72 साल के किसान ने भरा नामांकन, बोले- समस्याओं से तंग आ गया हूं, अब खुद समाधान करूंगा
राजनीति में अक्सर बड़े नेता ही चर्चा में रहते हैं। लेकिन इस बार बात कुछ अलग है। एक 72 साल के किसान ने चौंका दिया। नामांकन के आखिरी दिन उन्होंने दस्तावेज दाखिल किया। बोले, “देख-देख के थक गया हूं, अब खुद ही कुछ बदलना होगा।” उनकी कहानी सीधे खेत-खलिहान से जुड़ी है। उम्र हो गई, पर जज्बा कम नहीं।
एक बुजुर्ग किसान की सोच जो राजनीति में नया रंग लाएगी
रामस्वरथ प्रसाद नाम है उनका। बिहार के चेरिया बरियारपुर से मैदान में उतरे हैं। किसानों की समस्याएं, बेरोजगारी, शिक्षा – ये हैं उनके चुनावी मुद्दे। कहते हैं, “माटी से जुड़ा हूं, हर घर की तकलीफ समझता हूं।” उनकी उम्र ने लोगों को हैरान किया लेकिन उनके इरादों ने सबको प्रभावित। “उम्र मायने नहीं रखती, इरादे मायने रखते हैं,” कहते हैं वे।
नामांकन के साथ दिए वादे और उम्मीदें
नामांकन के बाद रामस्वरथ ने साफ रखा मकसद। शिक्षा मुफ्त होगी। घर-घर रोजगार मिलेगा। किसान उनकी प्राथमिकता। “मेरे गांव में बच्चे स्कूल से घर आने को तंग हैं, मैं यह बदलना चाहता हूं,” उन्होंने कहा। उनका कहना है कि खेती को सम्मान मिलेगा, किसानों को उनका हक दिलाएंगे। इन वादों ने न सिर्फ समर्थकों बल्कि जवानों का भी दिल जीत लिया।
आम आदमी से जुड़ी राजनीति का संदेश
रामस्वरथ केवल स्वयं की लड़ाई नहीं लड़ रहे। उनके शब्दों में जनता की आवाज़ है। “हम सब समस्याओं से हार चुके हैं, अब बदलाव चाहिए।” उनका ये कदम यह साबित करता है कि लोकतंत्र में आवाज़ हर किसी की होनी चाहिए। यह चुनाव केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि आम आदमी के लिए भी है।
किसानों का समर्थन और चुनावी उम्मीद
स्थानीय स्तर पर रामस्वरथ को भरपूर समर्थन मिला है। किसानों, मजदूरों और युवाओं ने उनके नामांकन को उत्सव की तरह मनाया। कई जगहों पर उनके समर्थन में बैठकें हुईं। “यह हम सबकी लड़ाई भी है,” कहते हैं उनके समर्थक। उनका मानना है कि इस बार गरीब और किसान मतदाता खुद की ताकत दिखाएंगे।
राजनीतिक माहौल में रामस्वरथ की उम्मीदें
बिहार के राजनीतिक जानकार भी मान रहे हैं कि रामस्वरथ जैसे चेहरे चुनावी माहौल को बदल सकते हैं। पार्टी से जुड़े हों या निर्दलीय, लेकिन जनता से जुड़ी बातें ही चुनाव की असली ताकत हैं। उनका यह कदम विरोध प्रदर्शन से आगे जाकर चुनाव में बदलाव की दिशा में पहला कदम है।