Bijnor flood : की त्रासदी गंगा में गिरे मजदूर और नाव से तटबंध बचाने की जंग
बिजनौर में आई बाढ़ ने हालात भयावह कर दिए हैं। गंगा नदी के तेज बहाव में मजदूरों के गिरने की घटना ने सभी को दहला दिया। तटबंध बचाने के लिए नावों से लगातार संघर्ष जारी है। प्रशासन, राहत दल और स्थानीय लोग मिलकर इस जंग को लड़ रहे हैं, लेकिन हालात अब भी गंभीर बने हुए हैं।
गंगा के तेज बहाव में मजदूर गिरे लेकिन मौत के मुंह से निकली जान उत्तर प्रदेश में इस समय बाढ़ की स्थिति भीषण होती जा रही है। खासकर गंगा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ने से कई जिलों के गांव खतरे में हैं। बिजनौर में मंगलवार को एक बड़ा हादसा तब टल गया जब तटबंध पर काम करने वाले तीन मजदूर गंगा में गिर गए। गंगा का बहाव इतना तेज था कि पल भर के लिए लगा जैसे ये मजदूर अब जिंदा नहीं बच पाएंगे। मौके पर मौजूद अन्य श्रमिक और बचाव दल ने फौरन स्थिति संभाली और रस्सों के सहारे उन्हें बाहर खींच लिया। गांववालों का कहना है कि अगर कुछ देर और हो जाती तो बड़ा नुकसान हो सकता था।
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गांव के लोग क्यों कर रहे हैं तटबंध बचाने की कोशिशें
गंगा में कटान की समस्या हर साल सामने आती है। इस बार भी बिजनौर के कई गांव खतरे में हैं। बाढ़ ने जिस तरह खेतों और घरों की तरफ रुख किया, उससे ग्रामीणों ने खुद मोर्चा संभाल लिया है। वे दिन-रात मेहनत करके तटबंध पर कटान रोकने की कोशिश कर रहे हैं। सबसे खास बात यह है कि यहां सामान्य उपकरण नहीं हैं, बल्कि ग्रामीण अपनी समझ और मेहनत से नाव पर बल्लियां लादकर लाते हैं और उन्हें पानी में मजबूती से गाड़ते हैं। उनका मानना है कि इस तरीके से तटबंध मजबूत रहेगा और पानी का दबाव टूटकर गांव में नहीं घुसेगा।
कैसे काम आ रही हैं नाव और बल्लियां
ग्रामीणों ने बांस की बल्लियां और लकड़ी का सहारा लिया है। नाव के सहारे ये बल्लियां पानी के बीचोंबीच ले जाई जाती हैं। फिर मजदूर उन्हें कीचड़ और मिट्टी में गाड़कर दीवार जैसी लाइन बना देते हैं। इससे नदी का बहाव सीधा तटबंध पर टकरा नहीं पाता और कटान की रफ्तार धीमी हो जाती है। बारिश और बाढ़ दोनों से लड़ने का यह अनोखा तरीका दिलचस्प भी है और बेहद मेहनत भरा भी। गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सब इस काम में हाथ बंटा रहे हैं क्योंकि सबको पता है कि अगर तटबंध टूट गया तो पूरा गांव डूब जाएगा।
बाढ़ की स्थिति से लोग कैसे कर रहे हैं सामना
बाढ़ केवल घर और खेत नहीं निगलती, यह लोगों की जिंदगी की रफ्तार भी रोक देती है। बिजनौर के कई परिवारों ने खेतों में खड़ी फसल खो दी है। मकान की दीवारें गिरने लगी हैं और कई जगह लोग ऊंचे स्थानों पर शरण ले रहे हैं। सरकारी टीम राहत बांट रही है, लेकिन सब तक मदद नहीं पहुंच पा रही है। ऐसे में ग्रामीण अपनी हिम्मत और आपसी सहयोग से एक-दूसरे का सहारा बने हुए हैं। लोग खाने-पीने का सामान साझा कर रहे हैं, बच्चों के लिए सुरक्षित जगह ढूंढ़ रहे हैं और बूढ़ों को नाव से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रहे हैं।
स्थानीय प्रशासन की ओर से उठाए गए कदम
प्रशासन की टीमें लगातार हालात पर नजर बनाए हुए हैं। नगर के अधिकारियों ने बताया कि नदी का जलस्तर बढ़ रहा है लेकिन हालात नियंत्रण में हैं। मजदूरों के गंगा में गिरने की घटना के बाद सभी को सुरक्षा उपकरण पहनने के निर्देश दिए गए हैं। राहत शिविर बनाए गए हैं जहां लोगों को भोजन और दवाइयां मिल रही हैं। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि सरकारी मदद सीमित है और उन्हें खुद ही तटबंध बचाने जैसी जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। अगर अधिकारी समय रहते स्थायी इंतजाम करें तो हर साल इस तरह की मुश्किल कम हो सकती है।
बाढ़ के बीच इंसानियत और उम्मीद की मिसाल
बिजलपुर, अमानगढ़ और आसपास के गांवों में बाढ़ का पानी हर तरफ है। लेकिन इस हालात में भी इंसानियत जिंदा है। पड़ोस के लोग एक-दूसरे के घरों में बच्चों को बचाने के लिए ठहरा रहे हैं। जिन्हें नाव चलानी आती है वे पूरी रात चौकसी में रहते हैं ताकि कोई गांववासी मुसीबत में न फंस जाए। महिलाएं चूल्हे पर सामूहिक खाना पकाकर दूसरों तक पहुंचा रही हैं। गांव के बुजुर्ग कह रहे हैं कि ऐसी बाढ़ उन्होंने कई बार देखी है लेकिन हर बार एकजुट होकर मेहनत करने की वजह से गांव बचा है। इस बार भी यही जज्बा देखने को मिल रहा है।
भविष्य के लिए क्या सबक है इस बाढ़ से
हर साल बाढ़ आना मानो उत्तर प्रदेश के कई जिलों की किस्मत बन गई है। सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों स्थायी समाधान नहीं खोजा जा रहा। तटबंध की कटान से बचाव केवल बल्लियों या नावों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। जरूरत है कि प्रशासन और सरकार मजबूत बांध और पक्के इंतजाम करवाए। अगर समय रहते तकनीकी उपाय किए जाएं तो हर साल हजारों किसानों और मजदूरों को अपना घर-बार नहीं खोना पड़ेगा। बिजनौर की इस घटना से यही सबक मिलता है कि लोगों की जान और मेहनत बचाने के लिए हमें पहले से तैयारी जरूर करनी होगी।
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