रंजन पाठक गैंग की साज़िश नाकाम : बिहार चुनाव में दहशत फैलाने की योजना पर चला गोलियों का जवाब
रात का वक्त। दिल्ली का रोहिणी इलाका। सन्नाटा और फिर अचानक गोलियों की गूंज। कुछ मिनटों तक चीखें, फिर सब शांत। यह बस यूँ ही हुई मुठभेड़ नहीं थी। बल्कि बिहार और दिल्ली पुलिस का एक महीनों पुराना मिशन था, जिसका अंत हुआ जब रंजन पाठक और उसके तीन गुर्गे ढेर हो गए।
बिहार से दिल्ली तक – एक गैंग का सफर
बिहार के मुजफ्फरपुर से लेकर समस्तीपुर तक उसका आतंक था। चोरी, हत्या, फिरौती और चुनावी धमकियाँ – यह सब रंजन पाठक की पहचान बन चुका था। लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह गायब था। डीजीपी कार्यालय को जानकारी मिली कि उसका गैंग अब दिल्ली में पनाह लेकर एक नई साजिश रच रहा है। साजिश सीधी थी – बिहार चुनाव से पहले डर का माहौल बनाना।
कुछ हफ्तों की जासूसी और एक रात
बिहार एसटीएफ और दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम हफ्तों से नजर बनाए थी। कॉल लोकेशन से लेकर व्हाट्सएप चैट तक सब ट्रैक किया जा रहा था। अधिकारियों को पता चला कि रंजन पाठक का गिरोह चुनाव में उथल-पुथल मचाने की फ़िराक में है। बस फिर तय हुआ – अब ऑपरेशन टाला नहीं जाएगा।
रोहिणी में गोलियों की बौछार
गुरुवार रात करीब ग्यारह बजे। एक सफेद SUV तेज़ी से आई। पुलिस ने जैसे ही रोकने का इशारा किया, उसमें बैठे अपराधियों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं। जवाब में पुलिस ने भी मोर्चा संभाला। करीब दस मिनट तक गोलियों की गूंज रही। और जब सब थमा, ज़मीन पर पड़ा था वो सिर – रंजन पाठक, जिसका नाम बिहार पुलिस के सबसे वांछित अपराधियों में शामिल था।
डीजीपी का बयान – चुनाव में डर फैलाना था मकसद
डीजीपी बिहार ने शुक्रवार सुबह प्रेस कांफ्रेंस में खुलासा किया – “हमें लगातार इनपुट मिल रहे थे कि रंजन पाठक गैंग बिहार चुनाव के दौरान दहशत फैलाने की कोशिश में था। उनके निशाने पर प्रत्याशी, अधिकारी और कारोबारी थे। हमने दिल्ली पुलिस से समन्वय किया और ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाया।” उनके शब्द छोटे लेकिन सख्त थे – “कानून से ऊपर कोई नहीं।”
बिहार के जिलों में फैला नेटवर्क
पुलिस के रिकॉर्ड बताते हैं कि रंजन पाठक का नेटवर्क बिहार के आठ जिलों में फैला था। हर जिले में उसका कोई ‘संपर्क सूत्र’ था जो उसे पैसे और खबरें देता था। कई बार पुलिस ने उसे पकड़ने की कोशिश की, पर हर बार वह दिल्ली या हरियाणा भाग जाता। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया – “वो चालाक था, लेकिन इस बार नहीं बच सका।”
मुठभेड़ के बाद सन्नाटा और जांच
घटना के बाद जब पुलिस ने गाड़ी की तलाशी ली तो हथियारों का जखीरा मिला। एक देसी राइफल, तीन ऑटोमैटिक पिस्तौल और 200 से ज्यादा कारतूस। साथ ही मिले बिहार के कुछ विधानसभा क्षेत्रों के नक्शे और नेताओं की फोटो कॉपियाँ। पुलिस अब यह पता लगा रही है कि रंजन पाठक किसके इशारे पर यह पूरी साजिश रच रहा था।
स्थानीय चश्मदीदों की कहानी
रोहिणी सेक्टर-28 के रहने वाले रवि खन्ना ने कहा, “हमने पहले पटाखे समझे, लेकिन फिर गोलियों की आवाज इतनी तेज़ हुई कि बच्चों को घर में बंद कर दिया।” कुछ देर बाद चारों तरफ पुलिस ही पुलिस थी। रात में जब खबर बाहर आई कि रंजन पाठक मारा गया है, तब लोगों ने राहत की सांस ली।
पुलिस का मिशन क्लियर मैसेज दे गया
बिहार के पुलिस अफसरों का कहना है कि यह सिर्फ एक एनकाउंटर नहीं, बल्कि संदेश था। चुनाव से पहले अगर कोई अपराधी माहौल बिगाड़ने की कोशिश करेगा तो उसे छोड़ा नहीं जाएगा। डीजीपी ने दो टूक कहा – “बिहार अब 1990 का बिहार नहीं है। हमने कानून को मज़बूत किया है और अब डर नहीं, भरोसा बढ़ेगा।”
राजनीतिक हलकों में चर्चा
घटना के कुछ ही घंटों बाद राजनीतिक बयानों की शुरुआत हो गई। विपक्ष ने कहा कि कानून व्यवस्था चुनावी समय में ही क्यों सुधरती है। वहीं सत्ताधारी दलों ने ऑपरेशन को सही ठहराया। लेकिन एक बात सबने मानी – अगर गैंग जिंदा रहता तो बिहार में डर फैलता। रंजन पाठक अब सिर्फ एक नाम रह गया, पर उसके नेटवर्क पर पुलिस की नजर अब भी बनी रहेगी।
गैंग के खत्म होने के बाद अगला कदम
बिहार पुलिस ने अब चुनाव से पहले सभी जिलों में निगरानी बढ़ा दी है। चुनावी रणनीति से जुड़े इलाकों में स्पेशल टीम तैनात की जा रही है। **बिहार पुलिस** का कहना है कि अब कोई बाहरी अपराधी राज्य में शरण नहीं ले पाएगा। दिल्ली मुठभेड़ ने यह साबित कर दिया कि राज्यों की सीमा अपराधियों को बचाने की दीवार नहीं रह गई।


