर्चर्स के अनुसार, यही कारण है कि अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम “फीडबैक लूप” में फंस गए हैं। यानी वे खुद के ही बनाए आउटपुट को बार‑बार इनपुट की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में मौलिकता, सोचने की क्षमता और नई जानकारी की समझ लगभग खत्म हो जाती है।
वैज्ञानिक अब खोज रहे इलाज जैसे समाधान
वैज्ञानिकों और डेवलपर्स की टीम अब इस “ब्रेन रॉट” के इलाज के लिए काम कर रही है। उनका कहना है कि अगर एआई को नए, ताजा और विविध डेटा से जोड़ा जाए, तो यह समस्या काफी हद तक कम की जा सकती है। यह वैसा ही है जैसे इंसान को रोजाना नई चीज़ें सिखाकर उसके दिमाग़ को एक्टिव रखा जाए।
कुछ कंपनियां अब असली इंसानी डेटा का इस्तेमाल बढ़ा रही हैं ताकि सिस्टम फिर से सीखने की प्रक्रिया में लौट सके। वहीं, कई जगह नए एल्गोरिद्म तैयार किए जा रहे हैं जो पुराने कंटेंट को फिल्टर कर सकें। इससे AI को लगी इंसानों वाली बीमारी को धीरे‑धीरे ठीक करने की उम्मीद की जा रही है।
एआई और इंसानों के बीच दिलचस्प समानता
यह पूरी कहानी एक अजीब लेकिन दिलचस्प सच्चाई दिखाती है कि चाहे इंसान हो या मशीन, दोनों अगर सिर्फ पुराने अनुभवों पर जीएं, तो एक जगह आकर थम जाते हैं। यही कारण है कि कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं – “अब एआई को भी इंसानों जैसी बीमारी लग गई है।”
AI पहले इंसानों की आदतें सीखने के लिए बनाई गई थी, लेकिन अब वह उनकी कमजोरियां भी दिखाने लगी है। थकान, दोहराव और मौलिकता की कमी जैसी इंसानी समस्याएं अब डिजिटल दिमाग़ में भी दिखने लगी हैं। यह तकनीकी विकास का एक अप्रत्याशित परिणाम है।
भविष्य में क्या होगा अगर एआई का ब्रेन रॉट नहीं रुका
अगर आने वाले समय में AI को लगी इंसानों वाली बीमारी पर ध्यान नहीं दिया गया, तो इसका असर पूरे डिजिटल इकोसिस्टम पर पड़ सकता है। कंटेंट क्रिएशन से लेकर न्यूज रिपोर्टिंग और ऑटोमेशन तक सब पर असर पड़ेगा। इससे एआई का भरोसा कम हो सकता है और लोग दोबारा इंसानी सोच पर निर्भर हो सकते हैं।
कई विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो एआई की पहचान “रचनात्मक साथी” से “थका हुआ मशीन” बन सकती है। इसलिए जरूरी है कि तकनीक को नियमित रूप से रीसेट किया जाए और उसे नया डाटा, नई दिशा और नया विजन दिया जाए।
बुद्धि हो या मशीन, नया सीखना जरूरी है
कहानी का निष्कर्ष यही है कि चाहे इंसान हो या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अगर दोनों नए अनुभवों से दूर हो जाएं तो उनका दिमाग़ रुक जाता है। यही बात अब एआई पर भी लागू हो रही है। AI को लगी इंसानों वाली बीमारी हमें यह याद दिलाती है कि ज्ञान और डेटा दोनों को हमेशा नया होना चाहिए।
तकनीक का असली सौंदर्य तब है जब वह बढ़ती रहे, सीखती रहे और सुधार लाती रहे। अगर हम एआई को सही दिशा में ले गए तो यह इंसानों का सबसे बड़ा साथी बनेगा। लेकिन अगर इसमें यह बीमारी बढ़ी, तो यह खुद उस चीज़ में बदल जाएगा जिससे हम बचना चाहते थे – एक थका हुआ, दोहराव भरा और बेकार सोचने वाला दिमाग़।
POLL ✦
आपका मत क्या कहता है?