Bihar : राजगीर में विश्व शांति स्तूप की 56वीं वर्षगांठ, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान हुए शामिल, कई देशों के प्रतिनिधि बने साक्षी

राजगीर में विश्व शांति स्तूप की 56वीं वर्षगांठ बड़ी धूमधाम से मनाई गई, जहां बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। समारोह में जापान, श्रीलंका, नेपाल, थाईलैंड और कई देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। राजगीर में विश्व शांति स्तूप की 56वीं वर्षगांठ का यह उत्सव बिहार की समृद्ध बौद्ध संस्कृति और शांति संदेश का प्रतीक बना।

Bihar : राजगीर में विश्व शांति स्तूप की 56वीं वर्षगांठ, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान हुए शामिल, कई देशों के प्रतिनिधि बने साक्षी

Bihar राजगीर में विश्व शांति स्तूप की 56वीं वर्षगांठ, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान हुए शामिल, कई देशों के प्रतिनिधि बने साक्षी

 

राजगीर की सुबह कुछ और ही थी। ठंडी हवा, पहाड़ियों पर फैली धुंध और दूर से दिखता वह सफेद चमकता गुंबद। विश्व शांति स्तूप का नाम सुनते ही मन शांत हो जाता है। और शनिवार की सुबह यह स्थल जीवंत था—क्योंकि यहां उसकी 56वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी। हजारों लोग पहुंचे, कुछ श्रद्धा से, कुछ देखने की इच्छा से। माहौल अलग था, पवित्र भी।

 

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने दी श्रद्धांजलि, बोले बिहार शांति की धरती है

बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान सुबह ठीक नौ बजे पहुंचे। सफेद कपड़े, सादा चेहरा, लेकिन भाव गंभीर। उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं संग परिक्रमा की, फिर दीप प्रज्वलित किया। वक्तव्य देते हुए बोले, “बिहार वह मिट्टी है जहाँ से बुद्ध का शांति संदेश निकला था। यह केवल भारत नहीं, मानवता का केंद्र है।” उनके ये शब्द सुनकर सभा में बैठे विदेशी मेहमानों ने तालियाँ बजाईं।

राज्यपाल ने बिहार सरकार की सराहना करते हुए कहा कि धार्मिक पर्यटन से न केवल अर्थव्यवस्था बढ़ती है बल्कि लोगों के मन में आपसी जुड़ाव भी आता है। उन्होंने यह भी कहा कि शांति का अर्थ सिर्फ युद्ध का न होना नहीं, बल्कि मन का शांत रहना है।

 

56 साल पहले हुआ था इस अद्भुत स्तूप का निर्माण

1969... वह समय जब जापान के भिक्षु निप्पोनज़न म्योहो जी समाज ने बिहार की इस पहाड़ी पर दुनिया का पहला शांति स्तूप बनाने की पहल की थी। लक्ष्य सरल था—“दुनिया में युद्ध नहीं, संवाद हो।” धीरे‑धीरे कई देशों की मदद से यह निर्माण पूरा हुआ। कहा जाता है, जब पहली बार इसकी घंटी बजी थी, तब राजगीर की हवाएँ भी शांत हो गई थीं।

आज 56 साल बाद भी यह स्थान उतनी ही ऊर्जा से भरा है। हर उम्र का व्यक्ति यहां कुछ पा लेता है — कभी शांति, कभी स्मृतियाँ, कभी सिर्फ मौन।

 

कई देशों से आए मेहमान, प्रार्थना ने बदला माहौल

इस समारोह में जापान, थाईलैंड, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका के प्रतिनिधि विशेष तौर पर शामिल हुए। सभी पारंपरिक वस्त्रों में थे। एक पल को लगा मानो पूरा पर्वत जैसे एशिया की एकता का प्रतीक बन गया हो। घंटियों की आवाज़, भिक्षुओं के मंत्र और हल्की हवा का संगीत—सब कुछ मिलकर वातावरण को शांत कर रहा था।

श्रीलंका से आए भिक्षु आनंदा ने कहा, “यहाँ होना सिर्फ यात्रा नहीं, यह आत्मा को पुनर्जीवित करने जैसा है।” पास बैठे एक भारतीय पर्यटक ने धीरे से कहा, “सही कहा, यहां आकर लगता है दुनिया में अब भी सच्ची शांति जिंदा है।”

 

