Bagram Airbase Par Nazar : चीन को साधने की अमेरिकी रणनीति और अफगानिस्तान में वापसी की संभावना

काबुल के पास स्थित बगराम एयरबेस कभी अफगानिस्तान में अमेरिका की ताकत का सबसे बड़ा प्रतीक था। अब चीन की बढ़ती मौजूदगी और तालिबान की सत्ता ने इसे फिर चर्चा में ला दिया है। खबरें हैं कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन इस एयरबेस पर दोबारा कब्जे की रणनीति पर विचार कर सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह अमेरिका के लिए फायदे का सौदा होगा या फिर उसे एक नए संघर्ष और जोखिम में धकेल देगा।

Bagram Airbase Par Nazar : चीन को साधने की अमेरिकी रणनीति और अफगानिस्तान में वापसी की संभावना

अफगानिस्तान के काबुल के पास स्थित बगराम एयरबेस एक बार फिर से सुर्खियों में है। यह वही जगह है जिसे अमेरिका ने दो दशक तक अपने सबसे बड़े सैन्य अड्डे के तौर पर इस्तेमाल किया था। 2021 में अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से हटने के बाद यह बेस तालिबान के कब्जे में चला गया। अब खबरें हैं कि अमेरिका इस एयरबेस पर फिर से वापसी करने की योजना पर विचार कर रहा है। वजह साफ है चीन की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखना।

 

ट्रंप की रणनीति और चीन पर नजर रखने का मकसद

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हमेशा से यह मानना रहा है कि चीन अमेरिका का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी है। अफगानिस्तान में मौजूद बगराम एयरबेस चीन की सीमा से ज्यादा दूर नहीं है। इस बेस से अमेरिकी सेना को चीन और मध्य एशिया की गतिविधियों की निगरानी करने का सीधा फायदा मिल सकता है। यही कारण है कि यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या अमेरिका एक बार फिर अफगानिस्तान की जमीन पर कदम रखने जा रहा है।

 

बगराम एयरबेस का महत्व और इतिहास

अफगानिस्तान युद्ध के दौरान बगराम एयरबेस अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की सबसे अहम सैन्य चौकी रही। यहां से लड़ाकू विमान उड़ते थे, ड्रोन ऑपरेशन चलाए जाते थे और आतंकियों पर निशाना साधा जाता था। इस एयरबेस का इस्तेमाल अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने भी बड़े पैमाने पर किया। यही कारण है कि बगराम सिर्फ एक सैन्य ठिकाना नहीं बल्कि अफगानिस्तान में अमेरिकी मौजूदगी का प्रतीक बन गया था।

Bagram Airbase Par Nazar : चीन को साधने की अमेरिकी रणनीति और अफगानिस्तान में वापसी की संभावना
फाइल फोटो : बगराम एयरबेस का महत्व

क्या अफगानिस्तान में वापसी इतनी आसान है?

हालांकि, सवाल यह है कि क्या अमेरिका इतनी आसानी से अफगानिस्तान में लौट पाएगा? अमेरिकी अधिकारी मानते हैं कि बगराम एयरबेस पर दोबारा कब्जा करना व्यावहारिक नहीं है। इसकी वजह है तालिबान का मजबूत नेटवर्क और इलाके की सुरक्षा में भारी चुनौतियां। अफगानिस्तान में हालात पहले जैसे नहीं हैं। तालिबान सरकार ने पाकिस्तान और चीन से नजदीकी बढ़ा ली है। ऐसे में अमेरिकी सैनिकों की वापसी का मतलब होगा सीधे-सीधे तालिबान और उसके सहयोगियों से टकराव।

Bagram Airbase Par Nazar : चीन को साधने की अमेरिकी रणनीति और अफगानिस्तान में वापसी की संभावना
फाइल फोटो : अफ़ग़ानिस्तान में बगराम एयरबेस

अमेरिका को संभावित फायदे क्या हो सकते हैं?

अगर अमेरिका किसी तरह बगराम एयरबेस पर फिर से नियंत्रण कर लेता है, तो उसे कई रणनीतिक फायदे मिल सकते हैं। सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि चीन की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जा सकेगी। इसके अलावा, अमेरिका मध्य एशिया और ईरान तक भी अपनी सैन्य पकड़ मजबूत कर पाएगा। इससे अमेरिका का प्रभाव एशिया में फिर से बढ़ सकता है और रूस के बढ़ते प्रभाव को भी चुनौती दी जा सकती है।

 

जोखिम और नुकसान भी कम नहीं हैं

लेकिन, यह कदम नुकसान से खाली नहीं होगा। अफगानिस्तान में वापसी का मतलब होगा लंबे समय तक फिर से युद्ध में फंसना। अमेरिकी जनता पहले ही अफगानिस्तान युद्ध से थक चुकी है। आर्थिक बोझ भी कम नहीं होगा क्योंकि बगराम एयरबेस को सुरक्षित रखने के लिए हजारों सैनिकों और अरबों डॉलर की जरूरत होगी। इसके अलावा, तालिबान और आईएस जैसे संगठन फिर से अमेरिका को अपना सीधा दुश्मन मानने लगेंगे। इससे आतंकी हमलों का खतरा और ज्यादा बढ़ जाएगा।

 

चीन और रूस की प्रतिक्रिया कैसी होगी?

अगर अमेरिका अफगानिस्तान में फिर से वापसी करता है, तो चीन और रूस चुप नहीं बैठेंगे। चीन पहले ही अफगानिस्तान में निवेश बढ़ा रहा है और तालिबान से करीबी बना चुका है। रूस भी अफगान राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। ऐसे में अमेरिका की वापसी को ये दोनों देश अपने हितों के खिलाफ मानेंगे और इसका सीधा असर वैश्विक राजनीति पर पड़ेगा।

Bagram Airbase Par Nazar : चीन को साधने की अमेरिकी रणनीति और अफगानिस्तान में वापसी की संभावना
फाइल फोटो : चीनी परमाणु स्थल

 

ट्रंप की सोच और आने वाले चुनावों का असर

डोनाल्ड ट्रंप का हमेशा से कहना रहा है कि अमेरिका को अपनी सुरक्षा खुद सुनिश्चित करनी चाहिए और चीन जैसे देशों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। अगर ट्रंप दोबारा सत्ता में आते हैं तो यह संभव है कि वह बगराम एयरबेस को फिर से सक्रिय करने की कोशिश करें। हालांकि, यह भी सच है कि अमेरिकी प्रशासन के भीतर इस कदम को लेकर एकमत नहीं है। कुछ अधिकारी इसे जोखिम भरा और गैर-ज़रूरी मानते हैं।

 

अफगानिस्तान वापसी का रास्ता मुश्किल

कुल मिलाकर देखा जाए तो अमेरिका के लिए अफगानिस्तान में फिर से पैर जमाना आसान नहीं होगा। फायदे जितने बड़े दिखते हैं, नुकसान भी उतने ही गंभीर हैं। चीन पर नजर रखना अमेरिका की रणनीति का हिस्सा है, लेकिन इसके लिए क्या फिर से अफगानिस्तान का मैदान चुना जाएगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। इतना तय है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा अमेरिकी राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गर्म रहने वाला है।