चार साल बाद लखनऊ में मायावती की धमाकेदार महारैली में दिखा नया जोश, जहां एक तरफ योगी सरकार की तारीफ हुई तो दूसरी तरफ सपा-कांग्रेस पर तीखे हमले भी
दोस्तों, पिछली बार मायावती को बताओ तभी सर उठा के देखती थीं जब सड़क पर भीड़ होती, पर गुरुवार को लखनऊ में जो महारैली हुई उसने सबको हैरान कर दिया। सोचिए, लाखों की भीड़, गाड़ियां बारात जैसा माहौल... और मंच पर अकेली मायावती, हल्के रंग का सूट पहने, पूरी तरह से प्रोफेशनल अंदाज में।
अब बात करें सबसे मज़ेदार पहलू की, तो शुरू में मायावती ने योगी सरकार की तारीफ कर दी! हां हां, सही पढ़ा आपने। फिर जैसे ही चर्चा राजनीतिक हुई, सपा-कांग्रेस पर उन्होंने जो हमला बोला वो कम्फर्ट जोन से बाहर था। “मुफ्त का अनाज गुलामी का हथियार है”, “ईवीएम में धांधली”, जैसे बयान ने माहौल गर्म कर दिया।
भतीजे आकाश आनंद की जबरदस्त लॉन्चिंग और पार्टी में नए सितारे
मंच पर मायावती के बाएं हाथ छोर पर बैठा था उनका भतीजा, आकाश आनंद, जिससे साफ था कि पार्टी की बागडोर धीरे-धीरे उनके हाथों में जा रही है। आकाश ने भी जोरदार भाषण दिया, जिसमें उन्होंने पांचवीं बार मायावती को मुख्यमंत्री बनाने की अपील की, जो हंगामे में बदल गया।
साथ ही पार्टी के करीबी नेताओं जैसे सतीश चंद्र मिश्र और उमाशंकर सिंह की भी मौजूदगी में नए वोटरों तक अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीतियां साफ हो गईं। ये महारैली बसपा की शांति नहीं, बल्कि जोरदार रैली थी, जिसमें मायावती ने अपने दम पर लड़ने का एलान किया।
राजनीतिक रणनीति, गठबंधन और आने वाले चुनावों की तैयारी
बसपा अब भाजपा से ज्यादा सपा-कांग्रेस को टारगेट कर रही है। मायावती ने उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने दलित नायकों के लिए बनाए गए स्मारकों के पैसे दबाए। साथ ही गठबंधन को लेकर गुस्सा जाहिर किया कि तीन गठबंधन सरकारें भी पूरी नहीं हुईं। मतलब साफ है, 2024 के चुनाव में बसपा अकेले दम पर दम दिखाना चाहती है।
हालांकि, योगी सरकार की तारीफ से उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ सकता है, खासकर मुस्लिम वोटर बेस में। राजनीतिक विश्लेषक इसे एक सेल्फ-गोल मान रहे हैं। लेकिन राजनीति में वक्त बड़ा होता है, और मायावती के अगले कदम पर सबकी नजर टिकी है।
मायावती की महारैली से मिले ये तीन बड़े सबक
- संयमित आक्रामकता: शुरुआती तारीफ और बाद के हमलों का संतुलन
- नेतृत्व का हस्तांतरण: आकाश आनंद के जरिए युवा चेहरे को मौका देना
- सियासी पैंतरेबाज़ी: गठबंधन और वोट बैंक को बनाए रखने की चुनौती
तो दोस्तों, ये थी उस बहुजन समाज पार्टी की महारैली की कहानी, जिसमें मायावती ने अपनी रणनीति के साथ फिर से राजनीति की दुनिया में हलचल मचा दी। अब देखना ये है कि अगले चुनाव में ये झटका किस हद तक असर करता है।