बिहार चुनाव में बड़ा एलान – जीत पर मुकेश सहनी होंगे डिप्टी सीएम, जानिए क्यों बढ़ी उनकी अहमियत महागठबंधन में
बिहार का माहौल गरम है, सियासत फिर से सर चढ़कर बोल रही है। इस बार नाम सबसे ज्यादा लिया जा रहा है मुकेश सहनी का। वही विकासशील इंसान पार्टी के फाउंडर। वही जिनका नारा है – "सबका विकास, सबकी आवाज़"। अब महागठबंधन ने ये कहकर खेल पलट दिया कि अगर सरकार बनी, तो सहनी होंगे डिप्टी सीएम। ये बात सीधी थी, मगर असर बहुत गहरा। मानो सियासत में कोई नई लहर उठी हो।
संघर्ष से शुरुआत और अब बड़ा मुकाम
मुकेश सहनी की कहानी किसी फिल्म जैसी लगती है। कभी नाव चलाते पिता के बेटे, आज बिहार की राजनीति के केंद्र में। उन्होंने कहा था कि वो राजनीति में समाज की आवाज़ बनकर रहेंगे, कुर्सी के लिए नहीं। शायद यही कारण है कि आज महागठबंधन ने उन्हें इतनी तवज्जो दी है। उनकी पार्टी छोटी जरूर है, लेकिन जनता से जुड़ी है। और यही जुड़ाव अब बड़ा राजनीतिक आधार बन गया है।
महागठबंधन की चाल और उसके पीछे गणित
राजनीति में हर बयान के पीछे एक गणित छुपा होता है। बिहार में जातीय समीकरण हर दिल की धड़कन तय करते हैं। और इस बार, महागठबंधन ने वही कार्ड खेला है। मल्लाह और निषाद समुदाय, जिसकी आवाज़ लम्बे वक्त तक दबाई गई, अब उठ रही है। मुकेश सहनी उसी आवाज़ को ज़ोर से बोल रहे हैं। आरजेडी जानती है, अगर ये समुदाय एकजुट हुआ तो कई सीटों का हिसाब बदल जाएगा।
विकासशील इंसान पार्टी की भूमिका अब अहम
वीआईपी पार्टी अभी बड़ी नहीं, लेकिन इसका असर गहरा है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भले उन्हें कम सीटें मिलीं, लेकिन जनता के बीच उनकी पहचान बन चुकी है। गांवों में, नदी किनारे की बस्तियों में, लोग कहते हैं – “वो आदमी हमारा है।” अब वही भरोसा महागठबंधन के लिए ताकत बना है। महागठबंधन ने महसूस किया कि बिना वीआईपी के साथ, मिशन पूरा नहीं होगा।
बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ती दिखीं
दिलचस्प बात ये है कि मुकेश सहनी कभी एनडीए का हिस्सा थे। लेकिन कुछ साल पहले रास्ते अलग हुए। तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यही नेता अब बीजेपी के लिए सिरदर्द बनेंगे। अब हालात ऐसे हैं कि जिन वोटों पर बीजेपी को भरोसा था, वो धीरे-धीरे दूसरी तरफ खिसकते दिख रहे हैं। राजनीति में एक छोटा बदलाव भी बड़ी हलचल कर देता है, और ये वही वक्त है।
मुकेश सहनी का स्टाइल सबसे अलग
सहनी मंच पर चिल्लाते नहीं, धीरे बोलते हैं। साधारण कपड़े पहनते हैं। सीधी बातें करते हैं। लोग उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं जैसे वो कोई मंत्री नहीं, अपने गांव का लड़का हो। वो बार-बार कहते हैं – “हम जहां से आए हैं, उसे कभी भूल नहीं सकते।” शब्द सीधे दिल में उतरते हैं, शायद इसी वजह से उनकी बातों में भरोसा झलकता है।
आरजेडी और वीआईपी का रिश्ता अब तय
आरजेडी ने जो फैसला लिया, वो सिर्फ गठबंधन नहीं, समझदारी है। तेजस्वी यादव ने खुद कहा था कि "महागठबंधन हर वर्ग को साथ लेकर चलेगा।" और जब यह कहा गया कि सरकार बनी तो डिप्टी सीएम होंगे मुकेश सहनी, तो उसे सिर्फ राजनीति नहीं, प्रतिनिधित्व कहा गया। इस बयान के बाद कई गांवों में पटाखे फूटे। लोगों ने नारे लगाए कि अब हमारी भी आवाज विधानसभा तक पहुंचेगी।
जनभावना बदल रही, और हवा भी
बिहार में लोग अब ध्यान से देख रहे हैं, सुन रहे हैं। पहले सिर्फ नाम चलता था, अब चेहरा भी मायने रखता है। मुकेश सहनी का चेहरा नया है, पर उनकी कहानी पुरानी और सच्ची लगती है। लोग कहते हैं, “अगर ये आदमी ऊपर गया तो हमारे बच्चे भी जा सकते हैं।” यह भरोसा शायद किसी भी कुर्सी से बड़ा होता है।
अगर बना डिप्टी सीएम, तो क्या बदलेगा?
सोचिए, पहली बार बिहार की सत्ता में वो समाज शामिल होगा, जिसे अक्सर किनारे रखा गया। अगर महागठबंधन जीत गया और वास्तव में सहनी बने डिप्टी सीएम, तो यह केवल एक पद नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव की शुरुआत होगी। बिहार के कई लोग इसे सम्मान की लड़ाई मान रहे हैं। और सहनी बार-बार कहते हैं – "हम सिर्फ वोट नहीं, सम्मान मांग रहे हैं।"


