बिहार चुनाव में धर्म की लहर : नमक हराम, बुर्का और वक्फ कानून पर गरमाई सियासत
बिहार चुनाव में धर्म की लहर अब खुलकर सामने है। गिरिराज सिंह के ‘नमक हराम’ बयान से लेकर तेजस्वी यादव के ‘वक्फ कानून खत्म’ वाले ऐलान तक सियासत गरमा गई है। हर पार्टी अब अपनी रणनीति इस धार्मिक बहस के इर्द-गिर्द बना रही है। बिहार चुनाव में धर्म की लहर ने राजनीति का रूख बदल दिया है।
बिहार चुनाव: धर्म, नमक हराम और बुर्का पर सियासी जंग
खबर का सार AI ने दिया · News Team ने रिव्यु किया
- बिहार चुनाव में विकास के बजाय धर्म का मुद्दा हावी हो रहा है।
- गिरिराज सिंह के 'नमक हराम' बयान ने चुनावी माहौल को गरमाया।
- बुर्का और वक्फ कानून जैसे मुद्दे भी सियासी बहस का हिस्सा बने।
बिहार चुनाव में धर्म की लहर नमक हराम, बुर्का और वक्फ कानून पर बढ़ी सियासी जंग
बिहार के चुनावी मैदान में गहराता धर्म का रंग
बिहार की गलियों में अब सिर्फ पोस्टर नहीं, बयान भी उड़ रहे हैं। हर पार्टी का नेता कुछ ऐसा बोल रहा है, जिससे भीड़ ताली भी बजा दे और दूसरी तरफ बवाल भी मच जाए। कभी नमक हराम कहा जा रहा, तो कहीं वक्फ कानून खत्म करने की बात। लगता है विकास का एजेंडा कहीं पीछे छूट गया है।
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गिरिराज सिंह का बयान और सियासी आग
बीजेपी के गिरिराज सिंह ने मंच से बोल दिया, "जो इस देश का नमक खाता है, वो अगर पाकिस्तान का गीत गाए तो नमक हराम है।" लहजा सख्त था, बात तीखी थी। पर इस एक लाइन ने चुनावी माहौल में मिर्ची डाल दी। महागठबंधन के नेताओं ने इसे हिन्दू-मुस्लिम के बीच दीवार खड़ी करने वाला बयान बताया। बीजेपी के समर्थक बोले, “गिरिराज ने सच कहा है।” ये बिहार है, यहाँ हर बात बहस बन जाती है।
बुर्का पहनने पर भी हुई राजनीति
अब बुर्का भी चुनावी मुद्दा बन गया है। कुछ भाजपा समर्थकों ने कहा – स्कूलों और दफ्तरों में बुर्का पर बहस होनी चाहिए। महागठबंधन ने पलटवार किया – “महिलाओं के कपड़ों पर राजनीति क्यों?” पटना की गलियों में अब चर्चा है कि क्या कपड़े पहचान बन जाएंगे? एक महिला बोली, “हम पर राजनीति मत करो, हमें सम्मान दो।” ये संवाद चुनाव से बड़ा लगता है, पर सुनने वाला कम है।
तेजस्वी यादव का वक्फ कानून वाला ऐलान
तेजस्वी यादव ने अचानक कहा, "हमारी सरकार आई तो वक्फ संपत्तियों की समीक्षा होगी।" शब्द साधारण थे, पर असर बड़ा हुआ। कई लोगों ने कहा कि यह मुस्लिम विरोधी कदम है। तेजस्वी बोले, “भ्रष्टाचार रोकने की बात कर रहा हूँ।” बीजेपी ने मौका नहीं छोड़ा और कहा – “अब वोट के लिए धर्म का खेल शुरू हो गया है।” सच ये है कि इस बयान ने हर ओर हलचल बढ़ा दी है।
महागठबंधन में मुस्लिम डिप्टी सीएम की चर्चा
