मंगलवार शाम थी। बिलासपुर की पहाड़ियों पर घने बादल थे। बारिश थम ही नहीं रही थी। एक निजी बस अपने रूट से चल रही थी। 32 सीटों वाली बस में बैठकर लोग सोच भी नहीं सकते थे कि कुछ ही देर में उनकी जिंदगी बदल जाएगी। अचानक जोरदार आवाज आई। किसी को समझ नहीं आया कि हुआ क्या। पहाड़ी से बड़े-बड़े पत्थर और मिट्टी सीधे बस पर आ गिरी। अंधेरा हो गया, लोग डर से कांप उठे। हर कोई सीट पकड़ रहा था, कुछ ने सिर झुका लिया, कुछ ने सीट के नीचे घुसने की कोशिश की।
चीख-पुकार, हंगामा और बस की खिड़कियां बंद
भीतर हर तरफ शोर मच गया। किसी ने मोबाइल से रोशनी करनी चाही। नेटवर्क नहीं था। बाहर चौकों पर बचाव दल आने की आवाजें मगर मदद देर से पहुंची। इतने में बस में बैठा एक भाई अपनी बहन की आवाज सुनता है, 'भैया, कहीं बाहर निकलो!' परेशानी हर किसी के चेहरे पर साफ दिख रही थी। छोटा भाई, बड़ी बहन – दोनों डरे, सहमे, लेकिन होशियार। बस के एक कोने से मिट्टी का ढेर हटाने की कोशिश की।
बहन बोली- बस गिरी, तो सीट के नीचे छिप गए
"पहाड़ से जब मलबा गिरने लगा, हम अचानक सीट के नीचे घुस गए," यह कहना है उस बहन का, जो बस की सबसे पीछे वाली सीट पर थी। उसका भाई बोला, "हाथ पकड़कर, आंख बंद कर ली थी। सोचा था अब कुछ नहीं होगा। लेकिन वहीं चुपचाप रहे।" बाहर से धूल और धुआं अन्दर आ रहा था। सांस लेना तक मुश्किल हो गया था। कोई-कभी कोई व्यक्ति जोर से चिल्लाता – बचाओ! मगर सबकी आवाज डूबती रही मलबे में।
मौत की सांस और उम्मीद की तलाश
कई लोग बेहोश पड़े थे। हवा रुक गई थी। कुछ यात्री खिड़की पर दस्तक दे रहे थे। उस माहौल में केवल दो चीजें थीं – डर और उम्मीद। भाई-बहन की जोड़ी धीरे-धीरे सीट के पास बचे छोटे से खाली रास्ते से खिसकते हुए खड़ी हुई। उस छोटी-सी जगह से वे बाहर झांकने की कोशिश करने लगे। उधर पहाड़ से ऊपर बारिश अब भी गिर रही थी।
बहुत देर बाद पहुंचे बचाव दल, और चली जिंदगी की दूसरी लड़ाई
करीब एक घंटा निकल चुका था। Rescue Team आने लगी। JCB की आवाज सुनाई दी। किसी की आवाज आई, "बाहर निकलो, बचाओ, आवाज दो।" भाई-बहन को लगा कि अब उम्मीद थोड़ी है। किसी तरह से वह दोनों धीरे-धीरे बस के बाहर निकाले गए। उनके कपड़े मिट्टी से सने थे, हाथ-पांव कांप रहे थे। बचावकर्मियों ने उन्हें गले से लगाया, "अब सब ठीक है" – ऐसा बोलकर हिम्मत दी। दोनों AIIMS, बिलासपुर ले जाए गए। मां-बाप को खबर दी गई। पर उनके अलावा 15 लोग वापस कभी न लौट सके।
हर किसी की आँखें नम, पूरा गांव सदमे में
जिसने भी हादसे की खबर सुनी, उसकी आंखें भर आईं। गांव में मातम पसरा। घरों में रोशनी कम और खामोशी ज़्यादा। "कैसी मुसीबत थी ये," एक बुजुर्ग बोले। हर कोई यही दोहराता – छोटा सा पल और पूरी जिंदगी बदल गई। पहाड़ों की खूबसूरती के बीच इतना खौफनाक मंजर किसी ने न देखा था।
सरकार की सहायता और नेताओं की संवेदनाएं
प्रधानमंत्री ने शोक व्यक्त किया, "भगवान मृतकों को शांति दे" और घायलों के लिए पैसे की सहायता भी घोषित की गई। मुख्यमंत्री ने तुरंत Rescue और चिकित्सा की व्यवस्था के आदेश दिए। मंत्री खुद रात में घटनास्थल पर पहुंचे। अधिकारियों ने भरोसा दिलाया कि भविष्य में बचाव दल और तेज काम करेगा।
असली बहादुरी भाई-बहन की, बच्चों की हिम्मत ने बदली तस्वीर
जिन दो बच्चों ने जान बचाई, उनकी बहादुरी की कहानी चर्चा में है। उन्होंने डर के बीच भी होश नहीं खोया। जब सब बेहोश थे, दोनों ने एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया, एक छोटे रास्ते से बाहर आने की हर मुमकिन कोशिश की। अब दोनों अस्पताल में हैं, डॉक्टर्स उनका इलाज कर रहे हैं। उनकी बहादुरी गांवभर में मिसाल बन गई।
बारिश, पहाड़ और खामोश रात
इस रात को कोई भूल नहीं पाएगा। लगातार बारिश, कच्चा पहाड़ और बेबस लोग। हादसे के बाद पहाड़ी इलाका डरा-डरा सा दिखता है। जो बच्चे बच गए, उनके लिए ये रात सारी उम्र की कहानी बन गई।
पहाड़ का दर्द, बच्चों की कहानी और सबकी आंखें नम
बिलासपुर का ये हादसा सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि सैकड़ों परिवारों की उम्मीदों का अंत भी है। पीड़ित बच्चों ने अपनी बहादुरी से सबको सिखाया कि डर के समय भी हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए। प्रशासन, गांव के लोग और पूरा हिमाचल इस दर्द में साथ है। कभी-कभी पहाड़ भी रो पड़ते हैं और इंसान बस मूकदर्शक रह जाता है।