बिहार की राजनीति में एक कहावत खूब चलती है — "यहां जो दिखता है, वही नहीं होता।" इस बार भी कुछ वैसा ही नज़ारा है। **Poll of Polls** के मुताबिक़ NDA को बढ़त मिलती दिख रही है, लेकिन हवा में एक हल्का-सा कंपन है जो कहता है — मुकाबला खत्म नहीं हुआ है। **महागठबंधन** अब भी खेल में है, और जो लोग बिहार की राजनीति को नब्ज़ की तरह जानते हैं, वे समझते हैं कि "अंतिम ओवर में भी पलटी मुमकिन है।"
नीतीश कुमार का नाम अभी भी असरदार
नीतीश कुमार पर चाहे जितनी आलोचना हो, लेकिन बिहार के ग्रामीण इलाकों में उनका नाम अब भी भरोसे का प्रतीक है। मैंने पिछले हफ्ते नवादा में एक ऑटो ड्राइवर से बात की थी — बोला, “साहब, नीतीश ने सड़के बनवाईं, लाइट लगवाई, बाकी सब तो बस बात बनाते रहे।” ये लाइन अपने आप में बहुत कुछ कह देती है। शायद यही वजह है कि Poll of Polls में NDA को बढ़त मिल रही है, क्योंकि नीतीश अब भी "वोट ट्रांसफर मशीन" हैं।

महागठबंधन के पास भी है उम्मीद की डोर
महागठबंधन के पक्ष में इस बार जो चीज़ काम कर रही है, वो है युवाओं की बेचैनी और कुछ वर्गों में आर्थिक असंतोष। एक छात्र ने कहा, “सरकार बदले या ना बदले, मौका तो देना चाहिए।” ये भावना धीरे-धीरे पॉलिटिकल करंट में बदल रही है। इसलिए जो सीटें अभी Poll of Polls में NDA के खाते में दिख रही हैं, उनमें से कुछ में उथल-पुथल हो सकती है।
पिछले चुनावों की याद
मुझे याद है 2020 का नतीजा — आखिरी दो चरणों में NDA ने जो रिकवरी की थी, उसने सबको चौंका दिया था। ठीक वैसी ही स्थिति अब भी बनती दिख रही है। फर्क बस इतना है कि तब नीतीश के खिलाफ नाराज़गी ज्यादा थी, अब वो “कम बुरे विकल्प” के रूप में लौटे हैं। यह बिहार का राजनीतिक मनोविज्ञान है — यहां जनता नाराज़ होती है, पर पूरी तरह नाता नहीं तोड़ती।
बदलते समीकरणों की राजनीति
एक दिलचस्प बात यह है कि इस बार जातीय समीकरणों से ज़्यादा चर्चा "स्थिरता" की है। लोग पूछ रहे हैं, “कौन सरकार चला सकता है?” और जब सवाल ऐसा होता है, तो जवाब ज़्यादातर अनुभवी चेहरे की ओर झुकता है। यही कारण है कि NDA के खाते में 130-140 सीटों का अनुमान लग रहा है। मगर ये आंकड़े भी कच्चे हैं — बिहार में कभी भी गणित से ज़्यादा ‘भावना’ खेल जाती है।
लालू फैक्टर अभी भी ज़िंदा है
लालू यादव अब सक्रिय राजनीति में नहीं हैं, लेकिन उनका प्रभाव आज भी RJD के वोट बैंक में गहराई से महसूस किया जा सकता है। एक बूढ़े मतदाता ने कहा, “लालू भले बीमार हैं, पर न्याय के लिए लड़ाई उनकी चल रही है।” यह भावनात्मक जुड़ाव ही है जो **महागठबंधन** को अब तक ज़िंदा रखे हुए है।
अंतिम शब्द
Poll of Polls को अगर एक आईने की तरह देखें तो तस्वीर साफ है — NDA बढ़त में है, लेकिन विपक्ष की कहानी खत्म नहीं हुई। **बिहार की राजनीति में कुछ भी आखिरी नहीं होता।** नीतीश कुमार आज भी ‘किंगमेकर’ नहीं, खुद ‘किंग’ हैं, और यही बात इस चुनाव को बाकी राज्यों से अलग बनाती है।


