Bihar : नवादा में महागठबंधन में दरार, बड़े नेताओं के पाला बदलने से हिसुआ और रजौली में सियासी हलचल
नवादा में महागठबंधन में दरार ने बिहार की राजनीति को हिला दिया है। हिसुआ और रजौली विधानसभा सीटों पर अब सियासी समीकरण पूरी तरह बदलते दिख रहे हैं। कांग्रेस और राजद के कई वरिष्ठ नेताओं ने पाला बदलकर विरोधी दलों का साथ थाम लिया है। नवादा में महागठबंधन में दरार को NDA अपने पक्ष में हवा देने की रणनीति बना रहा है, जबकि विपक्ष सफाई देने में व्यस्त दिख रहा है।
Bihar नवादा में महागठबंधन में दरार, हिसुआ और रजौली में सियासी खलबली
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Bihar की सियासत फिर करवट ले चुकी है। विधानसभा चुनाव 2025 के पहले ही नवादा जिले में महागठबंधन के भीतर हलचल बढ़ गई है। खबर आई है कि कई पुराने नेता अब नई दिशा तलाश रहे हैं। कुछ ने तो खुलकर पाला बदल लिया है। हिसुआ और रजौली सीटें, जो पहले शांत थीं, अब चर्चा में हैं — और खूब।
हिसुआ में सियासी जमीन खिसकी, पुराने चेहरे बदले पाला
हिसुआ से जैसे ही खबर निकली कि राजद और कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं ने विपक्षी दल में कदम रख दिया, माहौल बदल गया। ये वही लोग थे जो पिछले दो चुनावों में पार्टी का चेहरा थे। अब दोनों ने कहा — “हम थक गए, अब वक्त है कुछ नया करने का।” बस इतना कहते ही सारा जिला हिल उठा।
लोग चौक‑चौराहों पर यही पूछते दिखे — “क्या सच में इनका झुकाव एनडीए की ओर है?” एनडीए के स्थानीय नेताओं के चेहरों पर मुस्कान है। वे कह रहे हैं कि हिसुआ में अब लड़ाई आसान नहीं, बल्कि रोमांचक होगी।
रजौली में गरम माहौल, कांग्रेस नेताओं की बगावत चर्चा में
रजौली भी अब इस राजनीतिक तूफान से बच नहीं पाया। कांग्रेस के एक पुराने जिलाध्यक्ष ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि “नेतृत्व अब जनता से कट चुका है।” और यह बयान जैसे आग की तरह फैल गया। कुछ ही घंटों में तीन और नेता खुलकर सामने आ गए।
स्थानीय लोग कहते हैं, “अब पार्टी में नेता तो हैं, पर दिशा नहीं।” कई कार्यकर्ता साइलेंट मोड में हैं, नजरें दूसरी तरफ घूम रही हैं। जिस तेजी से कांग्रेस और राजद के भीतर असंतोष उभर रहा है, उससे महागठबंधन के खेमे में बेचैनी बढ़ गई है।
टिकट बंटवारे को लेकर अंदरूनी खींचतान तेज
अंदर की बात यह है कि टिकट बंटवारे पर विवाद बढ़ता जा रहा है। हर गुट चाहता है कि उसका उम्मीदवार मैदान में उतरे। जिलास्तर के कई नेताओं का कहना है कि “ऊपर के लोग ही सब तय करते हैं, नीचे किसी को बोलने का हक नहीं।” इसी मायूसी ने अब भगदड़ का रूप ले लिया है।
राजद के एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा — “हम मेहनत करें, और टिकट बाहरवालों को मिले, तो भला क्यों टिके रहें?”
एनडीए ने मौके का पूरा फायदा उठाया
उधर, एनडीए अब इस टूट को अपने लिए वरदान मान रहा है। भाजपा और जेडीयू दोनों ही इस मौके पर अपनी रणनीति को और तेज कर चुके हैं। स्थानीय नेता दावा कर रहे हैं कि नवादा अब NDA का गढ़ बनने जा रहा है।
भाजपा के एक प्रवक्ता ने कहा — “महागठबंधन सिर्फ पोस्टरों में मजबूत दिखता है, असल में अंदर से बिखर चुका है।” लोजपा ने भी अपनी तरफ से मैदान में पूरी ताकत झोंक दी है। कहा जा रहा है कि हिसुआ और रजौली दोनों सीटों पर अब कड़ा त्रिकोणीय मुकाबला होगा।
ग्रामीण जनता देख रही है, पर बोल नहीं रही
गांव की गलियों में यह चर्चा आम हो चली है। लोग बस मुस्कुराते हैं और कहते हैं — “नेता बदल रहे हैं, लेकिन हमारा हाल नहीं।” एक किसान ने कहा, “हर चुनाव से पहले वही चेहरे, वही बातें। फर्क सिर्फ झंडे का रंग।” यह बयान शायद उन हजारों वोटरों के मन की बात कह देता है।
कई लोग कहते हैं कि अभी मतदाता चुप हैं, लेकिन भीतर कुछ पक रहा है। ये चुप्पी किसी बड़े बदलाव का संकेत भी हो सकती है।
महागठबंधन बोला – ये प्रचार की चाल है, सच्चाई कुछ और
राजद प्रवक्ता ने एक वक्तव्य जारी कर बताया कि विरोधी दल अफवाह फैला रहे हैं। “हम सब साथ हैं, कोई दरार नहीं है। जनता भ्रम में न आए,” उन्होंने कहा। लेकिन दूसरी ओर, मीडिया रिपोर्टें कहती हैं कि अंदरखाने में कई नेता पटना जाकर दूसरे दलों से बातचीत कर रहे हैं।
कांग्रेस ने भी यही बात दोहराई कि ये सब “फर्जी खबरें” हैं। उन्होंने कहा कि “महागठबंधन 2025 में पहले से ज्यादा मजबूती से मैदान में उतरेगा।” लेकिन माहौल कुछ और ही कहानी कहता नजर आता है।
चाय की दुकानों पर चर्चा, रजौली‑हिसुआ अब दिलचस्प जंग
जिले के लोग हर दिन नए अंदाज में राजनीति पर बहस करते हैं। कोई कहता है — “अबकी बार महागठबंधन टूटेगा।” कोई जवाब देता है — “अभी वक्त है, सब मिल जाएंगे।” चाय की प्यालियों और अखबारों के बीच चलती तकरार, जैसे इशारा कर रही हो कि इस बार बिहार का खेल साधारण नहीं।
नवादा की कहानी बिहार के आने वाले परिणाम बदल सकती है
नवादा की यह हलचल सीमित नहीं है। यहां के समीकरण पूरे दक्षिण बिहार को प्रभावित करते हैं। अगर महागठबंधन की यह दरार गहरी हुई, तो इसका असर गया और नालंदा तक दिख सकता है। राजनीतिक विश्लेषक भी कह रहे हैं — “यह कोई छोटी बात नहीं। यह तय करेगा कि 2025 में बिहार की सत्ता किसके हाथ जाएगी।”
फिलहाल, माहौल चुनाव से पहले वाले तनाव से भरा हुआ है। और नवादा की सड़कें अब सिर्फ वोट की नहीं, वफादारी की परीक्षा भी बन चुकी हैं।
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