मढ़ौरा से उड़ गई एनडीए की उम्मीद, सीमा सिंह का नामांकन खारिज, आरजेडी और जनसुराज में बनेगी टक्कर
बिहार की सियासत में इस वक़्त हलचल मची है। चुनाव शुरू भी नहीं हुआ और एनडीए को लग गया एक बड़ा झटका। मढ़ौरा सीट से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की उम्मीदवार सीमा सिंह का नामांकन रद्द कर दिया गया है। खबर आई तो जैसे पूरे इलाके में सन्नाटा फैल गया। पार्टी दफ्तरों में फोन बजते रहे, कार्यकर्ता हैरान।
कागज़ में गलती बताई गई। बस इतना कहा गया कि दस्तावेज़ अधूरे हैं। लेकिन एनडीए खेमे में कोई नहीं मानता कि यह सिर्फ गलती है। सबको लगता है कुछ और है। कहीं न कहीं कोई खेल हुआ है। और राजनीति में खेल कौन नहीं समझता?
नामांकन रद्द, और टूट गया भरोसा
मढ़ौरा विधानसभा लंबे समय से सियासी जमीन का गर्म इलाका रहा है। सीमा सिंह की उम्मीदवारी ने एनडीए में नई ऊर्जा भरी थी। लेकिन जब शाम करीब पांच बजे रिटर्निंग ऑफिसर ने सूची जारी की, तो नाम नदारद था। तब समझ आया – कुछ गलत हो गया। लोजपा दफ्तर में सन्नाटा छा गया, कोई बोल नहीं पा रहा था।
लोग कह रहे थे, इतनी कोशिशों के बाद भी पर्चा कैसे रद्द हो गया? आखिर कौन सा कागज़ अधूरा रह गया? अब वहां सिर्फ सवाल हैं, जवाब कोई नहीं दे रहा।
चिराग पासवान का गुस्सा और निराशा
चिराग पासवान ने तुरंत मीडिया के सामने बयान दिया — आवाज़ में गुस्सा था। बोले, “यह लोकतंत्र के खिलाफ है, एक मजबूत महिला उम्मीदवार को रोकने की कोशिश की गई।” उनके चेहरे पर निराशा साफ थी। पार्टी के अंदर कहा जा रहा है कि अगर यह हाल रहा, तो एनडीए की स्थिति मुश्किल हो जाएगी। लेकिन हाँ, चिराग ने साफ किया — “हम मैदान नहीं छोड़ेंगे।”
अब सवाल है कि मैदान में कौन उतरेगा? क्या कोई नया चेहरा आएगा? या फिर एनडीए यहां मुकाबले से बाहर हो जाएगा?
अब सीधा मुकाबला आरजेडी और जनसुराज का
नामांकन रद्द होते ही सारा गणित बदल गया। अब इस मढ़ौरा सीट पर सीधा मुकाबला है आरजेडी और जनसुराज पार्टी के बीच। पहले तीन तरफा लड़ाई दिख रही थी, अब मैदान दो हिस्सों में बँट गया है। आरजेडी ने अपने पुराने विश्वासपात्र नेता को टिकट दिया है, जिनकी पकड़ गांव-गांव में है। वहीं, जनसुराज ने एक युवा और साफ छवि वाले उम्मीदवार को उतारा है।
गांव के नुक्कड़, चाय की दुकानों, चौपालों पर अब चर्चा सिर्फ यही — “इस बार किसका पलड़ा भारी होगा?”
एनडीए में मायूसी और मतदाताओं में हलचल
एनडीए कार्यकर्ताओं के लिए यह खबर बिजली की तरह गिरी। छोटे कार्यकर्ता निराश, बूथ स्तर के प्रभारी हताश। कुछ ने कहा कि यह लापरवाही है, कुछ बोले कि राजनीति में ऐसे झटके आते रहते हैं। लेकिन एक बात सब मान रहे हैं — नुकसान तो हो गया।
गांव की बुजुर्ग महिलाएँ, जो हमेशा लोजपा को वोट देती थीं, कहती हैं, “हम तो सीमा बिटिया को ही वोट देने वाले थे।” उनके चेहरे पर उदासी झलक रही थी।
विश्लेषकों की नज़र में बड़ा असर
चुनाव विश्लेषक इस घटना को एक “साइलेंट वेव” मानते हैं। उनका कहना है कि मढ़ौरा जैसी सीटें केवल एक इलाका नहीं तय करतीं, यह पूरी पटना-छपरा बेल्ट की हवा को प्रभावित करती हैं। अगर यहां एनडीए कमजोर हुआ, तो इसका असर कई पड़ोसी सीटों तक जाएगा।
आरजेडी ने मौका पहचान लिया है। उन्होंने अब वहां प्रचार की रफ्तार दोगुनी कर दी है। वहीं जनसुराज अपने आंदोलन वाले अंदाज़ में जनता से सीधा संवाद कर रही है – बिना खर्च, बिना मंच, बस सादगी में बात।
जनसुराज के लिए सुनहरा मौका
कई लोग कह रहे हैं, यह जनसुराज पार्टी के लिए सबसे सुनहरा मौका है। प्रशांत किशोर अब पूरी ताकत से जुटे हैं। पहले जहां उन्हें “स्पॉइलर” माना जा रहा था, अब वो “किंगमेकर” बन सकते हैं।
गांव के लोगों में भी एक जिज्ञासा है – “पीके क्या वाकई चुनाव जीत सकता है?” शायद आने वाले हफ्तों में इस सवाल का जवाब मिलेगा।
बदलते सियासी हालात और जनता की सोच
मढ़ौरा के लोग इस बार सचमुच सोच में हैं। क्या ये चुनाव अब विकास पर होगा या खिलाफ़त पर? क्योंकि वहां अब जातीय संतुलन से ज़्यादा मुद्दे काम कर रहे हैं – सड़क, स्कूल, और युवाओं की बेरोजगारी। सीमा सिंह की जगह अब कौन खड़ा होगा, यही सस्पेंस है।