छठ 2025 का महापर्व पूरे देश में बड़ी आस्था और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर देश के कई हिस्सों में भक्तजन छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा में लीन हैं। यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन, प्रकृति और परिवार के प्रति आभार का भाव है। छठ पर्व की सबसे खास बात यह है कि इसमें किसी मूर्ति की नहीं बल्कि प्रकृति के प्रतीक सूर्य और छठी मैया की उपासना की जाती है।
कौन हैं छठी मैया जिनकी पूजा होती है
छठी मैया को प्रकृति की शक्ति और मातृत्व का स्वरूप माना जाता है। पुराणों के अनुसार, छठी मैया को सूर्यदेव की बहन कहा गया है। वही संतान सुख, स्वास्थ्य और दीर्घायु का वरदान देती हैं। कई जगहों पर उन्हें षष्ठी देवी के नाम से भी जाना जाता है। देवी छठी को संतान रक्षा की देवी कहा गया है जो उन माता-पिता की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं जो अपने बच्चों के सुख की कामना करते हैं।
सूर्यदेव की बहन छठी मैया की कथा
पुराणों और लोककथाओं में छठी मैया से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब पांडवों का राज्य नष्ट हो गया और द्रौपदी दुखी हुईं, तो उन्होंने सूर्यदेव की बहन छठी मैया की आराधना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने पांडवों को पुनः राज्य और सम्मान दिलाया। इस कथा से यह विश्वास और भी प्रबल हुआ कि जो भी श्रद्धा से छठी मैया का व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
छठी मैया का संबंध जन्म और संतान से क्यों माना गया
छठी मैया का सीधा संबंध संतान सुख से जोड़ा जाता है। जब कोई महिला मां बनने की अवस्था में होती है, तो यह देवी उसकी रक्षा करती हैं। इसीलिए कई घरों में बच्चों के जन्म के छःवें दिन “छठी” का संस्कार किया जाता है। इसी दिन देवी छठी की आराधना कर परिवार के नए सदस्य के उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना की जाती है। इस परंपरा का प्रतीक रूप आगे चलकर **छठ महापर्व** के रूप में स्थापित हुआ।
छठ महापर्व में सूर्यदेव के साथ क्यों होती है पूजा
छठ पूजा में सिर्फ सूर्यदेव की आराधना नहीं की जाती, बल्कि उनके साथ उनकी बहन छठी मैया की भी पूजा होती है। क्योंकि सूर्य जीवन और ऊर्जा का स्रोत हैं तथा छठी मैया उस ऊर्जा को संतुलन देने वाली ममता की प्रतीक हैं। दोनों मिलकर जीवन में संतुलन और सुख का संदेश देते हैं। यही कारण है कि छठ पर्व में डूबते और उगते दोनों सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह संकेत है कि जीवन में सूर्य की रोशनी के साथ छठी मैया की कृपा से ही पूर्णता आती है।
छठ पर्व की शुरुआत कैसे हुई
ऐसा कहा जाता है कि छठ पर्व का आरंभ वैदिक काल से हुआ था, जब ऋषि-मुनि सूर्यदेव की उपासना कर आत्मशुद्धि और ऊर्जा प्राप्त करते थे। धीरे-धीरे यह परंपरा आम जनजीवन में शामिल हो गई। लोकपरंपराओं में यह पर्व इतना घुलमिल गया कि अब यह सिर्फ पूजा नहीं बल्कि समाजिक एकता और स्त्री शक्ति का प्रतीक बन गया है। छठी मैया की आस्था अब हर घर की बात है।
लोक में कैसे मानती है छठी मैया की पूजा
ग्रामीण इलाकों में आज भी यह माना जाता है कि छठी मैया साक्षात धरती पर आती हैं। व्रती महिलाएं पूरा व्रत पूरी निष्ठा के साथ करती हैं, बिना पानी पिए हुए 36 घंटे तक। घाटों पर गन्ना, नारियल, ठेकुआ और फल अर्पित किया जाता है। यह सब इस भाव से कि छठी मैया और सूर्यदेव अपने भक्तों के घरों में सुख, स्वास्थ्य और शांति का आशीर्वाद बरसाएं।
परिवार और समाज के लिए छठ की सीख
छठ का पर्व हमें बहुत गहरी सीख देता है। यह सिर्फ उपवास या पूजा नहीं बल्कि परिवार और समाज के लिए त्याग और अनुशासन का प्रतीक है। व्रती महिलाएं न सिर्फ अपने परिवार के सुख के लिए बल्कि पूरे समाज की समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। यह पर्व सिखाता है कि सच्ची भक्ति वही है जो ईमानदारी और संयम से की जाए।
छठ 2025 में छठी मैया की पूजा का महत्व और आध्यात्मिक भावना
छठ 2025 में भी लोग पहले से ज्यादा भावनाओं के साथ इस पर्व को मना रहे हैं। छठी मैया के लिए बनाए गए घाटों की सजावट, लोकगीतों की गूंज और दीपों की रोशनी यह दर्शाती है कि आस्था का यह पर्व हमारे संस्कारों की जड़ों में कितनी गहराई से बसा है। इस बार भी व्रती नदियों, तालाबों और घरों के आंगनों में सूर्य को अर्घ्य देंगे और छठी मैया से सुख-समृद्धि की कामना करेंगे।
छठ महापर्व में लोकगीतों और संस्कृति की भूमिका
छठ के समय गाए जाने वाले पारंपरिक गीत इस पर्व की आत्मा हैं। महिलाएं परम श्रद्धा से छठी मैया से संवाद करती हैं। यह गीत मातृत्व, प्रेम और त्याग की भावना को व्यक्त करते हैं। यही कारण है कि छठ पर्व सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत रूप है।
आस्था और वैज्ञानिकता का संगम
अगर गौर से देखा जाए तो छठी मैया की पूजा केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। सूर्य ऊर्जा का स्रोत है और छठ पर्व मानव शरीर को शुद्ध करने का भी एक उपाय है। व्रत के दौरान सादगीपूर्ण भोजन और अनुशासन शरीर तथा मन दोनों को स्वस्थ बनाते हैं। यह आस्था और विज्ञान का अद्भुत संगम है।
छठ 2025 हमें याद दिलाता है कि प्रकृति, परिवार और विश्वास का सम्मान करना ही जीवन की सबसे बड़ी पूजा है। **छठी मैया** और सूर्यदेव की आराधना हमें सिखाती है कि जीवन की हर कठिनाई के बाद एक नई सुबह ज़रूर आती है। इसलिए यह पर्व हर इंसान के जीवन में नई रोशनी, नई ऊर्जा और नया विश्वास लाता है।
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