Bihar Election: बिहार विधानसभा चुनाव इस बार एक नए मोड़ पर खड़ा है। दशकों से जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमने वाली सियासत अब शिक्षा, विशेषज्ञता और प्रोफेशनलिज़्म की ओर बढ़ रही है। प्रमुख दल जेडीयू, राजद और भाजपा ने इस बार उम्मीदवार चयन में जाति से ज़्यादा क्वालिफिकेशन और प्रोफेशनल बैकग्राउंड को तरजीह दी है। आंकड़ों के मुताबिक, चुनावी मैदान में उतरे करीब 62% उम्मीदवार स्नातक या उससे ऊंची डिग्री वाले हैं, जो राज्य की राजनीति में एक ऐतिहासिक बदलाव का संकेत है।
पढ़े-लिखे चेहरों का बढ़ता दबदबा
राजनीतिक दलों ने इस बार ऐसे उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है जो सिर्फ जनाधार नहीं, बल्कि नीति और विकास की समझ भी रखते हैं। जेडीयू से इस्लामपुर के रुहेल रंजन और कांटी के अजीत कुमार जैसे इंजीनियर उम्मीदवार, राजद से उजियारपुर के आलोक मेहता, और भाजपा से बिहार शरीफ के डॉ. सुनील कुमार जैसी शख्सियतें इस बदलाव की मिसाल हैं।
इस बार के Bihar Election 2025 में 12 इंजीनियर, 5 डॉक्टर, 17 वकील (LLB), 12 पीएचडी, और 3 D.Litt धारक मैदान में हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता सम्राट चौधरी, जो खुद D.Litt धारक हैं, उन्होंने कहा कि “बिहार को अब शिक्षित नेतृत्व चाहिए, जो विकास की नई दिशा तय कर सके।”
शिक्षा और विकास का नया समीकरण
अब जनता ऐसे प्रतिनिधियों को चुनने की ओर बढ़ रही है जो केवल वादे नहीं, बल्कि नीति और तकनीक के ज़रिए समाधान दे सकें। डॉक्टर और इंजीनियर उम्मीदवारों की मौजूदगी इस बात की गवाही देती है कि बिहार अब बदलाव के दौर में है। Bihar Chunav के इस चरण में यह ट्रेंड राजनीतिक पार्टियों के भविष्य के चेहरे को भी बदल सकता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले वर्षों में "educated leadership", "policy-driven politics", और "technocratic governance" जैसे शब्द भारतीय राजनीति में आम हो जाएंगे। वहीं, स्थानीय स्तर पर लोगों का कहना है कि “अब नेता वही होगा जो पढ़ा-लिखा होगा।”
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ज़मीन से जुड़ाव अब भी सबसे अहम
हालांकि शिक्षा का यह रुझान उत्साहजनक है, लेकिन बिहार की सियासत में जनता से जुड़ाव की अहमियत अब भी बरकरार है। चुनावी मैदान में कुछ उम्मीदवार ऐसे भी हैं जो मैट्रिक पास नहीं हैं, पर अपने क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय हैं। इससे साफ होता है कि बिहार की राजनीति अब दो ध्रुवों पर चल रही है ज्ञान और जनाधार।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले चुनावों में यही संतुलन तय करेगा कि बिहार की राजनीति कितनी “educated yet grounded” बन पाती है।
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