Nuclear Threat: अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA के पूर्व अधिकारी रिचर्ड बार्लो के एक पुराने बयान ने एक बार फिर दुनिया भर में चर्चा छेड़ दी है। उन्होंने दावा किया कि 1980 के दशक में भारत और इस्राइल ने पाकिस्तान के कहूटा परमाणु संयंत्र (Kahuta Nuclear Plant) पर हवाई हमला करने की योजना बनाई थी। लेकिन उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी थी। यह योजना इतनी गोपनीय थी कि केवल कुछ चुनिंदा भारतीय और इस्राइली अधिकारी ही इससे वाकिफ थे।
भारत-इस्राइल की गोपनीय स्ट्राइक योजना और अमेरिका की दुविधा
खुलासे के अनुसार, भारत और इस्राइल ने पाकिस्तान के कहूटा प्लांट को नष्ट करने के लिए India-Israel Strike Plan तैयार किया था। यह वही संयंत्र था, जहां पाकिस्तान अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा था। रिपोर्ट्स बताती हैं कि अगर यह हमला होता, तो पाकिस्तान की परमाणु महत्वाकांक्षा उसी समय खत्म हो जाती।
लेकिन उस दौर में अमेरिकी राष्ट्रपति रॉनल्ड रीगन किसी भी सैन्य कार्रवाई के खिलाफ थे। कारण था अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ चल रहा अमेरिकी मिशन। इसलिए, अमेरिका ने इस योजना पर अप्रत्यक्ष रूप से रोक लगा दी। यही वजह थी कि इंदिरा गांधी ने राजनीतिक और रणनीतिक जोखिमों को देखते हुए इसे मंजूरी नहीं दी।
पाकिस्तान ने अमेरिका पर कैसे डाला दबाव
रिचर्ड बार्लो के मुताबिक, पाकिस्तान ने उस समय अमेरिका की अफगानिस्तान पर निर्भरता का भरपूर फायदा उठाया। पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन प्रमुख मुनीर अहमद खान ने अमेरिकी सांसदों को साफ चेतावनी दी थी कि अगर वॉशिंगटन ने मदद बंद की, तो पाकिस्तान अफगान युद्ध में सहयोग खत्म कर देगा। बार्लो ने कहा, “यह एक तरह की ब्लैकमेल रणनीति थी, जिसने अमेरिका को चुप रहने पर मजबूर कर दिया।”
यही रणनीति बाद में पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की सबसे बड़ी ढाल बनी। इसी कहूटा संयंत्र की बदौलत पाकिस्तान ने 1998 में अपने पहले परमाणु परीक्षण किए और खुद को परमाणु ताकत घोषित किया। यह वही प्लांट था जिसने पाकिस्तान को दक्षिण एशिया में एक Nuclear Threat के रूप में स्थापित कर दिया।
ईरान को पाकिस्तान से मिली थी परमाणु तकनीक
रिचर्ड बार्लो ने आगे बताया कि पाकिस्तान की परमाणु तकनीक केवल उसी देश तक सीमित नहीं रही। उनके अनुसार, ईरान की गैस सेंट्रीफ्यूज तकनीक का विकास सीधे तौर पर अब्दुल कादिर खान के नेटवर्क की देन था। उन्होंने कहा कि बिना पाकिस्तान की मदद के ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम की नींव नहीं रख सकता था।
हालांकि, अब ईरान ने अपने दम पर काफी प्रगति की है, लेकिन उसकी शुरुआती तकनीकी मदद पाकिस्तान से ही आई थी। बार्लो ने कहा, “अमेरिका ने 20 से 24 साल तक पाकिस्तान के इस गुप्त नेटवर्क के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया।”
आज के दौर में सबक
यह खुलासा केवल इतिहास की कहानी नहीं, बल्कि एक सबक भी है। यह दिखाता है कि कैसे राजनीतिक फैसले, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और युद्ध रणनीतियों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इंदिरा गांधी का वह निर्णय भले उस वक्त विवादास्पद लगा हो, लेकिन उसने दक्षिण एशिया को एक बड़ी तबाही से बचा लिया।


