जब भी कोई 'ताजमहल' नाम सुनता है तो दिमाग में सीधे आगरा का मशहूर स्मारक आता है। लेकिन इस बार चर्चा में जो ताजमहल है, वह आगरा वाला नहीं बल्कि अजमेर के आनासागर झील के किनारे बना ढांचा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसे ढहाने की प्रक्रिया शुरू हुई है। सवाल यह है कि आखिर क्यों इसे गिराना पड़ रहा है और अदालत ने इस पर इतना ऐतराज क्यों जताया?
आनासागर झील के किनारे ताजमहल जैसे ढांचे की शुरुआत और इतिहास
अजमेर की आनासागर झील राजस्थान की एक पुरानी और ऐतिहासिक झील है। यह न सिर्फ पर्यटक स्थल है बल्कि यहां की सुंदरता और शांति लोगों को अपनी ओर खींचती है। इसी झील के किनारे कुछ साल पहले एक निजी संस्थान ने एक विशाल ढांचा खड़ा कर दिया था, जो देखने में आगरा के ताजमहल से काफी मेल खाता था। इसे स्थानीय लोग मजाक में 'अजमेर का ताजमहल' कहने लगे। लेकिन असल में यह एक अनधिकृत निर्माण था, जिसके पास कानूनी अनुमति नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और पर्यावरण को लेकर चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कड़ा ऐतराज जताते हुए साफ कहा कि आनासागर झील और उसके आसपास कोई भी अवैध निर्माण बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अदालत ने राज्य सरकार और प्रशासन से कहा कि झील की प्राकृतिक संरचना, पारिस्थितिकी और जल संरक्षण को किसी भी कीमत पर नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। इसी आदेश के बाद प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए इस ताजमहल जैसे ढांचे को गिराने का काम शुरू किया।
झील की पवित्रता और विरासत को बचाने की बड़ी वजह
आनासागर झील न केवल अजमेर शहर की धरोहर है बल्कि यह यहां के पर्यावरण संतुलन और पानी के संरक्षण का बड़ा स्त्रोत भी है। झील के किनारे निर्माण कार्य से न सिर्फ इसके सौंदर्य को चोट पहुंचती है बल्कि यह जल प्रदूषण और भू-संरचना के लिए भी बड़ा खतरा पैदा करता है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट लगातार यह कहता आया है कि झील के चारों ओर किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं होना चाहिए।
लोगों में नाराजगी और समर्थन की दोहरी तस्वीर
जब अजमेर के इस ताजमहल जैसे निर्माण को तोड़ने की खबर आई तो स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया भी अलग-अलग रही। कुछ लोगों ने कहा कि यह एक आकर्षक जगह थी और सैलानियों के लिए अच्छा स्थल बन सकता था। वहीं दूसरी ओर पर्यावरण प्रेमियों ने राहत की सांस ली कि आखिरकार झील को बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते ऐसी कड़ी कार्रवाई न होती तो आने वाले सालों में यह झील गंभीर खतरे में पड़ सकती थी।
क्या सच में यह ताजमहल जैसा दिखता था?
अजमेर के 'ताजमहल' को असल में एक बड़े ढांचे के रूप में बनाया गया था, जिसकी बनावट और गुम्बद आगरा के असली ताजमहल की याद दिलाते थे। इसे देखने वाले लोग हैरान रह जाते और तस्वीरें खींचते। लेकिन असली बात यह थी कि यह न तो कोई ऐतिहासिक धरोहर थी और न ही इसे किसी आधिकारिक स्वीकृति के साथ खड़ा किया गया था।
कानून तोड़ने वालों पर अदालत का सीधा संदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में साफ कर दिया कि चाहे वह कितना भी सुंदर निर्माण क्यों न हो, यदि वह कानून के खिलाफ और प्रकृति के साथ खिलवाड़ है, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। अदालत ने यहां तक कहा कि झील को बचाने के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदारी निभानी होगी। यह एक तरह का संदेश था कि पारिस्थितिकी और पर्यावरण के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
पर्यटन बनाम पर्यावरण, बड़ा सवाल जो हमेशा सामने आता है
ऐसे मामलों में सबसे बड़ा सवाल हमेशा यही होता है कि क्या पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ऐसे निर्माण होने चाहिए या फिर पर्यावरण और मूल विरासत को बचाने के लिए बलिदान देना जरूरी है। अजमेर का यह 'ताजमहल' भले ही लोगों को आकर्षित कर रहा था, लेकिन यह लंबे समय के लिए झील और पर्यावरण के लिए खतरा बन सकता था। यही वजह थी कि अदालत ने बिना किसी समझौते के इसे हटाने का आदेश सुना दिया।
अजमेर का ताजमहल गिरा, लेकिन सीख बड़ी है
इस पूरे प्रकरण से सबसे बड़ी सीख यही है कि किसी भी जगह चाहे वह कितनी ही सुंदर क्यों न हो, यदि वह अवैध है और पर्यावरण के नुकसान का कारण है तो उसे रोका ही जाएगा। अजमेर का यह 'ताजमहल' अब इतिहास बन रहा है, लेकिन इससे लोगों को यह सबक मिलना चाहिए कि प्राकृतिक धरोहरों से छेड़छाड़ करना किसी भी कीमत पर सही नहीं है।
नतीजे में क्या समझना चाहिए
आगरा का मशहूर ताजमहल हमारे देश की शान और दुनिया की धरोहर है, जबकि अजमेर का यह 'ताजमहल' सिर्फ एक अवैध निर्माण था। सुप्रीम कोर्ट का डर और ऐतराज इसीलिए था ताकि आने वाले समय में कोई भी संस्था या व्यक्ति फिर से झीलों, नदियों और पहाड़ों पर कब्जा करने की कोशिश न करे। आज भले ही यह दृश्य अजीब लगे कि ताजमहल जैसा एक ढांचा ढहाया जा रहा है, लेकिन असलियत यही है कि यह फैसला पर्यावरण, जल स्रोतों और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बचाने के लिए जरूरी था।