Bhootdi Amavasya : हड़िया में लगा भूतों का अनोखा मेला, नर्मदा घाट पर उमड़े श्रद्धालु

भूतड़ी अमावस्या पर हड़िया कस्बे में श्रद्धालु मां नर्मदा के घाट पर बड़ी संख्या में एकत्र हुए। इस दिन को Pitru Moksha Amavasya भी कहा जाता है, जहां लोग अपने पितरों की शांति के लिए तर्पण और स्नान करते हैं। साथ ही हड़िया का मशहूर भूतों का मेला भी आकर्षण का केंद्र रहा, जिसमें परंपरागत लोकगीत, नृत्य और धार्मिक मान्यताओं का अद्भुत संगम देखने को मिला। यह आयोजन श्रद्धा और संस्कृति दोनों का मेल है।

Bhootdi Amavasya : हड़िया में लगा भूतों का अनोखा मेला, नर्मदा घाट पर उमड़े श्रद्धालु

भारत की परंपराएं और आस्थाएं अपने आप में अद्भुत हैं। इन परंपराओं के बीच भूतड़ी अमावस्या का त्योहार एक खास पहचान रखता है। इसे Pitru Moksha Amavasya भी कहा जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा-पाठ और तर्पण करते हैं। इस पावन अवसर पर मध्यप्रदेश के हड़िया कस्बे में मां नर्मदा नदी के घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। रातभर पूरे क्षेत्र में आस्था और अद्भुत लोकविश्वास का अद्भुत संगम देखने को मिला।

 

आस्था का पर्व और नर्मदा स्नान

भूतड़ी अमावस्या के मौके पर श्रद्धालुओं का विश्वास होता है कि मां नर्मदा में स्नान करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष मिलता है। इसी वजह से शनिवार रात से ही हजारों लोग हड़िया पहुंचे और नर्मदा नदी के जल में डुबकी लगाई। पूरी रात घाटों पर आस्था का मंजर बना रहा। नर्मदा तट पर घंटियों की ध्वनि, दीपक की लौ और मंत्रोच्चार के बीच वातावरण आध्यात्मिक होता चला गया।

कहा जाता है कि इस दिन नर्मदा स्नान करने से पितरों की आत्मा पवित्र होकर स्वर्गलोक को प्राप्त होती है। बहुत से श्रद्धालु परिवार सहित घाट पर पहुंचे और रातभर पूजा-अर्चना की। महिलाओं ने दीपदान किया और बच्चों ने तट पर मिट्टी के छोटे-छोटे दीप जलाए। नर्मदा का प्रवाह और आस्था दोनों मिलकर एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे।

 

हड़िया का अनोखा भूतों का मेला

भूतड़ी अमावस्या की सबसे अलग पहचान है हड़िया का भूतों का मेला। यह मेला वर्षों से परंपरा के तौर पर लगता आ रहा है। स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक इस दिन आत्माएं मुक्त होकर धरती पर आती हैं। गांव-गांव के लोग यहां इकट्ठा होते हैं और इस अनोखे मेले का हिस्सा बनते हैं।

मेले में ढोल-नगाड़ों के साथ कई तरह के लोकनृत्य और गीत भी होते हैं। ग्रामीण इसे सिर्फ मनोरंजन के रूप में नहीं, बल्कि परंपरा और विश्वास के प्रतीक के रूप में देखते हैं। यहां कई लोग खुद को भूत-प्रेत का रूप देकर सजते हैं और तरह-तरह के हाव-भाव करके लोगों का ध्यान खींचते हैं।

 

Pitru Moksha Amavasya की विशेष पूजा

इस दिन तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व होता है। हड़िया पहुंचे सैकड़ों श्रद्धालुओं ने नदी के किनारे पिंडदान किया। ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार किए और विधि-विधान से पूजा करवाई। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों से आए भक्त तक इस धार्मिक अनुष्ठान में शामिल हुए।

लोग मानते हैं कि पितरों को अन्न और जल अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दिन विशेष रूप से गाय को भोजन कराने और जरूरतमंदों को दान देने की परंपरा भी निभाई जाती है।

 

आस्था और लोकविश्वास का संगम

भूतड़ी अमावस्या केवल धार्मिक अनुष्ठान का दिन नहीं है, बल्कि लोकमान्यताओं और आस्थाओं का संगम भी है। जहां एक ओर नर्मदा स्नान से पितरों को मोक्ष मिलने का विश्वास है, वहीं दूसरी ओर भूतों का मेला सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव की तरह आयोजित होता है।

रातभर नर्मदा घाट पर रंग-बिरंगे दृश्य देखने को मिले। भक्त स्नान करते हुए, दीपदान करते हुए और भजन गाते हुए नजर आए। वहीं दूसरी ओर मेला क्षेत्र में लोक कलाकार अपने परंपरागत रूप में मनोरंजन करते रहे। इस तरह धार्मिक अनुष्ठान के साथ लोकसंस्कृति का सुंदर मेल नजर आया।

 

भूतड़ी अमावस्या की लोककथाएं

ग्रामीण अंचल में कई ऐसी कहानियां प्रचलित हैं जो भूतड़ी अमावस्या को रहस्य और रोमांच से जोड़ती हैं। बुजुर्ग मानते हैं कि इस रात आत्माएं सक्रिय हो जाती हैं और अपने घरों की ओर लौटती हैं। इसी कारण हड़िया में मेले का आयोजन होता है, ताकि इन आत्माओं को सम्मान और शांति मिले।

कई स्थानों पर यह भी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन नर्मदा स्नान करता है और मेले का हिस्सा बनता है, उसके ऊपर नकारात्मक शक्तियों का असर नहीं होता। यही वजह है कि दूरदराज के लोग भी हड़िया पहुंचते हैं और इस परंपरा को निभाते हैं।

 

परंपरा के साथ आधुनिक पीढ़ी की भागीदारी

हालांकि समय बदल रहा है, लेकिन भूतड़ी अमावस्या की आस्था आज भी उतनी ही गहरी है। युवाओं में भी इस आयोजन को देखने और इसका हिस्सा बनने की जिज्ञासा रहती है। बहुत से युवा अपने परिवारों के साथ मेला देखने आए और नर्मदा स्नान करके आध्यात्मिक अनुभव साझा किया।

आज यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक मेलजोल का भी माध्यम बन गया है। लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, पुरानी यादें ताजा करते हैं और लोकनृत्य व गीतों का आनंद उठाते हैं।