Brain eating amoeba spreads in Kerala : जानिए क्या है यह बीमारी और क्यों है जानलेवा

केरल में ब्रेन ईटिंग अमीबा संक्रमण तेजी से फैल रहा है और लोगों के बीच डर का कारण बनता जा रहा है। पानी के जरिए शरीर में प्रवेश करने वाला यह अमीबा सीधा दिमाग तक पहुंचकर वहां की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। संक्रमण की पहचान देर से होने के कारण इसका इलाज मुश्किल हो जाता है। अब तक कई मौतें हो चुकी हैं। यही वजह है कि डॉक्टर लगातार लोगों को जागरूक और सतर्क रहने की सलाह दे रहे हैं।

Brain eating amoeba spreads in Kerala : जानिए क्या है यह बीमारी और क्यों है जानलेवा

केरल इन दिनों एक घातक बीमारी की वजह से सुर्खियों में है। डॉक्टरों के सामने जो चुनौती खड़ी हुई है उसे सामान्य बुखार या फ्लू की तरह आसानी से नहीं समझा जा सकता। यह संक्रमण "ब्रेन ईटिंग अमीबा" यानी दिमाग पर हमला करने वाले सूक्ष्मजीव की वजह से फैल रहा है। राज्य में जनवरी से अब तक 65 से ज्यादा रोगियों की पुष्टि हो चुकी है। इनमें से 19 लोगों की मौत हो गई है। ऐसे मामलों ने न केवल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग बल्कि आम लोगों की चिंता भी बढ़ा दी है। यह संक्रमण बेहद दुर्लभ माना जाता है, लेकिन एक बार लग जाने पर शरीर के लिए इससे बाहर निकलना आसान नहीं होता। यही वजह है कि डॉक्टर लगातार लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि ब्रेन ईटिंग अमीबा हमारे आसपास मौजूद पानी और मिट्टी में पाया जा सकता है। लेकिन जब यह इंसानी शरीर में प्रवेश कर जाता है, खासकर नाक के जरिए, तो यह सीधे दिमाग तक पहुंच कर वहां की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। दिक्कत यह है कि लक्षण सामान्य सर्दी-जुकाम की तरह सामने आते हैं और जब तक सही पहचान हो पाती है तब तक बहुत देर हो जाती है। यही वजह है कि केरल में यह बीमारी तेज़ी से भय का कारण बन रही है।

 

ब्रेन ईटिंग अमीबा क्या है और यह शरीर पर कैसे असर करता है

ब्रेन ईटिंग अमीबा का असली नाम 'नेग्लेरिया फाउलेरी' है। यह एक सूक्ष्म जीव है जो पानी में पनपता है। आमतौर पर यह तालाब, झील, नदियों जैसे मीठे पानी के स्रोतों में मौजूद रहता है। कई बार यह स्विमिंग पूल या गंदे नल के पानी में भी पाया जा सकता है। जब लोग ऐसे पानी में तैरते हैं या स्नान करते हैं और गलती से पानी नाक के रास्ते शरीर में चला जाता है तो यह अमीबा भी शरीर के भीतर प्रवेश कर जाता है। नाक में पहुंचने के बाद यह नाज़ुक झिल्लियों को चीरता हुआ ऊपर की ओर बढ़ता है और सीधा दिमाग के पास पहुंच जाता है। यहीं से यह असली हमला शुरू करता है। अमीबा धीरे-धीरे दिमाग की कोशिकाओं को खा जाता है। यही वजह है कि इसे ब्रेन ईटिंग अमीबा कहा जाता है। यह प्रक्रिया इतनी तेजी से होती है कि रोगी को संभाल पाना काफी मुश्किल हो जाता है। इस संक्रमण से जुड़ी एक बड़ी चुनौती यह भी है कि दुनिया में अब तक इसके बहुत ही सीमित इलाज उपलब्ध हैं। एंटीबायोटिक दवाएं कई बार असर नहीं दिखातीं। समय पर पहचान ही जीवन बचने की सबसे बड़ी उम्मीद मानी जाती है। इसलिए जैसे ही रोगी को तेज सिरदर्द, उल्टी, तेज बुखार, गर्दन में अकड़न जैसे लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

 

