बिहार में इस बार चुनाव सिर्फ एक राजनीतिक लड़ाई नहीं लग रहा, ये जनता का मूड बदलने की कहानी है। पहले चरण की 121 सीटों पर हुई वोटिंग ने सबको हैरान कर दिया। रिकॉर्ड turnout, लंबी कतारें, और गांव से लेकर शहर तक ऐसा उत्साह जो पिछले कई दशकों में नहीं देखा गया। कहा जा रहा है कि 1951 के बाद इतनी बड़ी वोटिंग बिहार ने पहली बार देखी है।
पुरानी सोच से नई उम्मीद तक
बिहार में हमेशा एक perception रहा – “वोटिंग होती है, पर फर्क नहीं पड़ता।” इस बार वो सोच टूटी है। गांव के बूढ़े से लेकर कॉलेज की लड़कियों तक, हर कोई बोला – “इस बार बदलेगा।” मुझे याद है, मुजफ्फरपुर के एक बूथ पर एक बुजुर्ग ने कहा – “बाबू, 1977 में भी ऐसा जोश देखा था जब जनता उठी थी।” उस आवाज़ में उम्मीद थी, और एक चेतावनी भी – जनता अब सिर्फ सुनने नहीं, बदलने आई है।
पहले चरण की सीटों में कई इलाके ऐसे हैं जहां turnout 65 प्रतिशत से ऊपर गया। यह वही इलाका है जहां 2019 और 2020 में लोग उदासीन थे। शायद बेरोजगारी, महंगाई, या बस बदलाव की भूख ने इस बार वोट डालने को एक emotion बना दिया है।
युवा और महिलाएं – असली ‘game changer’
अगर आप ground पर जाएंगे तो समझ आएगा कि ये चुनाव किसने पलटा। Patna और Gaya जैसे शहरों में लड़कियां scooter पर हेलमेट पहनकर मतदान केंद्र पहुंच रही थीं। कई जगह महिलाएं बोलीं – “इस बार फैसला हम देंगे।” और सच कहूं तो, ये लाइन सुनकर एक अलग ही सुकून मिला।
एक और दिलचस्प चीज़ – पहली बार वोट करने वाले युवाओं में excitement था, लेकिन साथ में गुस्सा भी। “हमने online पढ़ाई झेली, paper leak झेले, अब action चाहिए।” ये शब्द मेरे कानों में अब भी गूंज रहे हैं। Bihar की अगली politics शायद यही generation तय करने वाली है।
सत्ता और विपक्ष – दोनों के लिए संकेत
ये turnout सिर्फ ज्यादा वोटिंग नहीं है, ये एक silent message है। सत्ता पक्ष के लिए – जनता अब ‘development report card’ मांग रही है, और विपक्ष के लिए – सिर्फ नाराजगी काफी नहीं, vision भी चाहिए।
एक नेता से बात हुई, जो campaign खत्म कर लौटे थे। उन्होंने कहा – “लोग सुनते हैं, लेकिन सवाल भी पूछते हैं।” पहले बिहार की politics में ऐसा rarely होता था। यानी जनता अब सिर्फ पोस्टर नहीं, performance भी पढ़ रही है।
1951 की गूंज – और आज की तस्वीर
1951 का पहला चुनाव एक भावना थी – लोकतंत्र का उत्सव। लोग पहली बार वोट डालने निकले थे, अपने भविष्य की पहली रेखा खींचने। और अब 2025 में वही spirit फिर दिखी है। फर्क बस इतना है कि तब स्याही का मतलब पहचान थी, अब जवाबदेही की मांग है।
मुझे एक polling officer ने बताया कि शाम 6 बजे तक भी लोग आ रहे थे – “साहब, लाइन में लगिए, हम भी डालेंगे।” ये वही Bihar है जो कभी abstain करता था, अब assertive हो चुका है।
बेगूसराय जिला
चेरिया-बरियारपुर-68.83%
बछवाड़ा-69.67%
तेघड़ा-69.75%
मटिहानी-68.60%
साहेबपुर कमाल-60.66%
बेगूसराय-66.01%
बखरी-66.88%
मेरी राय – बिहार की जनता ने game पलट दिया है
Seedhi baat, ये चुनाव किसी party का नहीं, जनता का है। turnout ने साफ कर दिया कि अब लोग सिर्फ वादे नहीं, नतीजे देखना चाहते हैं। Bihar का voter अब naïve नहीं रहा, वो mature है, समझदार है, और इस बार उसका button सिर्फ symbol पर नहीं, system पर पड़ा है।
मुझे लगता है ये turnout किसी सरकार की जीत नहीं, लोकतंत्र की जीत है। और अगर ये लहर दूसरे चरणों तक भी गई, तो Bihar की राजनीति का चेहरा सच में बदल जाएगा।
1951 से लेकर 2025 तक – सात दशक में बिहार का voter शायद पहली बार अपनी कहानी खुद लिख रहा है। और इस बार, वो कलम जनता के हाथ में है।


