बिहार की राजनीति में कभी भी कुछ भी तय नहीं होता। लेकिन इस बार जो एग्जिट पोल के आंकड़े सामने आए हैं, उन्होंने हर किसी को हैरान कर दिया है। खासकर इसलिए क्योंकि JDU की सीटों में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है और नीतीश कुमार एक बार फिर सबके केंद्र में हैं।
JDU की वापसी, BJP के लिए चौंकाने वाले आंकड़े
एग्जिट पोल के मुताबिक JDU ने इस बार BJP को पीछे छोड़ते हुए बढ़त बना ली है। यह बात किसी को भी सहज नहीं लग रही थी। कई राजनीतिक विश्लेषक मानते थे कि बीजेपी इस बार अकेले दम पर मजबूत रहेगी, लेकिन नीतीश कुमार की सधी हुई रणनीति और गांव-गांव तक पैठ ने कहानी पलट दी।
मेरे ख्याल से यह वही क्लासिक बिहार है, जहां वोटर आखिरी वक्त में अपना मूड बदल देता है। मैंने खुद 2015 के चुनाव में पटना के बाहरी इलाकों में देखा था कि कैसे रात में लोगों की राय और सुबह मतदान केंद्र की लाइन में खड़े चेहरों में फर्क आ जाता है।

नीतीश की चाल और जनता की प्रतिक्रिया
लोग कहते हैं कि नीतीश अब पुराने पड़ गए हैं। लेकिन बिहार का वोटर उन्हें पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं कर पाता। उनकी छवि भले फीकी पड़ी हो, मगर भरोसा अब भी कायम है। JDU की यह बढ़त उसी भरोसे की वापसी लगती है।
गांव के लोग, खासकर बुजुर्ग तबका, अब भी नीतीश को "काम करने वाला मुख्यमंत्री" मानते हैं। वहीं युवा मतदाता, जो बेरोज़गारी और पलायन से परेशान हैं, इस बार भाजपा से उतना प्रभावित नहीं दिखे जितना 2020 में थे।
महागठबंधन की मुश्किलें और बदले हुए समीकरण
महागठबंधन के लिए यह नतीजे किसी झटके से कम नहीं हैं। तेजस्वी यादव की रैलियों में भीड़ तो थी, जोश भी दिखा, लेकिन वोटों में वह ऊर्जा ट्रांसलेट नहीं हुई। शायद जनता को अभी भी उनके अनुभव पर भरोसा कम है या फिर JDU की ‘स्थिरता’ वाली छवि ने उन्हें दोबारा मौका दे दिया।
दिलचस्प यह भी है कि जिन इलाकों में पहले RJD मजबूत मानी जाती थी, वहां अब JDU और BJP के बीच मुकाबला बराबरी का है। इसका सीधा मतलब है कि बिहार की राजनीति अब तीन कोनों से नहीं, दो ध्रुवों से तय होगी।
एग्जिट पोल की कहानी से आगे का सच
एग्जिट पोल हमेशा सच नहीं बताते, पर उनका संकेत ज़रूर असर डालता है। 2010 में जब JDU-BJP गठबंधन को बड़ा बहुमत मिला था, तब भी माहौल ऐसा ही था — “लोग नीतीश से ऊबे हैं” कहने वाले बाद में चुप रह गए थे।
इस बार भी कुछ वैसा ही माहौल बन रहा है। Bihar Exit Poll 2025 ने एक बार फिर दिखाया है कि बिहार में राजनीति कभी सीधी रेखा में नहीं चलती। यहां जनता आखिरी मिनट में अपने हिसाब से कार्ड खेलती है, और यही उसे बाकी राज्यों से अलग बनाता है।
मेरी राय: नीतीश की ‘फिर से शुरुआत’
अगर ये एग्जिट पोल सही साबित होते हैं, तो नीतीश कुमार के लिए यह सिर्फ जीत नहीं होगी — यह ‘राजनीतिक पुनर्जन्म’ होगा। मुझे याद है जब 2013 में उन्होंने बीजेपी से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ा था और नतीजे बुरे आए थे। तब किसी ने नहीं सोचा था कि वही नीतीश फिर इतनी ताकत से वापसी करेंगे।
सीधी बात कहूं तो बिहार का वोटर इमोशनल है, लेकिन बेवकूफ नहीं। वो गलतियां दोहराता नहीं, पर माफ करता है। और शायद यही इस एग्जिट पोल का सबसे बड़ा संकेत है।
निष्कर्ष: बिहार फिर से एक नए मोड़ पर
एग्जिट पोल का यह रुझान बिहार की राजनीति के पुराने ढांचे को हिला सकता है। JDU की यह बढ़त सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है, यह उस भरोसे की वापसी है जिसे नीतीश कुमार ने सालों पहले बनाया था। अब देखना यह है कि क्या नतीजे आने पर ये उम्मीदें सच्चाई में बदलती हैं या फिर बिहार एक बार फिर सबको चौंका देता है।


