बिहार चुनाव में चर्चा में आए मंत्री जयंत राज, एक मिनट देर से पहुंचे फिर भी भरा नामांकन पर्चा
एक मिनट की देर और फिर भी पूरा नामांकन
कहते हैं कभी-कभी एक मिनट बहुत होता है। शायद नहीं भी। अमरपुर के जयंत राज कुशवाहा जब नामांकन केंद्र पहुंचे, घड़ी में समय बीत चुका था — बस एक मिनट। लोगों की सांस अटक गई थी। कोई बोला, “अब तो गया मामला।” लेकिन नहीं। अधिकारी ने मुस्करा के फाइल ली, मुहर लगी और नामांकन पूरा हो गया। भीड़ ने राहत की सांस ली। जयकारे लगे। माहौल भर उठा जोश से।
जयंत राज बोले, समय से भरोसा नहीं उठा बस फिसल गया
नामांकन के बाद हंसते हुए मंत्री ने कहा, “कभी-कभी वक्त भी खेल कर देता है।” उनकी आंखों में वही आत्मविश्वास जिसने उन्हें राजनीति में अलग बनाया। कहानी यहीं खत्म नहीं होती। क्योंकि यह वही जयंत राज हैं जिनके जीवन और संपत्ति दोनों ने पिछले सालों में लंबी छलांग लगाई है।
जयंत राज और पत्नी शिल्पी की कुल संपत्ति करीब तीन करोड़
हलफनामा खुला तो आंकड़े बोलने लगे। जयंत राज कुशवाहा के पास लगभग 1 करोड़ 54 लाख रुपये की संपत्ति है। पत्नी शिल्पी सुरभि के पास लगभग 32 लाख रुपये की। दोनों मिलाकर कुल संपत्ति करीब 2 करोड़ 90 लाख रुपये। पिछले पांच साल में बढ़ोतरी साफ नजर आई। लोग पूछने लगे, “मंत्री जी का भाग्य भी मंत्री पद जैसा ऊंचा हो गया क्या?” वे मुस्कराकर बोले, “भाग्य नहीं, मेहनत।”
पत्नी करती हैं प्राइवेट जॉब, सादगी में विश्वास
शिल्पी सुरभि दिखने में साधारण, पर सोच अलग। न राजनीति, न मंच, बस अपना काम। वे एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं — नियमित सैलरी, सादगी भरा जीवन। कई बार लोग आश्चर्य करते हैं कि मंत्री की पत्नी फिर भी इतनी सामान्य कैसे। कुमारी शिल्पी अपने तप और मेहनत दोनों से अलग पहचान रखती हैं। जयंत राज अक्सर कहते हैं, “शिल्पी मेरी ताकत है।”
अमरपुर में जनता का भरोसा कायम
अमरपुर की गली में आप जाएंगे तो तीन बातें सुनाई देंगी — सड़क बनी, स्कूल ठीक हुआ, मंत्री मौजूद हैं। पिछले कार्यकाल में जयंत राज कुशवाहा ने काम जरूर किया है। लोग कहते हैं – “भले थोड़ा देर से पहुंचते हैं, पर पहुंचते जरूर हैं।” ये वाक्य अब उनके व्यक्तित्व से जुड़ गया है।
नामांकन दिन का नज़ारा
नामांकन दिन याद रहेगा। गाड़ियों का काफिला, समर्थकों की भीड़, ‘जयंत राज जिंदाबाद’ के नारे। सुरक्षा सख्त थी, फिर भी भीड़ बेरोक। कई बुजुर्ग महिलाएं भी आईं, हाथ जोड़कर आशीर्वाद देती हुईं। उन्होंने कहा, “बेटा बदल दे अमरपुर।” यह दृश्य किसी फिल्म जैसा था, बस स्क्रीन की जगह ज़िंदगी थी।
भवन निर्माण मंत्री की उपलब्धियाँ
भवन निर्माण मंत्री के रूप में जयंत राज कुशवाहा ने कई काम किए। सरकारी इमारतें बनीं, स्कूलों का चेहरा बदल गया। वे कहते हैं, “काम दिखेगा तो बोलने की जरूरत नहीं।” सच भी है, उनके विभाग में परियोजनाएँ तेज़ी से पूरी हुईं। कर्मचारी कहते हैं कि मंत्री अक्सर खुद साइट पर चले जाते हैं। एक तरह से काम उनका शौक भी बन चुका है।
सादगी से जीने वाला परिवार
न बंगला बड़ा, न शानोशौकत दिखावटी। जयंत राज का घर आम नेताओं से अलग है। लोगों के बीच घुलना-मिलना उन्हें आता है। तेज गाड़ियों की जगह वे खुद बाइक से निकलते भी दिख जाते हैं। शिल्पी सुरभि भी सादगी में यकीन रखती हैं। वे कहती हैं, “राजनीति का असली सुख तब है जब लोग मुश्किल में खुद फोन करें और मंत्री उठाएं।”
अमरपुर की जनता का मानना – काम बोलता है
गाँव के बूढ़े कहते हैं, “हमारे मंत्री के काम में वक्त नहीं देखता, बस काम देखता है।” ये बात कहीं न कहीं हकीकत है। क्योंकि क्षेत्र में दिखने वाले स्कूल, सड़कें, पंचायत भवन, सब उनके नाम से जुड़े हैं। लोग अब उन्हें सिर्फ नेता नहीं, ‘अपना बेटा’ कहने लगे हैं।
राजनीति में नया जोश, पुराने रिश्ते कायम
इस बार चुनावी माहौल थोड़ा अलग है। बड़ी रैलियाँ, भीड़, भाषण सब जारी हैं। जयंत राज ने कहा, “मुझे किसी से लड़ना नहीं, बस काम से जीतना है।” उनकी बातें सुनकर लगा जैसे वे किसी नाटक के संवाद नहीं, दिल से बोले शब्द हों। वो शांत स्वभाव के हैं, मगर जब माइक पकड़ते हैं, भीड़ तालियाँ बजाती है।
देर से पहुंचे पर दिल से जुड़े
एक मिनट की वो देरी अब चर्चा बन चुकी। लोग हँसते हुए कहते हैं – “मंत्री जी देर से आए जरूर, मगर दिल से जुड़े हुए हैं।” शायद राजनीति में यही सबसे बड़ा पूंजी होता है – लोगों का दिल। बिहार चुनाव में चाहे जो नतीजा आए, जयंत राज अब जनता के दिल में पक्के हो गए हैं।
कहानी बस इतनी कि एक मिनट की देरी ने किसी मंत्री की परिभाषा नहीं बदली, बल्कि उसे और मानवीय बना दिया। कभी-कभी देर होना भी सही वक्त पर पहुंचना होता है। और इस बार, वो वक्त जयंत राज के पक्ष में खड़ा दिख रहा है।