लाल किला — सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि दिल्ली की पहचान है। और अब वहीं के बाहर हुई वो **कार ब्लास्ट** घटना पूरे देश को हिला गई है। जो कुछ सेकंड में हुआ, उसने पूरे सिस्टम की नींद उड़ा दी। सवाल एक है — क्या ये एक आम हादसा था या किसी बड़ी साजिश की शुरुआत?
NIA की एंट्री और जांच की दिशा
अब इस मामले की जांच **राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)** के हाथों में है। ये फैसला खुद केंद्र स्तर पर लिया गया, क्योंकि शुरुआती सबूतों ने कई शक पैदा किए। धमाका जिस कार में हुआ, उसमें पाए गए कुछ इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स और विस्फोटक अवशेषों ने जांच को ‘सामान्य दुर्घटना’ से ‘संदेहास्पद हमला’ की तरफ मोड़ दिया।
एक सूत्र से पता चला कि कार का नंबर फर्जी था, और इंजन नंबर भी बदलने की कोशिश की गई थी। अब ये बात मामूली तो नहीं लगती।

लाल किले जैसा लोकेशन क्यों चौंकाता है?
लाल किला दिल्ली का सबसे सुरक्षित और संवेदनशील इलाका माना जाता है। हर साल **15 अगस्त** को यहीं से प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं। अब सोचिए, ऐसी जगह के पास विस्फोट होना कितना बड़ा मैसेज हो सकता है। चाहे ये हादसा हो या साजिश — जगह का चुनाव इत्तेफाक नहीं लगता।
आंखों देखी गवाही: ‘पहले धुआं उठा, फिर सब सन्न’
एक दुकानदार ने बताया, “पहले ऐसा लगा जैसे टायर फट गया हो, लेकिन कुछ ही सेकंड में इतनी जोर की आवाज़ आई कि पूरा इलाका कांप गया।” वहीं पास में मौजूद एक रिक्षाचालक बोला, “जमीन तक हिल गई, लोग भाग रहे थे, और कुछ देर तक कुछ समझ नहीं आया।” ऐसी बातें सुनकर लगता है, दिल्ली ने फिर वही डर महसूस किया जो कभी इंडिया गेट या करोल बाग धमाकों के वक्त महसूस हुआ था।
अबतक क्या-क्या सामने आया?
अबतक की जांच में तीन मुख्य बातें सामने आई हैं — 1. **कार की पहचान संदिग्ध** है। 2. **विस्फोटक डिवाइस मैन्युअली एक्टिवेटेड** लग रही है। 3. धमाके के बाद **कई संदिग्ध नंबरों से कॉल एक्टिविटी** दर्ज की गई है। NIA अब इन फोन ट्रेल्स को ट्रैक कर रही है। साथ ही CCTV फुटेज की फॉरेंसिक स्कैनिंग भी चल रही है।
दिल्ली की सुरक्षा एजेंसियों पर भी सवाल
दिल्ली में पहले भी ऐसे मौके आए हैं जब बाद में कहा गया — “इनपुट था, लेकिन गंभीरता से नहीं लिया गया।” और यही बात अब फिर उठ रही है। क्योंकि धमाके से कुछ घंटे पहले लाल किला क्षेत्र में एक “असामान्य गंध और धुआं” की शिकायत दर्ज की गई थी। मगर उसे मामूली मान लिया गया। अब सवाल ये है — क्या हम फिर वही गलती दोहरा रहे हैं?
एक पुराने किस्से की याद
मुझे याद है, 2008 के दिल्ली धमाकों के वक्त मैं एक बाइक लॉन्च इवेंट में था। अचानक फोन आया — “कनॉट प्लेस में ब्लास्ट।” उस वक्त भी यही अफरा-तफरी थी, वही डर, वही सवाल — “हम कितने सुरक्षित हैं?” आज सालों बाद, वही डर दोबारा लौट आया है। बस फर्क इतना है कि अब सोशल मीडिया हर अफवाह को सेकंडों में फैला देता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और लोगों का गुस्सा
गृहमंत्री ने तुरंत **दिल्ली पुलिस कमिश्नर** से बात कर अपडेट मांगा। वहीं विपक्ष ने सुरक्षा में “बड़ी चूक” का आरोप लगाया। लेकिन आम लोग इस राजनीति से थक चुके हैं। एक युवक ने कहा, “हर बार जांच होती है, रिपोर्ट बनती है, फिर सब ठंडा पड़ जाता है। मगर डर वही रहता है।”
दिल्ली की सड़कों पर अब भी सन्नाटा
लाल किला के आस-पास अब बैरिकेड्स लगे हैं, गश्त बढ़ाई गई है। लेकिन वहां का माहौल अजीब सा है — जैसे हवा भी अब डर के साथ चल रही हो। दुकानदार जल्दी दुकानें बंद कर रहे हैं, टूरिस्ट्स कम दिख रहे हैं। दिल्ली जैसी कभी न थकने वाली सिटी अब एक पल के लिए थमी सी लगती है।
आखिरी बात
Seedhi baat kahun to — ये सिर्फ एक धमाका नहीं था, ये भरोसे पर चोट थी। लाल किला, जो आज़ादी की पहचान है, वहीं अब डर की गूंज सुनाई दे रही है। जांच चाहे जो भी नतीजा लाए, ये घटना हमें एक बार फिर याद दिला गई है — सुरक्षा और सतर्कता कभी छुट्टी पर नहीं जा सकती।


