Chhath Puja 2025 : आस्था, परंपरा और सूर्य उपासना का अनुपम संगम

छठ पूजा 2025 आस्था और सूर्य उपासना का महापर्व है, जो हर साल श्रद्धा और सादगी से मनाया जाता है। इस वर्ष का Chhath Puja 2025 पूरे भारत में भक्ति और समर्पण की लहर लेकर आएगा। यह पर्व सूर्य देव, जल और प्रकृति को धन्यवाद देने का अनोखा अवसर देता है, खासकर बिहार और पूर्वांचल में।

Chhath Puja 2025 : आस्था, परंपरा और सूर्य उपासना का अनुपम संगम

छठ पूजा 2025: आस्था और सादगी से भरा सूर्य उपासना का महापर्व

 

हर साल जब कार्तिक माह की हवा ठंडी हो जाती है, तब छठ पूजा 2025 की चर्चा हर गली-मोहल्ले में गूंजने लगती है। यह त्योहार सिर्फ पूजा नहीं, एक अनुभूति है। गांव हो या शहर, हर जगह लोग नदी किनारे दीप सजाते हैं। और अंदर से लगता है, कुछ पवित्र घट रहा है।

 

छठ पूजा 2025 की तिथि और समय

साल 2025 में यह पावन पर्व 25 अक्टूबर से शुरू होगा। चार दिन तक चलने वाला यह उत्सव 28 अक्टूबर की सुबह उषा अर्घ्य के साथ शांतिपूर्वक समाप्त होगा। सबने मिलकर उगते सूरज को प्रणाम किया। उस क्षण की बात ही कुछ और थी। लगता था कि सूर्य की किरणें खुद आशीर्वाद बनकर उतर रही हों।

 

छठ पूजा की पुरानी जड़ें और कहानी

कहते हैं कि छठ पूजा वैदिक काल से चली आ रही है। बहुत पुरानी कहानी है। महाभारत में भी इसका ज़िक्र मिलता है। द्रौपदी ने सूर्य देव से वर मांगा था। उनके दुख दूर हुए। तब से लोग मानने लगे कि छठ मइया और सूर्य देव साक्षात वरदान देने वाले हैं। और सच में, यह आस्था अब भी जिंदा है।

 

छठ मइया की कथा जिसे दादी नानी सुनाती हैं

एक समय राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी के घर संतान नहीं थी। दुखी होकर वे यज्ञ करने लगे। तभी सूर्य की पुत्री ‘छठी मइया’ प्रकट हुईं। उन्होंने कहा— “मेरा व्रत करो, सुखी रहोगे।” और हुआ भी वैसा ही। यह कहानी आज भी हर घर में सुनाई जाती है। कोई किताब नहीं, यह भावना है।

 

इस पर्व का असली मतलब

छठ पूजा 2025 का मायना सिर्फ पूजा-पाठ नहीं है। यह कृतज्ञता का उत्सव है। सूरज को नमन है जिसने जीवन दिया। पानी को सलाम है जो जीवंत रखता है। आसमान को प्रणाम है जो ढक लेता है सबको। इस पर्व की खासियत यह है कि दिखावा नहीं है, बस सादगी और आत्मसंयम है। यही भक्ति की असली पहचान है।

 

चार दिन का सफर जो आसान नहीं होता

पहला दिन नहाय-खाय। साफ-सफाई और शुद्धता का दिन। दूसरे दिन खरना। पूरा दिन उपवास फिर रात में गुड़-चावल की खीर। तीसरा दिन सबसे भावुक होता है, जब डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। चौथे दिन सुबह की पहली किरण पर उषा अर्घ्य। लोग आंखों में आंसू लिए सूरज को देख रहे होते हैं। मन में बस एक प्रार्थना — “सबका भला हो।”

 

भक्ति की तस्वीर घाटों पर

जब शाम ढलती है, तो घाटों पर कुछ अलौकिक सा दृश्य होता है। जल में खड़ी महिलाएं, हाथों में टोकरी, और सूरज की परछाई में झिलमिलाते दीप। हर किसी के मन में एक अरदास रहती है। कोई अपने बेटे के लिए, कोई घर के सुख के लिए। इस दृश्य को देखकर हर कोई भावुक हो जाता है।

 

छठ के गीत जो दिल छू लेते हैं

छठ पूजा में गाए जाने वाले गीतों की बात ही कुछ और है। मांओं की आवाज़ में जो मिठास होती है, वो सीधे दिल में उतरती है। ये गीत सिर्फ शब्द नहीं, यादें हैं। पटना, भागलपुर, या गांव का कोई छोटा डेहरी किनारा—हर जगह वही धुन गूंजती है, “केलवा जे फरेला घुघुरी के डाल पर।” वे गीत रिश्तों को जोड़ते हैं।

 

छठ और प्रकृति का रिश्ता

यह त्योहार सिखाता है कि प्रकृति से जितना लेंगे, उतना लौटाना भी जरूरी है। छठ पूजा 2025 में हर जगह मिट्टी के बर्तन, गन्ना, फल, बांस की दऊरा और सूप दिखे। बिना प्लास्टिक, बिना चमक–दमक। यही इसकी पवित्रता की असली वजह है। यह पर्व पर्यावरण प्रेम का उदाहरण भी है।

 

जब समाज एक साथ खड़ा होता है

छठ का एक नज़ारा बहुत खास होता है — अमीर हो या गरीब, सब एक साथ खड़े। कोई फर्क नहीं। बस एक आस्था, एक सूरज, एक मइया। यही तो असली भारत है। जब सब मिलकर सूर्य को नमन करते हैं तो लगता है हम सब एक हैं। यही छठ का सबसे सुंदर संदेश है।

 

अंत में...

तो दोस्तों, छठ पूजा 2025 सिर्फ एक तारीख नहीं थी, यह एक अनुभव था। एक एहसास कि श्रद्धा ज़िंदा है। सादगी अभी भी सबसे बड़ी शक्ति है। और जब सूर्य उदय होता है, तो लगता है — जीवन फिर नया हुआ।