चुनाव आयोग ने 12 राज्यों में एसआईआर का ऐलान किया, विपक्ष ने उठाए सवाल
नई दिल्ली, 27 अक्टूबर 2025 सोमवार को भारतीय चुनाव आयोग ने एक बड़ा फैसला लिया। आयोग ने देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर की घोषणा की। कहा गया है कि इस प्रक्रिया से मतदाता सूची को और पारदर्शी और अद्यतन बनाया जाएगा। लेकिन, विपक्ष ने इस पर तुरंत प्रतिक्रिया दी। सवाल उठने शुरू हो गए।
क्या है यह एसआईआर, और क्यों ज़रूरी बताया गया
आयोग के मुताबिक, एसआईआर यानी स्पेशल समरी रिवीजन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके ज़रिए हर वोटर की जानकारी फिर से चेक की जाती है। पुरानी या गलत एंट्री हटाई जाती है, और नए वोटर जोड़े जाते हैं। अधिकारियों का कहना है, “यह अभ्यास हर साल होता है, ताकि किसी को मतदान के अधिकार से वंचित न किया जाए।”
पर इस बार मामला थोड़ा अलग है। क्योंकि जिन राज्यों में एसआईआर शुरू हुआ है, उनमें उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य शामिल हैं। दोनों ही जगहों पर अगले साल चुनावी माहौल गरम रहने वाला है। यही वजह है कि इसकी टाइमिंग को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
विपक्ष ने क्यों जताई नाराज़गी
घोषणा के कुछ घंटे बाद ही विपक्षी दलों ने ट्वीट और प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए चुनाव आयोग पर निशाना साधा। कांग्रेस के एक नेता ने कहा, “जब कई राज्यों में चुनाव की तैयारी चल रही है, तब यह कदम संदिग्ध लगता है।”
टीएमसी ने भी सवाल उठाया कि क्या एसआईआर की आड़ में कुछ खास इलाकों के वोटर्स को हटाया जाएगा। हालांकि आयोग ने साफ किया है कि प्रक्रिया पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी होगी। लेकिन, राजनीति है, और सवाल उठना लाज़मी है।
लोगों में मिली-जुली प्रतिक्रिया
जब ये खबर सोशल मीडिया पर फैली, तो लोगों की अलग-अलग राय सामने आई। कोई बोला, “अच्छा कदम है, ताकि डुप्लीकेट वोटर हटें।” तो किसी ने लिखा, “ये सब टाइमिंग का खेल है।” एक मतदाता ने कहा, “हमें तो बस इतना चाहिए कि जब हम बूथ पर जाएं तो हमारा नाम लिस्ट में रहे।” सीधा, सच्चा डर।
दरअसल, पिछले कुछ सालों से शिकायतें आ रही थीं कि कई इलाकों में पुराने या मृत मतदाताओं के नाम अब भी सूची में हैं। ऐसे में चुनाव आयोग का यह फैसला तर्कसंगत लगता है, लेकिन राजनीति में तर्क से ज़्यादा भावनाएँ चलती हैं।
कब से शुरू होगा काम
जानकारी के मुताबिक, एसआईआर की प्रक्रिया नवंबर की शुरुआत से शुरू होगी और जनवरी तक पूरी करने का लक्ष्य रखा गया है। हर राज्य में स्थानीय प्रशासन और बूथ लेवल अधिकारी घर-घर जाकर सत्यापन करेंगे। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी नागरिक खुद अपडेट कर सकेंगे।
आयोग का दावा है कि इस बार टेक्नोलॉजी का उपयोग ज्यादा होगा। QR कोड, मोबाइल एप और ऑनलाइन ट्रैकिंग सिस्टम की मदद से डेटा की सटीकता सुनिश्चित की जाएगी। लेकिन विरोधी कह रहे हैं टेक्नोलॉजी भी उन्हीं के हाथ में है, जो सिस्टम चला रहे हैं। भरोसा कहां से आए?
राजनीतिक माहौल पर असर
स्पष्ट है कि यह फैसला सिर्फ तकनीकी नहीं, राजनीतिक भी है। जब चुनाव आयोग जैसा संस्थान कोई ऐसा कदम उठाता है, तो उसके मायने सिर्फ प्रशासनिक नहीं रहते। विपक्ष इसे चुनावी तैयारी मान रहा है, जबकि सत्ताधारी दल इसे “सुधार” बता रहा है।
आने वाले हफ्तों में यह मुद्दा और बड़ा हो सकता है। क्योंकि चुनाव आयोग की हर कार्रवाई अब सीधे जनता की नजर में है। लोगों की उम्मीद बस यही है कि वोट देने का अधिकार किसी का छीना न जाए, और हर नाम सही जगह दर्ज हो।


