Bihar News सीतामढ़ी में बागमती नदी हादसा, छठ घाट निर्माण के दौरान पांच युवक डूबे, तीन की मौत, एक लापता
बिहार के सीतामढ़ी जिले से दर्दनाक खबर सामने आई है। शनिवार की दोपहर सीतामढ़ी में बागमती नदी में पांच युवक डूब गए। सभी छठ पूजा के लिए घाट तैयार कर रहे थे। दोपहर बाद जब काम खत्म हुआ, वे मज़ाक‑मज़ाक में नहाने उतर गए। पलभर में सबकुछ बदल गया। नदी की तेज़ धारा ने पांचों को खींच लिया। तीन के शव निकल आए, एक अब तक लापता है।
छठ की तैयारी में जुटे थे गांव के पांच नौजवान
यह हादसा मेजरगंज थाना क्षेत्र के हरिहर गांव का है। गांव के कुछ नौजवान मिलकर घाट साफ कर रहे थे। दोपहर करीब तीन बजे काम खत्म हुआ। सूरज तेज़ था, तो सबने कहा – चलो, अब नहा लेते हैं। पांचों दोस्त हंसते‑हंसते नदी उतर गए। पानी शांत दिख रहा था, लेकिन नीचे धारा तेज़ थी।
गांव वालों के मुताबिक सबसे पहले मनीष नाम का लड़का गहरे पानी में चला गया। उसके साथियों ने उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन एक‑एक कर सभी बहने लगे। कुछ ही मिनटों में सबकी चीखें नदी में खो गईं। लोग दौड़े, पर देर हो चुकी थी।
मछुआरों ने दिखाई हिम्मत, दो को बाहर निकाला
नदी किनारे मछली पकड़ रहे तीन मछुआरे नाव लेकर भागे। उन्होंने तुरंत छलांग लगाई। दो युवकों को किसी तरह बाहर निकाला गया। दोनों बेहोश थे। गांव में अफरातफरी मच गई। “बचाओ‑बचाओ” की आवाज़ चारों तरफ थी। बाकी युवक पानी में लापता थे।
सूचना मिली तो पुलिस और SDRF की टीम पहुँची। शाम होते‑होते तीन शव बरामद हो गए। एक युवक का अब तक पता नहीं चल सका।
मृतकों की पहचान, गांव में पसरा मातम
मृतकों में हरिहर गांव के रहने वाले 20 वर्षीय मनीष कुमार, 19 वर्षीय चंदन चौधरी और 18 वर्षीय राहुल कुमार शामिल हैं। लापता युवक रौशन बताया जा रहा है। दो चचेरे भाइयों को मछुआरों ने निकाल लिया। गांव में सन्नाटा है। हर कोई बस एक ही बात कहता है — “तेरे सुकून के लिए घाट बना रहे थे, भगवान, और तूने इन्हें ही ले लिया।”
मनीष के पिता ने कहा – “बेटा पूजा की तैयारी करने गया था, अब घर खाली लग रहा।” पास ही बैठी मां कुछ बोल नहीं पा रही थी, बस दहाड़ मारकर रो रही थी।
पुलिस-प्रशासन की टीम मौके पर, SDRF का ऑपरेशन जारी
स्थानीय पुलिस और प्रशासन तुरंत पहुंचा। SDRF की टीम ने रातभर तलाशी अभियान चलाया। एक अधिकारी ने बताया – “पानी की गहराई और धारा बहुत तेज़ है, हम हर एंगल से तलाश कर रहे हैं।” अंधेरा बढ़ने पर टीम को रोकना पड़ा। सुबह फिर अभियान शुरू होगा।
थानाध्यक्ष ने बताया कि मृतकों के शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए गए हैं और परिजनों को सरकारी सहायता दी जाएगी। उन्होंने लोगों से अपील की कि बिना सुरक्षा नदी में न उतरें।
ग्रामीण बोले – प्रशासन ने चेतावनी नहीं दी
गांव में गुस्सा है। लोग कह रहे हैं कि बागमती इस मौसम में उफान पर रहती है, फिर भी किसी ने सावधानी नहीं बरती। “हर साल घाट बनाते हैं, प्रशासन निरीक्षण तक नहीं करता,” एक बुजुर्ग ने कहा। कई युवकों ने मांग की है कि घाट पर सुरक्षा व्यवस्था की जाए ताकि फिर कोई ऐसी घटना न हो।
कुछ ने बताया कि बागमती किनारे कोई चेतावनी बोर्ड तक नहीं लगा था। लोग कहते हैं, अगर किसी ने पहले ही सावधान कर दिया होता तो पांचों दोस्त आज जिंदा होते।
घरों में मातम, गांव में खामोशी
अब हर गली से सिर्फ रोने की आवाजें आती हैं। जहाँ कल इन युवकों की हंसी गूंजती थी, वहां आज लोग सिर पकड़कर बैठे हैं। महिलाएं घाट तक दौड़ रही थीं, किसी का बेटा, किसी का भाई पानी में गया था।
एक महिला बोली – "छठ पूजा से पहले गांव पर दुखों का साया छा गया।" बच्चों को तक नहीं समझाया जा रहा कि क्या हुआ। पूरी बस्ती में आग की तरह यह खबर फैल गई है।
अधिकारियों ने परिजनों से की मुलाकात, मदद का वादा
देर शाम जिलाधिकारी और एसडीआरएफ अधिकारियों ने घटनास्थल का दौरा किया। उन्होंने परिजनों से मिलकर सांत्वना दी और कहा कि पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिया जाएगा। अधिकारी बोले, “यह हादसा बहुत दुःखद है, लेकिन यह भी सबक है — नदी से खेलना कभी सुरक्षित नहीं होता।”
एक स्थानीय पत्रकार बोले – “हमने पहले भी प्रशासन को कहा था कि घाटों पर रस्सी और संकेत बोर्ड लगाए जाएं, पर कोई ध्यान नहीं दिया।” प्रशासन अब चौकन्ना हो गया है। छठ से पहले सभी घाटों पर सुरक्षा कर्मी और गोताखोर तैनात किए जाएंगे।
लोगों की अपील – शायद अब कोई सबक ले
हर साल बागमती में डूबने की घटनाएं होती हैं, लेकिन जागरूकता अब भी नहीं। इस बार यह हादसा छठ जैसी धार्मिक भावना के बीच हुआ, इसलिए दर्द और गहराता है। गांव के लोग कह रहे हैं – "इस बार घाट साफ करने जाएंगे तो डर जरूर रहेगा।"
जो पांच दोस्त घाट बनाने उतरे थे, अब गांव के लोग उनकी याद में वही घाट बना रहे हैं। फर्क इतना है कि अब वहां हंसी नहीं, सिसकियाँ हैं।
बागमती की मौन लहरें, जिनमें गुम हो गई पांच ज़िंदगियाँ
सीतामढ़ी में बागमती नदी की लहरें अब शांत दिख रही हैं, पर गांव का दिल अब भी उथल‑पुथल में है। ये पांच लड़के सिर्फ छठ की सेवा में लगे थे, लेकिन अब उनका नाम स्मृति में रहेगा। मां बागमती को तो जीवन देने वाली कहा जाता है, पर इस बार उसने सेवा करते बेटों को अपने आंचल में समा लिया।
शाम होते ही सूरज डूबा और बागमती की धारा में बस वही सन्नाटा रह गया, जिसमें गांव का रोना और नदी की धीमी लहरें एक‑दूसरे में खो गईं।


