खेती में समय-समय पर नए प्रयोग होते रहे हैं, लेकिन चीन के किसानों ने जो तरीका अपनाया है, उसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया है। वहां के किसान चावल के खेतों में पानी भरने के साथ-साथ छोटे-छोटे केकड़े छोड़ देते हैं। यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन इस अनोखी विधि से बहुत से फायदे मिल रहे हैं। किसान चावल और केकड़े की इस साझेदारी को जैविक खेती का नाम दे रहे हैं। यह तरीका चीन के कई प्रांतों में अपनाया जा चुका है और अब इसका असर वहां की खेती पर साफ दिख रहा है। खेती में जैविक उपायों की जरूरत इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इससे फसल केवल बेहतर नहीं होती, बल्कि लंबे समय तक मिट्टी भी उपजाऊ बनी रहती है। किसान बताते हैं कि पहले रासायनिक खाद और दवाओं पर बहुत खर्च होता था, लेकिन इस विधि ने उनकी लागत कम कर दी है। यह असल में चावल और केकड़े का सहजीवन है, जहां दोनों एक-दूसरे को फायदा पहुंचाते हैं। पकी फसल की गुणवत्ता भी पहले से बेहतर हो जाती है। किसानों का कहना है कि इस खेती से उपभोक्ता को शुद्ध और नेचुरल अनाज मिलता है।
केकड़े कैसे मदद करते हैं फसल को मजबूत बनाने में
चीन के किसान बताते हैं कि जब चावल के खेत में केकड़े छोड़े जाते हैं तो यह खेत में पनपने वाले कई कीट और छोटे-छोटे कीटाणुओं को खा जाते हैं। इससे चावल की फसल प्राकृतिक तरीके से सुरक्षित रहती है। यानी किसान को फसल पर ज्यादा कीटनाशक छिड़कने की जरूरत नहीं होती। इसके अलावा, केकड़े खेत की मिट्टी को हिलाते-डुलाते रहते हैं, जिससे मिट्टी में हवा और पानी का प्रवाह अच्छा हो जाता है। मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है और अगले सीजन में भी यह खेत उपजाऊ रह पाता है। केकड़े खेत के पानी को भी साफ रखते हैं। वहां गाद और सड़न कम होती है। इस तरह चावल की खेती पूरी तरह प्राकृतिक माहौल में होती है। किसान कहते हैं कि जब फसल काटने का समय आता है तो खेत से चावल और केकड़े दोनों की कमाई होती है। यही वजह है कि यह खेती न सिर्फ सेहतमंद है, बल्कि आर्थिक रूप से भी मददगार है। केकड़ों को बाजार में बेचकर किसान को अलग से मुनाफा मिल जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि उपभोक्ता बेहतर और प्राकृतिक खाद्यान्न खाते हैं और किसान का मेहनताना भी बढ़ता है।
जैविक खेती क्यों बन रही है किसानों की पहली पसंद
पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में जैविक खेती की मांग तेजी से बढ़ी है। लोग अब रसायन और दवाओं से पकी हुई फसलों से दूरी बना रहे हैं। चीन का यह प्रयोग इसीलिए खास माना जा रहा है क्योंकि इससे उपभोक्ताओं को बिना मिलावट वाला अनाज मिलता है। वहीं, किसान भी खुश हैं क्योंकि उन्हें बाजार में जैविक अनाज और केकड़ों के बेहतर दाम मिल रहे हैं। इस खेती का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसमें लगातार रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल नहीं होता। इससे मिट्टी की सेहत खराब नहीं होती। खेत लंबे समय तक फसल देने में सक्षम रहते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर इस तरह खेती बढ़ाई जाए तो किसानों का खर्च घटेगा और उपज भी अच्छी होगी। यही वजह है कि चीन में चावल और केकड़े की जैविक खेती को आज के समय में एक मॉडल प्रोजेक्ट के तौर पर देखा जा रहा है। यह खेती धीरे-धीरे अन्य देशों के लिए भी प्रेरणा बन रही है।
भारतीय किसानों के लिए सीख और लाभ की संभावना
भारत में भी चावल की खेती बड़े पैमाने पर होती है। खासकर पूर्वी भारत और दक्षिण भारत के कई इलाकों में किसान पानी भरे खेतों पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में चीन की तरह यहां भी यह प्रयोग उपयोगी साबित हो सकता है। यदि भारतीय किसान चावल की फसल में अलग से केकड़े पालें, तो उन्हें रसायन पर खर्च नहीं करना पड़ेगा और फसल प्राकृतिक संरक्षण पाएगी। भारत में पहले से ही कई किसान धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं। सरकार भी इस दिशा में तरह-तरह की योजनाएं चला रही है। अगर किसान इस मॉडल को अपनाते हैं तो उन्हें खेती से दोगुना फायदा हो सकता है। चावल और केकड़ा दोनों से होने वाली अतिरिक्त कमाई उनके जीवन स्तर को सुधार सकती है। साथ ही उपभोक्ता को भी साफ और सेहतमंद खाना मिलेगा। यही कारण है कि आज यह तरीका विश्व स्तर पर चर्चा का विषय बन रहा है।
भविष्य की खेती के लिए एक बड़ा कदम
आज पूरी दुनिया पर्यावरण और सेहत को लेकर गंभीर है। खेतों में रसायनों की जगह प्राकृतिक तरीकों को अपनाना अब मजबूरी बन रहा है। चीन में अपनाई गई चावल और केकड़े की खेती यह साबित करती है कि यदि किसान थोड़ी समझदारी से काम करें तो बिना रसायनों के भी मजबूत फसल तैयार की जा सकती है। यह तरीका भविष्य की खेती की दिशा तय कर सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर इस मॉडल को बड़े पैमाने पर अपनाया गया, तो न केवल किसान को फायदा होगा बल्कि पूरे समाज को स्वस्थ अनाज मिलेगा। सबसे खास बात यह है कि यह खेती पर्यावरण को भी साफ रखती है। जब खेत साफ रहेंगे, मिट्टी खराब नहीं होगी और पानी प्रदूषण से बचेगा तो आने वाली पीढ़ियां भी सुरक्षित रहेंगी। यही कारण है कि चीन का यह प्रयोग केवल उनके लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व की खेती व्यवस्था के लिए एक नई उम्मीद है।