बिहार का माहौल इन दिनों फिर गरम है। चाय की दुकानों से लेकर बस अड्डों तक, हर जगह एक ही सवाल – “भाई, इस बार कौन आ रहा है?” और अब जब एग्जिट पोल आ गए हैं, तो हवा में एक नई हलचल है। कुछ चैनल कह रहे हैं कि **NDA की वापसी पक्की**, तो कुछ लोग अब भी **महागठबंधन के जज़्बे** को उम्मीद की तरह थामे बैठे हैं।
लोगों की राय और ज़मीन की हकीकत में फर्क
मैं पिछले चुनावों में कई बार बिहार घूम चुका हूं। गया से लेकर मधुबनी तक, लोगों की बातें सुनकर हमेशा यही महसूस हुआ कि बिहार की राजनीति सिर्फ आंकड़ों की नहीं, एहसासों की कहानी है। लोग किसी पार्टी को सिर्फ वादों पर नहीं, बल्कि अपनी रोज़मर्रा की जद्दोजहद से जोड़कर आंकते हैं।
इस बार भी वैसा ही है। कोई कहता है “काम NDA ने किया है”, तो कोई बोलता है “हमको रोज़गार चाहिए, जुमले नहीं”। यही वजह है कि एग्जिट पोल का शोर भले ज़्यादा हो, लेकिन ज़मीन पर राय अक्सर अलग निकलती है।
तेजस्वी का सपना और जनता की कसौटी
तेजस्वी यादव का यह चुनावी सफर दिलचस्प रहा। नौजवानों के बीच उनकी पकड़ साफ दिखती है, लेकिन एग्जिट पोल में जो आंकड़े आए हैं, वो **महागठबंधन की उम्मीदों को थोड़ा ठंडा** कर देते हैं। फिर भी, बिहार की राजनीति में एक बात तय है – यहां कोई हार आख़िरी नहीं होती।
मैंने एक बार पटना के गांधी मैदान में एक बुज़ुर्ग से पूछा था, “कौन आएगा इस बार?” उन्होंने मुस्कराकर कहा, “बेटा, बिहार में जनता हर बार किसी को सबक सिखाती है, किसी को मौका देती है।” वो लाइन आज भी कानों में गूंजती है।
एग्जिट पोल: भरोसे का खेल या हाइप का हथियार?
सच कहूं तो एग्जिट पोल मुझे हमेशा थोड़े “फिल्मी ट्रेलर” जैसे लगते हैं। आप थिएटर में जाते हैं, ट्रेलर देखकर लगता है फिल्म हिट होगी, लेकिन असली कहानी टिकट खिड़की पर तय होती है। बिहार के चुनाव भी कुछ ऐसे ही हैं — हवा बनती है, टूटती है, फिर नई हवा चलती है।
इस बार के एग्जिट पोल में कहा जा रहा है कि NDA को भारी बहुमत मिलेगा और महागठबंधन मुश्किल में है। पर राजनीति में आंकड़े से ज़्यादा कहानी मायने रखती है — और बिहार की कहानी हमेशा आख़िरी पन्ने पर मोड़ लेती है।

अंत में…
बिहार का वोटर बहुत समझदार है। उसने लालू, नीतीश, मोदी — सबको देखा है, आज़माया है। वो किसी चेहरे या पार्टी के पीछे नहीं, अपने अनुभव के पीछे चलता है। इसलिए, जो आज एग्जिट पोल में जीत रहा है, कल नतीजों में ज़रूरी नहीं कि वही मुस्कुरा रहा हो।
बस यही कहूंगा, बिहार की राजनीति अभी भी सबसे ज़्यादा ‘दिलचस्प खेल’ है — जहां नतीजे से ज़्यादा सफर रोमांचक होता है।
क्या आप चाहेंगे कि मैं अब इसके लिए


