बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सियासी थाली में सब कुछ पक रहा है — मसाला, ड्रामा, और थोड़ी-सी तकरार। इस बार कहानी में ट्विस्ट लेकर आए हैं चिराग पासवान, जो पहले तो 40 सीटों की मांग पर अड़े थे, पर अब मान भी गए हैं — बस अंदाज थोड़ा फिल्मी है। उन्होंने 25 सीटों पर हामी भरी है, लेकिन उनमें ऐसा पेंच डाला है कि BJP और JDU दोनों को नींद उड़ गई है।
पटना की राजनीति वैसे भी कब शांत रहती है? मंगलवार को जब धर्मेंद्र प्रधान, विनोद तावड़े और मंगल पांडे चिराग के घर पहुंचे, तो सबको लगा मामला सुलझ जाएगा। लेकिन जैसे ही 49 मिनट की मीटिंग खत्म हुई, NDA के गलियारों में फुसफुसाहट शुरू हो गई — “चिराग मान गए, पर मानकर भी नहीं माने।”
चिराग पासवान ने छोड़ी 40 सीटों की जिद, पर कर दिया बड़ा चालाकी वाला डील
एनडीए के सूत्रों के मुताबिक, चिराग पासवान अब 40 नहीं बल्कि 25 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं। सुनने में तो सुलह लगती है, लेकिन असली खेल यहीं शुरू होता है। चिराग ने सिर्फ संख्या नहीं दी — उन्होंने 25 सीटों की पूरी लिस्ट थमाई, जिसमें हर सीट के साथ साफ लिखा था कि “यह मेरी पसंद है, और इससे कम नहीं।”
समस्या ये है कि इन सीटों में से कई पर पहले से BJP और JDU के विधायक काबिज हैं। और एक सीट तो ऐसी है जहां जीतन राम मांझी की पार्टी HAM का विधायक बैठा है। अब सोचिए, अगर NDA को खुश रखना है तो किसे हटाएं, और अगर पासवान जी को मनाना है तो किसे जोड़ें?
49 मिनट की मीटिंग: चिराग की 25 सीटों की लिस्ट में BJP के लिए कांटे ही कांटे
सूत्रों के अनुसार, 49 मिनट की इस मुलाकात में चिराग ने 25 सीटों की डिटेल्ड लिस्ट सौंपी। सबसे पहले उन्होंने मांगी गोविंदगंज सीट, जो फिलहाल BJP के सुनील मणि तिवारी के पास है। चिराग चाहते हैं कि वहां से उनके कैंडिडेट राजू तिवारी मैदान में उतरें।
दूसरी सीट है लालगंज, जहां बीजेपी के संजय कुमार सिंह विधायक हैं। फिर आती है वैशाली सीट, जो JDU के सिद्धार्थ पटेल के कब्जे में है। और चौथी — मटिहानी, जो कभी LJP की थी लेकिन अब जदयू के खाते में है।
अब पांचवीं सीट की बात करें, तो वो है सिकंदरा (जमुई) — जहां से HAM के विधायक प्रफुल्ल मांझी हैं। बस, यहीं से शुरू होता है असली राजनीतिक “कांटा”।
JDU और HAM की सीटों पर भी नज़र, BJP के लिए मुश्किल मिशन 'मनाना'
इन 25 में से तीन सीटें ऐसी हैं जो JDU और HAM के कोटे में आती हैं। अब BJP के सामने मुश्किल यह है कि वो अपने कोटे से दो सीटें तो किसी तरह दे सकती है, लेकिन बाकी तीन के लिए क्या जादू करेगी? सूत्र बताते हैं कि जदयू और हम दोनों ही इस पर सहमत नहीं हैं। अगर BJP अपने ही सीटिंग विधायकों को हटाए, तो बगावत तय है।
यानी NDA की रणनीति फिलहाल 'सीट शेयरिंग से सीट फाइटिंग' में बदलने की कगार पर है।
चिराग का पॉलिटिकल स्टाइल: “मैं मान गया, पर शर्तों के साथ”
जो लोग चिराग पासवान को करीब से जानते हैं, वो कहते हैं कि वो किसी बात को “ना” कहने का तरीका अलग रखते हैं। वो हां बोलते हैं, पर शर्तों के साथ। इस बार भी वही किया है — NDA को 'रिजनेबल' लगने वाले ऑफर के अंदर उन्होंने 'अनरीजेनेबल' ट्विस्ट डाल दिया।
दरअसल, चिराग बिहार की राजनीति में वो खिलाड़ी बन गए हैं जो न खुले तौर पर बागी हैं, न पूरी तरह झुकते हैं। और ये स्ट्रैटेजी अब NDA के लिए सिरदर्द बन रही है।
आगे क्या? सीटें तय होंगी या रिश्ते टूटेंगे?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है — ये सियासी पहेली सुलझेगी कैसे? BJP फिलहाल बैकफुट पर है क्योंकि उसे दोनों तरफ सम्हालना है — जदयू का भरोसा और चिराग की जिद। अगर चिराग की पसंद की दो सीटें बीजेपी अपने हिस्से से दे भी दे, तो JDU और HAM को मनाना अगला “मिशन इम्पॉसिबल” है।
अंदर की खबर ये भी है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता इस पर “फाइनल डील” तैयार कर रहे हैं जो शायद अगले हफ्ते सामने आए। तब तक बिहार की सियासत में ये ड्रामा जारी रहेगा, क्योंकि जैसा हर बार होता है — सीटों से ज्यादा चर्चा चिराग के मूड की होती है।