लक्षण जो बताते हैं कि ब्रेन ईटिंग अमीबा का खतरा है

इस बीमारी की सबसे बड़ी समस्या यही है कि इसके शुरुआती लक्षण बहुत सामान्य लगते हैं। शुरुआत में मरीज को हल्का बुखार होता है और अक्सर लोग इसे सर्दी-ज़ुकाम मानकर नजरअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन धीरे-धीरे यह संक्रमण अपने असली रूप में सामने आता है। कुछ दिनों के भीतर तीव्र सिरदर्द शुरू हो जाता है। गर्दन में अकड़न और मितली जैसी परेशानी महसूस होती है। रोगी को उल्टियां हो सकती हैं और बुखार लगातार बढ़ता जाता है। इसके बाद मानसिक स्थिति बिगड़ने लगती है। चक्कर आना, बेहोशी, शरीर पर नियंत्रण का कम होना, और यहां तक कि दौरे पड़ना भी शुरू हो जाते हैं। जब तक इन लक्षणों की सही जांच की जाती है तब तक अमीबा काफी नुकसान पहुंचा चुका होता है। दुनिया भर के वैज्ञानिक मानते हैं कि यह बीमारी इतनी दुर्लभ है कि हर डॉक्टर भी तुरंत इसकी पहचान नहीं कर पाता। यही एक वजह है कि हर साल इसके सामने आने वाले मरीजों में बड़ी संख्या मौत तक पहुंच जाती है। केरल में भी यही स्थिति देखने को मिल रही है। यह संक्रमण आमतौर पर बच्चों और युवा लोगों पर ज्यादा असर करता है क्योंकि वे नदियों या तालाबों में नहाने और तैरने जाते हैं। विशेषज्ञ लगातार अपील कर रहे हैं कि सावधानी सबसे बड़ी बचाव है।

 

संक्रमण आखिर कहां होता है और किसे है ज्यादा खतरा

ब्रेन ईटिंग अमीबा से जुड़ा संक्रमण पानी से जुड़ी गतिविधियों के दौरान ज्यादा फैलता है। खुले जल स्रोतों जैसे तालाब, झील और नदियों में यह अमीबा आसानी से मिल सकता है। जब लोग वहां खेलने, नहाने या तैरने जाते हैं तो नाक के रास्ते अमीबा के शरीर में जाने का खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि शरीर में यह संक्रमण पीने से नहीं बल्कि नाक या सांस के रास्ते जाने से फैलता है। इसलिए तालाब या नदी में सिर के बल गोता लगाने से यह खतरा और भी बढ़ जाता है। गर्म और नमी वाले मौसम में इसके पनपने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है। इसीलिए केरल जैसे राज्यों में मानसून के दिनों में यह अमीबा अधिक सक्रिय रहता है। जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, उन्हें इस बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। बच्चों और बुजुर्गों के अलावा लंबे समय से बीमार लोग इसकी चपेट में जल्दी आ सकते हैं। यही वजह है कि स्वास्थ्य विभाग लोगों से अपील कर रहा है कि खुले पानी में नहाने से बचें और यदि ज्यादा ज़रूरी हो तो सावधानी के साथ जाएं।

क्या है बचाव और लोगों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए

अब सवाल उठता है कि जब ब्रेन ईटिंग अमीबा से संक्रमण इतना खतरनाक है तो आखिर इससे बचा कैसे जाए। मेडिकल विशेषज्ञ कहते हैं कि इस समय इसका सबसे कारगर हथियार सिर्फ सावधानी है। यदि लोग खुले और गंदे पानी में तैरने से बचें तो संक्रमण का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है। स्विमिंग पूल का इस्तेमाल करना हो तो सुनिश्चित करें कि वहां का पानी साफ और क्लोरीन से ट्रीट किया गया हो। किसी अजनबी या लंबे समय से जमा पानी में स्नान करने की कोशिश न करें। यदि नाक में पानी जाने की संभावना है तो नाक पर मास्क या प्लग का प्रयोग करें। स्वास्थ्य विभाग ने भी लोगों से अपील की है कि किसी भी तरह के सिर दर्द, बुखार, उल्टी और भ्रम की स्थिति को हल्के में न लें। तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। शुरुआती दिनों में यदि इलाज शुरू हो जाए तो रोगी के ठीक होने की संभावना बढ़ सकती है। डॉक्टरों का मानना है कि इस तरह के दुर्लभ संक्रमण को रोकना और इसके बारे में जागरूकता बढ़ाना ही सबसे महत्वपूर्ण है। मीडिया और स्वास्थ्य अभियान भी लगातार इस पर काम कर रहे हैं। केरल में जो भी मामले सामने आ रहे हैं उन्हें समय पर लोगों तक पहुंचाना ही एक बड़ा कदम है ताकि बाकी लोग सावधान हो सकें।

About the Author

Manish Garg

author

this is manish