बिहार चुनाव 2025 से पहले NDA और महागठबंधन दोनों में सीट शेयरिंग की खींचतान बढ़ गई है। एक तरफ चिराग पासवान और जीतन राम मांझी अपनी-अपनी सीटों पर अड़े हैं, तो दूसरी तरफ मुकेश सहनी भी अपने वोटबैंक की ताकत दिखाने में लगे हैं। इस सियासी गुत्थी में अब सवाल ये है कि आखिर इस लड़ाई का फायदा किसकी झोली में जाएगा?
बिहार की सियासत वैसे भी हमेशा से दिलचस्प रही है, लेकिन इस बार तो NDA गठबंधन के भीतर ही एक नई कहानी चल रही है। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के बीच सीटों की खींचतान अब खुलकर सामने आ गई है। मांझी 15 सीटों की मांग पर अड़े हैं, जबकि चिराग अपनी पसंदीदा सीटों से पीछे हटने को तैयार नहीं। और उधर मुकेश सहनी भी पीछे रहने वालों में से नहीं हैं, वो भी अपने दम पर डील पक्की करना चाहते हैं।
सीट बंटवारे पर बैठकों की बौछार, लेकिन हल दूर – हर पार्टी चाहती है बड़ा हिस्सा, ताकि बिहार की कुर्सी तक पहुंच आसान हो जाए
अब जरा सोचिए, जब चुनाव में बस कुछ ही हफ्ते बचे हों और पार्टियां अब तक तय न कर पाईं हों कि कौन कहां से लड़ेगा, तो नतीजा क्या होगा? जी हां, राजनीतिक तनाव अपने चरम पर है। पटना से दिल्ली तक बैठकों का दौर चल रहा है, पर सीटों का मसला सुलझ नहीं पा रहा।
चिराग पासवान पहले से ही “स्वाभिमान की राजनीति” के झंडाबरदार बने हुए हैं। वो 2020 में अकेले चुनाव लड़ चुके हैं और अब भी उनकी वही शैली बरकरार है। वहीं, जीतन राम मांझी ने 20-25 सीटों से अपनी डिमांड घटाकर 15 पर ला दी है, लेकिन अब वो और झुकने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने साफ कह दिया है – “सीटें नहीं मिलीं तो हम भी सोचेंगे।”
महागठबंधन में भी सब ठीक नहीं, RJD और कांग्रेस में सीटों पर माथापच्ची, लेकिन NDA की अंदरूनी लड़ाई से मिल सकता है अप्रत्यक्ष फायदा
अगर आपको लग रहा है कि बस NDA में ही खींचतान है, तो ठहरिए। महागठबंधन में भी सब कुछ शांत नहीं। RJD जहां 135 सीटों से नीचे नहीं आना चाहती, वहीं कांग्रेस अपने हिस्से की सीटें कम करने से कतरा रही है। लेकिन NDA में जो घमासान मचा है, वो इस बार महागठबंधन के लिए वरदान साबित हो सकता है।
एक मजेदार बात यह है कि चिराग पासवान ने इस बार अपने संदेश कविता के रूप में दिया है। राजनीति में कविता! चिराग ने बड़ी चालाकी से अपनी नाराज़गी को शब्दों में पिरो दिया, ताकि बयान भी न दें और सिग्नल भी चला जाए।
“गठबंधन की उलझन” – तीन नेताओं की तीन सोच, एक बिहार और हजार समीकरण
अगर आप बिहार की राजनीति को एक टीवी शो मान लें तो इसका नया एपिसोड यही है – “सीटों की जंग”। एक ओर मांझी का कहना है कि उनका जनाधार बढ़ा है इसलिए सीटें भी ज्यादा मिलनी चाहिए। दूसरी ओर चिराग को लगता है कि बिना उनके NDA अधूरा है। वहीं, मुकेश सहनी भी अपने ‘निषाद वोट बैंक’ को हथियार बनाकर मैदान में उतरे हैं।
लेकिन जो सबसे दिलचस्प पहलू है, वो ये कि इस खींचतान में बीजेपी थोड़ा “क्लास मॉनिटर” की तरह फंसी हुई है – सबको खुश भी रखना है, और सीटों का गणित भी फिट करना है।
क्या किसी तीसरे को मिलेगा फायदा?
राजनीति के जानकारों का मानना है कि अगर ये टकराव ऐसे ही चलता रहा तो इसका फायदा महागठबंधन या किसी तीसरी ताकत को हो सकता है। नीतीश कुमार के NDA छोड़ने के बाद बीजेपी पहले से ही अपने सहयोगियों के साथ संतुलन साधने की कोशिश में है, लेकिन जब हर साथी खुद को किंगमेकर समझे, तो बात मुश्किल हो ही जाती है।
अब 6 नवंबर को पहले चरण की वोटिंग है और वक़्त हाथ से निकलता जा रहा है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या NDA अपनी अंदरूनी राजनीति सुलझा पाती है या फिर बिहार की जनता किसी नए समीकरण की गवाह बनेगी।
क्या कहा जा सकता है इस सियासी ड्रामे पर?
सीधी बात – बिहार की राजनीति कभी बोर नहीं करती। यहां हर चुनाव एक नई कहानी लेकर आता है, और इस बार कहानी का नाम है “गठबंधन के अंदर गठजोड़ की जंग”। चिराग, मांझी और सहनी अपने-अपने सपनों की कुर्सी के लिए भिड़े हैं, और जनता बस देख रही है कि किसकी स्क्रिप्ट हिट होगी और किसकी फ्लॉप।