कांग्रेस और आरजेडी के कुछ नेताओं ने सुझाव दिया है कि अगर महागठबंधन जीता, तो मुस्लिम डिप्टी सीएम बनाया जाएगा। यह खबर पटना से लेकर सीमांचल तक फैल गई। कहीं इसे मुसलमानों को लुभाने की चाल कहा गया, कहीं इसे प्रतिनिधित्व देने की पहल। कांग्रेस चाहती है कि मुस्लिम वोट पूरी तरह उसके साथ रहें। बीजेपी इस बीच कह रही है – “राजनीति धर्म से ऊपर होनी चाहिए।” लेकिन असल में सबको पता है, ऐसा कहना सिर्फ औपचारिकता है।
धर्म पर राजनीति, राजनीति पर धर्म
बिहार की जमीन पर धर्म हमेशा से राजनीति की जड़ में रहा है। इस बार फर्क बस इतना है कि इसे खुलेआम बोला जा रहा है। नेता समझ गए हैं कि धर्म से वोट कटता नहीं, जुड़ता है। बीजेपी को हिंदू एकता से उम्मीद है। महागठबंधन को मुस्लिम वोट में भरोसा। दोनों पक्ष खुद को धर्मनिरपेक्ष भी बताते हैं, यह विडंबना नहीं तो क्या है?
वक्फ और बुर्का के बीच फंसे मुसलमान वोटर
मुस्लिम समाज अब दुविधा में दिखता है। एक तरफ वक्फ संपत्तियों पर सवाल उठ रहे हैं, दूसरी तरफ धार्मिक भावनाएँ। एक युवा बोला, “हम हर बार भावनाओं पर वोट देते हैं, अब काम पर देंगे।” पर क्या ऐसा सच में होगा? बिहार का इतिहास कहता है – धर्म की बात ज़्यादा चलती है, काम की कम। यानी मतदाता अभी भी भावनाओं की रस्सी पर चल रहा है।
एनडीए की रणनीति – हिन्दू एकजुटता की दिशा
बिहार बीजेपी की रणनीति साफ है – हिंदू वोट को एकजुट करना। गांवों में घर-घर बोला जा रहा है कि “जो हमारी संस्कृति की बात करेगा, वही अपना।” विपक्ष कहता है कि यह हिंदुत्व की राजनीति है। पर बीजेपी के नेताओं का जवाब है, “हम बस भारत की परंपरा की बात कर रहे।” यह बयानबाजी भले भावुक लगे, पर राजनीति का शतरंज इसी पर खेले जा रहा।
महागठबंधन की उम्मीद – मुस्लिम और यादव समीकरण
आरजेडी का भरोसा अब भी पुराने समीकरण पर टिका है – मुस्लिम और यादव। तेजस्वी यादव इसका सार्वजनिक रूप से जिक्र नहीं करते, पर हर सभा में संकेत दे जाते हैं। “हम हर गरीब के साथ हैं, हर उस वर्ग के जो दबाया गया।” यह लाइन सीधी लगती है, पर निशाना खास होता है। अब सवाल यही है कि क्या यह समीकरण नए मुद्दों की आंधी में टिक पाएगा?
धार्मिक ध्रुवीकरण का असर क्या पड़ेगा?
राजनीतिज्ञों का कहना है कि अगर मुस्लिम वोट महागठबंधन में गए तो बीजेपी को हिंदू एकता पर और भरोसा मिलेगा। पर यह भी सच है कि हर बार ऐसा गणित काम नहीं करता। गांवों में अब भी लोग कहते हैं, “जाति देख के वोट देते हैं, धर्म नहीं।” लेकिन टेलीविजन पर, भाषणों में, हर जगह अब धर्म ही चर्चा में है। यह तय है कि ये चुनाव बिहार की सियासत को आने वाले सालों के लिए बदल देगा।
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क्या चुनाव में धार्मिक मुद्दे हावी हो रहे हैं?
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