पिता की डांट से आहत होकर 7वीं क्लास की छात्रा ने दी जान

भोपाल के ग्लोबल पार्क सिटी में सातवीं क्लास की छात्रा ने कॉपी गुम होने और पिता की डांट से दुखी होकर आत्महत्या कर ली। दो सुसाइड नोट बरामद, समाज को गहरा सबक।

पिता की डांट से आहत होकर 7वीं क्लास की छात्रा ने दी जान

भोपाल में सातवीं की छात्रा ने की आत्महत्या कॉपी गुम होने पर पिता की डांट बनी मौत की वजह

मध्य प्रदेश के भोपाल से एक बेहद दर्दनाक और सोचने पर मजबूर कर देने वाली खबर सामने आई है। कटारा हिल्स थाना क्षेत्र के ग्लोबल पार्क सिटी में सातवीं क्लास की छात्रा ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। वजह? सिर्फ समाजशास्त्र की कॉपी का गुम हो जाना और पिता की हल्की सी डांट।

कैसे हुई घटना?

जानकारी के मुताबिक, छात्रा की समाजशास्त्र की कॉपी गुम हो गई थी। जब पिता को इसका पता चला तो उन्होंने बेटी को डांट दिया। इसी डांट से आहत होकर छात्रा ने बेल्ट और कपड़े का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।तुरंत पुलिस को सूचना दी गई और जब जांच शुरू हुई तो दो सुसाइड नोट बरामद हुए।

सुसाइड नोट में क्या लिखा था?

छात्रा ने अपनी भावनाएं दो अलग-अलग नोट्स में लिखीं –पहला नोट (टिश्यू पेपर पर लिखा)“डोनेट माय बॉडी टू एनीवन हू नीड्स ईट” (मेरी बॉडी किसी जरूरतमंद को दान कर देना)

पिता की डांट से आहत होकर 7वीं क्लास की छात्रा ने दी जान

दूसरा नोट (कॉपी में लिखा)“मेरा रूम और कंप्यूटर समेत सारा सामान दोनों छोटे भाइयों को दे देना।”इन नोट्स से साफ है कि मासूम बच्ची डिप्रेशन और गहरे तनाव में थी।

पिता की डांट से आहत होकर 7वीं क्लास की छात्रा ने दी जान

क्यों करती हैं बच्चे ऐसा कदम?

विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बेहद नाजुक होता है। छोटी-छोटी घटनाएं और शब्द भी उनके आत्मसम्मान पर चोट कर सकते हैं। खासकर जब वे पढ़ाई और जिम्मेदारियों के दबाव में हों।

बच्चों को अक्सर लगता है कि उनकी गलती से परिवार निराश हो जाएगा।कई बार हल्की डांट भी उन्हें अपमानजनक लग सकती है।संवाद की कमी और भावनात्मक सहारा न मिलने पर बच्चे खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं।

माता-पिता और समाज की जिम्मेदारी

यह घटना हमें बड़ा सबक देती है।बच्चों को गलतियों पर डांटने की बजाय प्यार से समझाना चाहिए।बच्चों की भावनाओं को हल्के में नहीं लेना चाहिए।समय-समय पर उनसे खुलकर बात करना और उनका मनोबल बढ़ाना बेहद जरूरी है।पढ़ाई का दबाव कम करके उन्हें संतुलित माहौल देना चाहिए।

आत्महत्या कोई समाधान नहीं

छात्रा ने जिस मासूमियत से अपने शरीर और सामान को बांटने की बात लिखी, वह यह दर्शाता है कि वह खुद को बोझ समझने लगी थी। यह सोचना दुखद है कि एक बच्ची को इतनी कम उम्र में जीवन से हार माननी पड़ी।