BMW Z4 को देखकर जो पहला ख्याल आता है, वो है मस्ती वाली मशीन। हां, ये कार किसी पारिवारिक काम की नहीं, ये बनी है सिर्फ उनके लिए जो सड़क को अपना मंच मानते हैं। वो लोग जो ट्रैफिक में भी शेड्स पहनकर खिड़की नीचे करते हैं और इंजन की घरघराहट को संगीत समझते हैं।
डिज़ाइन – लंबी नाक, छोटी कमर और बड़ा एटीट्यूड
Z4 हमेशा से एक ऐसी कार रही है जो नज़रें खींचती नहीं, उन्हें रोक देती है। लंबा बोनट, बैठने की नीची पोजिशन और वो स्लिक LED हेडलैंप्स – सबकुछ ड्रामा से भरा। मैंने जब पहली बार Z4 को जयपुर की सड़कों पर चलते देखा था, तो पीछे की गाड़ियां अपने आप धीमी हो गईं। किसी ने हॉर्न नहीं बजाया। सब बस देख रहे थे।

BMW ने इस जनरेशन में डिजाइन को थोड़ा “मॉडर्न-क्रेज़ी” बनाया है। कुछ लोगों को इसका बड़ा फ्रंट ग्रिल पसंद आता है, कुछ इसे “नाक पर पंच” कहते हैं। मुझे लगा हां, थोड़ा ज़्यादा है, पर Z4 जैसी कार subtle नहीं हो सकती।
परफॉर्मेंस – जब 3.0-लीटर इंजन मुस्कुराता है
BMW Z4 में जो 3.0-लीटर टर्बो पेट्रोल इंजन है, वो मज़ाक नहीं है। 340 bhp की ताकत और 500 Nm टॉर्क सुनने में नंबर लगते हैं, चलाते वक्त नशा। 0 से 100 km/h सिर्फ 4.5 सेकंड में, पर मज़ा सिर्फ स्पीड का नहीं, उसकी आवाज़ का है। वो क्रैक जो हर गियर शिफ्ट पर आती है, कानों को झटका देती है। पर हां, सच्ची बात ये है कि Z4 परफेक्ट नहीं है। स्पोर्ट्स मोड में सस्पेंशन थोड़ा ज्यादा सख्त हो जाता है। अगर दिल्ली की टूटी सड़कों पर चला रहे हों, तो झटका ऐसे लगता है जैसे किसी ने कमर तोड़ दी हो। लेकिन हाईवे पर? भाई, फिर कोई पकड़ नहीं सकता।
इंटीरियर – लक्ज़री नहीं, एक पर्सनल कोकपिट
अंदर बैठते ही लगता है जैसे किसी फाइटर जेट में बैठे हों। स्टीयरिंग का फील, सीट की पकड़ और वो सेंटर कंसोल की तरफ झुका हुआ डैश सबकुछ ड्राइवर-केंद्रित है। BMW ने कमाल ये किया है कि सब कुछ टचस्क्रीन नहीं बनाया। असली बटन अब भी हैं, और ये बात मुझे बहुत पसंद आई।

एक बार दिल्ली की टेस्ट ड्राइव के दौरान बारिश हो गई थी। मैंने रूफ ओपन ही छोड़ा, बस फील लेने के लिए। हवा, पानी, और इंजन की आवाज़ सब एक साथ मिल गए। वो पल आज भी याद है, क्योंकि ऐसी “इंसानी” फील अब नई कारों में कम ही मिलती है।
ब्रांड की बात – BMW का असली रंग इसी में दिखता है
BMW का जो Sheer Driving Pleasure वाला वादा है, वो कई SUV में अब बस स्लोगन बन गया है। पर Z4 में वो वादा सच में महसूस होता है। कोई सेंसर आपको ड्राइव सिखाने नहीं आता, कोई इलेक्ट्रॉनिक nanny नहीं रोकती। बस आप, इंजन और सड़क। एक डीलर ने मुझसे एक बार कहा था, Z4 बेचने में हमें प्रॉफिट कम मिलता है, पर मज़ा ज़्यादा। मैं मुस्कुराया। क्योंकि यही Z4 की फिलॉसफी है ये कार पैसे के लिए नहीं, दिल के लिए बनी है।
कमियां – असली बातें छिपानी नहीं चाहिए
कई लोग मानते हैं कि Z4 में soft-top रूफ थोड़ा कम प्रैक्टिकल है। और सच कहूं, गर्मियों में धूप अंदर तक घुस आती है। दूसरी बात, केबिन में स्टोरेज बहुत कम है। एक जोड़ी जूते और पानी की बोतल रख दी, तो बाकी सामान सीट पर ही डालो।BMW की सर्विस कॉस्ट भी एक मज़ाक नहीं है। एक बार ऑयल चेंज पर 40 हजार का बिल आया था, तो दिल ने कहा भाई, चलने से पहले सोच लिया कर।
अंतिम राय – दिल जीतने वाली, दिमाग हिलाने वाली
BMW Z4 एक ऐसी कार है जो तर्क नहीं, भावना पर खरी उतरती है। ये practical नहीं है, पर यादगार ज़रूर है। हर ड्राइव में ऐसा लगता है जैसे आप किसी पुराने दोस्त के साथ निकल पड़े हों, जो ज़रूरत पड़ने पर भी सीरियस नहीं होता।Seedhi baat kahoon to, Z4 सिर्फ एक गाड़ी नहीं, एक मूड है। और अगर आपने एक बार इसका टॉप नीचे करके रात की ठंडी हवा में ड्राइव किया, तो बाकी सब कारें सिर्फ “machines” लगेंगी।


