बिहार राजनीति में हलचल : बोले मुकेश सहनी, महागठबंधन में बहुत कुछ चलता रहा, पिछले एक हफ्ते में कई उतार-चढ़ाव आए
बिहार की राजनीति में नई चर्चा शुरू हो गई है। वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने कहा कि महागठबंधन में बहुत कुछ चलता रहा और पिछले एक हफ्ते में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। इस बयान से बिहार के सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। विरोधियों के साथ-साथ साथी दल भी अब उनकी बातों पर गौर कर रहे हैं।
महागठबंधन में उठापटक जारी, बोले मुकेश सहनी – पिछले एक हफ्ते में बहुत कुछ चलता रहा
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बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है। मौसम भी बदला और सियासी फिजा भी। विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी ने अपने बयान से एक बार फिर महागठबंधन की अंदरूनी राजनीति में हलचल ला दी है। उन्होंने कहा, “महागठबंधन में बहुत कुछ चलता रहा, लेकिन हमने चुप्पी साधे रखी। पिछले एक हफ्ते में बहुत कुछ हुआ, लोगों को अंदाज़ा भी नहीं।” उनके लहजे में ठहराव था और शब्दों में कई अनकही बातें।
एक हफ्ते की हलचल और अंदरूनी खींचतान
पिछले कुछ दिनों में महागठबंधन के भीतर काफी तनाव देखा गया। नेताओं की मुलाकातें बढ़ीं, लेकिन प्रेस के सामने कोई कुछ नहीं बोला। सहनी का यह बयान मानो उस खामोशी के पीछे का सच कह गया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “राजनीति में हर दिन कुछ नया होता है... कभी खुशी, कभी सबक।” लोगों ने समझ लिया कि ये ‘सबक’ किसके लिए था।
वीआईपी प्रमुख का इशारा आरजेडी की ओर?
राजनीतिक गलियारों में माना जा रहा है कि सहनी का इशारा आरजेडी की तरफ था। पिछले कुछ दिनों में सीट बंटवारे को लेकर विवाद की खबरें भी आई थीं। हालांकि उन्होंने नाम नहीं लिया, पर बोले, “हम किसी के विरोधी नहीं, पर अपने अधिकार की बात जरूर करेंगे।” मुकेश सहनी का यह कहना साफ इशारा था कि गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है। उनके बयान के बाद से ही कई वरिष्ठ नेता हरकत में आ गए हैं।
सहनी का दर्द और जनता से सीधा संवाद
सहनी अपने बयानों में अक्सर भावनात्मक हो जाते हैं। इस बार भी उन्होंने कहा, “मैंने राजनीति सेवा के लिए की, सौदेबाजी के लिए नहीं।” उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने मल्लाह और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आवाज उठाई, लेकिन कई बार अनसुना कर दिया गया। लोगों के बीच बोले, “हमेशा सोचता हूं, अगर मैं चुप रह गया तो हमारी बात कौन करेगा।” उनके शब्दों में थकान थी, लेकिन लहजे में जिद भी थी।
महागठबंधन में सियासी समीकरण बदलते नजर आए
बिहार की विरोधी राजनीति को देखकर लगता है जैसे सबने अपनी-अपनी चालें पहले से तय कर रखी हैं। महागठबंधन के अंदर नेताओं की रणनीति और अहंकार टकरा रहे हैं। मुकेश सहनी का बयान इसी गहरी राजनीति का नतीजा है। उन्होंने कहा, “हमने गठबंधन में रहकर सहयोग किया, अब उम्मीद है कि हमारे लोग भी वही भावना दिखाएं।” इन शब्दों के पीछे न सिर्फ निराशा थी, बल्कि चेतावनी भी।
तेजस्वी यादव से बातचीत, मगर भरोसे में कमी
सहनी और तेजस्वी यादव की मुलाकात की खबरें फैल चुकी हैं। पर सवाल ये है – क्या इससे मतभेद खत्म हो गए? सहनी ने कहा, “भरोसा दोनों तरफ से होना चाहिए, राजनीति में एकतरफा रिश्ता टिकता नहीं।” उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मैं तेजस्वी जी का सम्मान करता हूं, लेकिन मेरे सिद्धांत मेरे फैसले तय करते हैं।” यह सुनकर कई पुराने समर्थक सिर हिलाते दिखे। कभी उनके चेहरे पर दुख, तो कभी आत्मविश्वास।
गांवों की मिट्टी में लौटे सहनी
बीच के तनाव के बाद सहनी ने दोबारा जनता से जुड़ने का रास्ता पकड़ा। उन्होंने बिहार के कई इलाकों में जाकर लोगों से सीधा संवाद शुरू किया। कहते हैं, “नेता और जनता का रिश्ता बोलियों में नहीं, भरोसे में होता है।” गांवों में वे बिना मंच के बोले, कभी ठेले पर बैठकर चाय पीते दिखे। मुकेश सहनी के ऐसे सादे पल अब सोशल मीडिया पर वायरल हो गए हैं। लोग कह रहे हैं – “सहनी फिर पुराने रंग में लौट आए हैं।”
महागठबंधन की खामोशी, लेकिन अंदर चालबाजी
सहनी के बयान के बाद से अब तक आरजेडी की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि अंदरखाने बैठकों की रफ्तार तेज़ है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि यह बयान असंतोष का संकेत भर नहीं, बल्कि आने वाले संघर्ष की शुरुआत है। मज़े की बात है कि जनता सब समझ रही है। लोग कह रहे हैं, “सहनी चुप नहीं रहेंगे, बोलेंगे जरूर।” और जब वे बोलते हैं, तो असर होता है।
बिहार चुनाव के आसार और वीआईपी की भूमिका
आने वाले महीनों में बिहार चुनाव 2025 की तैयारी तेज होने वाली है। हर पार्टी अपने समीकरण दुरुस्त करने में जुटी है। सहनी की वीआईपी पार्टी भले सीटों के लिहाज से छोटी दिखती हो, लेकिन प्रभाव बड़ा है। उन्होंने कहा, “जनता जब जागेगी, तो बड़े-बड़े महलों की नींव हिल जाएगी।” यह लाइन अब बिहार की गलियों में दोहराई जा रही है। उनका सियासी रोल अब निर्णायक मोड़ पर दिख रहा है।
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