Buddhism Religion: दुनिया में बौद्ध धर्म का बढ़ता दबदबा और खास मान्यता
बौद्ध धर्म क्यों फिर से सुर्खियों में है? पिछले कुछ वर्षों में दुनिया भर में बौद्ध धर्म की चर्चा तेज़ हो गई है। प्यू रिसर्च सेंटर की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि एशिया-प्रशांत से लेकर यूरोप और अमेरिका तक, कई राष्ट्र अब बौद्ध परंपराओं को सरकारी या सांस्कृतिक स्तर पर विशेष मान्यता दे रहे हैं। यह बदलाव अचानक नहीं आया; इसके पीछे आध्यात्मिक जिज्ञासा, मानसिक स्वास्थ्य पर फोकस और शांति-केन्द्रित जीवन‐शैली की खोज जैसे कई कारण हैं।
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प्यू रिसर्च ने क्या पाया? विस्तृत झलक
अध्ययन का सबसे बड़ा निष्कर्ष यह है कि 2020 से 2025 के बीच बौद्ध आबादी में वैश्विक स्तर पर लगभग 5% वृद्धि दर्ज हुई। रिपोर्ट के मुताबिक, जापान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड जैसे पारंपरिक बौद्ध देशों में संख्या स्थिर रही, लेकिन ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम में अप्रत्याशित उछाल देखा गया। वहाँ प्रवासी समुदायों के साथ-साथ स्थानीय नागरिक भी बौद्ध ध्यान पद्धति और मूल शिक्षाओं की ओर आकर्षित हुए हैं।
सरकारी मान्यता: कौन-कौन से देश आगे आए?
थाइलैंड लंबे समय से बौद्ध धर्म को “राष्ट्रीय पहचान” का हिस्सा मानता है। अब भूटान, मंगोलिया और श्रीलंका के बाद नेपाल ने भी संविधान में बौद्ध संस्कृति को “संरक्षित विरासत” का दर्जा दिया है। यूरोप में, पुर्तगाल की संसद ने इस वर्ष एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें बौद्ध त्योहार वेसाक को सांस्कृतिक अवकाश बनाने का रास्ता साफ किया गया।
मानसिक स्वास्थ्य और माइंडफुलनेस का बढ़ता प्रभाव
कोविड-19 महामारी के बाद मानसिक स्वास्थ्य चर्चाओं के केंद्र में रहा। इसी दौर में बौद्ध ध्यान तकनीक—विशेषकर माइंडफुलनेस मेडिटेशन—को चिकित्सा संस्थानों ने व्यापक रूप से अपनाया। संयुक्त राज्य अमेरिका की तीन प्रमुख मेडिकल यूनिवर्सिटियों ने क्लिनिकल प्रोटोकॉल में माइंडफुलनेस आधारित स्ट्रेस रिडक्शन (MBSR) को नियमित उपचार के रूप में जोड़ दिया है।
युवा पीढ़ी क्यों अपनाती जा रही है बौद्ध जीवन-दृष्टि?
Gen Z और मिलेनियल्स त्वरित परिणामों वाली तकनीक-प्रधान दुनिया में पले-बढ़े हैं। शांति, स्थिरता और आत्म-अनुशासन की तलाश उन्हें बौद्ध धर्म के पास ला रही है। सोशल मीडिया पर buddhism और mindfulness हैशटैग के साथ लाखों रीलें मौजूद हैं, जिनमें युवा ध्यान, मंत्र और सरल जीवन के अनुभव साझा करते हैं।
पर्यटन में नया रुझान: “धम्म यात्राएँ”
धर्मशाला, बोधगया और लुम्बिनी जैसे ऐतिहासिक स्थल अब सिर्फ तीर्थ नहीं रहे; वे “धम्म यात्रा” नामक पर्यटन श्रेणी में बदल रहे हैं। यात्रा-कंपनियाँ सात से दस दिन के विशेष पैकेज तैयार कर रही हैं, जिनमें बौद्ध दर्शन सत्र, चाय समारोह और स्थानीय मोनास्ट्री में सेवा कार्यक्रम शामिल हैं। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिला है।
शिक्षा संस्थानों में बौद्ध पाठ्यक्रम
ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड और दिल्ली विश्वविद्यालय ने एशियाई अध्ययन विभागों में “आधुनिक संदर्भ में बौद्ध नीतिशास्त्र” नाम से नए कोर्स शुरू किए। इन पाठ्यक्रमों में छात्रों को करुणा-आधारित नेतृत्व, पर्यावरण संरक्षण और वैश्विक नागरिकता जैसे विषय सिखाए जाते हैं।
चुनौतियाँ भी मौजूद हैं
हालांकि बौद्ध धर्म शांतिपूर्ण छवि के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में राजनीतिक समूह “सांस्कृतिक पहचान” का तर्क देकर कट्टरता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। म्यांमार और श्रीलंका में अल्पसंख्यकों से जुड़ी घटनाएँ इस तनाव को उजागर करती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बौद्ध शिक्षाओं की मूल भावना—अहिंसा और करुणा—को बनाए रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग ज़रूरी है।
क्या यह लहर स्थायी है?
विश्लेषकों का कहना है कि यदि वर्तमान सामाजिक-आर्थिक हालात बने रहते हैं, तो 2030 तक वैश्विक बौद्ध जनसंख्या में और 4% वृद्धि संभव है। तकनीक से जुड़ा “डिजिटल सन्यासी” ट्रेंड—ऑनलाइन ध्यान ऐप, वर्चुअल मोनास्ट्री और लाइव धार्मिक प्रवचन—इस विस्तार को बल देगा।
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