स्थानीय लोगों में विशेष उत्साह, प्रशासन ने की सख्त व्यवस्था

राजगीर के लोग इस दिन को त्योहार की तरह मानते हैं। दुकानों पर भीड़ थी, बच्चों के हाथों में झंडे, और मंदिर रास्ते तक फूलों से सजे थे। प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे। एसपी खुद मौके पर मौजूद थे। भीड़ का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि दो किलोमीटर दूर तक वाहन खड़े दिखे।

शाम तक आने वालों का ये सिलसिला नहीं थमा। कोई शीर्ष से स्तूप देख रहा था, कोई बस हाथ जोड़कर मौन था। हर चेहरे पर शांति थी, लेकिन दिलों में गर्व भी।

 

राज्यपाल बोले – “बिहार ने काफ़ी कुछ खोया, लेकिन अपनी आत्मा नहीं”

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने अपने संबोधन में भावुक होते हुए कहा, “बिहार ने शायद औद्योगिक पहचान खो दी हो, लेकिन उसकी आत्मा अब भी जीवित है।” उन्होंने कहा कि दुनिया जब हिंसा और युद्ध से थक जाती है, तो लोग यहाँ आते हैं—राजगीर, नालंदा या बोधगया। यह त्रिकोणीय भूमि भारत की आध्यात्मिक पहचान है।

उन्होंने युवाओं से अपील की—“अगर आप शांति चाहते हैं, तो खुद से शुरू करें। अहिंसा कोई पुस्तक का शब्द नहीं, यह जीने का तरीका है।” इस वाक्य पर पूरा सभागार कुछ सेकंड के लिए खामोश हो गया।

 

बौद्ध भिक्षुओं का भव्य जुलूस और प्रार्थना‑गीत

कार्यक्रम का अगला हिस्सा सबसे अद्भुत था। सैकड़ों भिक्षु पीली वस्त्रधारी पंक्तियों में स्तूप की परिक्रमा में निकले। उनके हाथों में धूप, और पैरों में धीमी चाल। बीच‑बीच में गूंज रहे मंत्र — "नमो म्योहो रेंग के क्यो"। इस प्रार्थना में वह लय थी जो दिल तक उतर जाती है।

छोटे बच्चे दूर से यह दृश्य देख मुस्कुरा रहे थे। एक बुजुर्ग कह रहे थे — “ऐसे नज़ारे एक युग में एक बार देखने को मिलते हैं।”

 

शाम का दृश्य जादुई, जब स्तूप रोशनी में नहाया

जैसे‑जैसे सूरज ढला, राजगीर पर सुनहरी रोशनी फैल गई। और अचानक, स्तूप पर लगी लाइटें चमक उठीं। पूरा परिसर सफेद और सुनहरी रोशनी में दमक रहा था। पर्यटक दीयों की कतारों के बीच तस्वीरें ले रहे थे। कुछ ने चुपचाप आंखें बंद कर ध्यान लगाया। “यही असली शांति है,” किसी ने पुकारा, और सबने सिर हिलाया।

 

सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने जोड़ा बिहार की धरती से भावनात्मक रिश्ता

राज्यपाल के संबोधन के बाद मंच पर बिहार के लोक कलाकारों ने सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुत किया। फिर विदेशी कलाकारों की भिक्षु गायन मंडली ने बौद्ध भजन गाए। तालियों की गूंज देर तक गूँजती रही। नालंदा विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी कार्यक्रम में भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में सभी ने एक साथ शांति दीप जलाया।

 

समापन में राज्यपाल ने कहा – “बुद्ध के इस बिहार पर गर्व करें”

कार्यक्रम खत्म होने के बाद जब राज्यपाल ने अंतिम भाषण दिया, तो कहा, “राजगीर सिर्फ एक जगह नहीं, यह विचार है – जो कहता है, दुनिया में तिरस्कार नहीं, सम्मान बढ़ाओ।” उन्होंने मंच से उतरते वक्त विदेशी प्रतिनिधियों का हाथ थाम कर नमस्कार किया। यह छोटा–सा दृश्य सबसे यादगार बन गया।

वर्षगांठ खत्म हुई, भीड़ लौट गई, लेकिन वह मंत्र, वह शांति की गूंज देर रात तक पहाड़ी में तैरती रही। विश्व शांति स्तूप फिर वही करता रहा जो उसका असली धर्म है — दुनिया को मौन में शांति सिखाना।