दिल्ली का माहौल अब भी भारी है। लाल किला ब्लास्ट के बाद से लोगों के चेहरों पर डर, गुस्सा और बेबसी सब कुछ एक साथ नजर आता है। लेकिन आज सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने थोड़ी राहत दी — मृतकों के परिवारों के लिए **मुआवजे का ऐलान**। मुख्यमंत्री **रेखा गुप्ता** ने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी जानकारी दी।
सरकार का फैसला: मुआवजा और मदद दोनों
रेखा गुप्ता ने कहा कि धमाके में जिन परिवारों ने अपनों को खोया, उन्हें राज्य सरकार की ओर से आर्थिक सहायता दी जाएगी। मृतकों के परिवार को **10-10 लाख रुपये**, गंभीर रूप से घायल लोगों को **5 लाख रुपये**, और मामूली रूप से घायल नागरिकों को **50,000 रुपये** दिए जाएंगे। साथ ही, जिनके घर या दुकानें इस धमाके में नुकसान झेल चुकी हैं, उन्हें भी विशेष राहत पैकेज में शामिल किया जाएगा।
उनके लहजे में राजनीति नहीं, इंसानियत थी। उन्होंने कहा — “पैसा किसी की जान नहीं लौटा सकता, पर ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन परिवारों के साथ खड़े रहें जिन्होंने सबसे बड़ा नुकसान झेला है।”

लाल किला धमाके की गूंज अब भी जारी
पिछले हफ्ते **लाल किले के बाहर हुई कार ब्लास्ट घटना** में कई लोग मारे गए थे और दर्जनों घायल हुए। धमाके की गूंज न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे देश में सुनाई दी। कुछ सेकंड के धमाके ने कितनों की दुनिया उजाड़ दी।
मैं खुद उस वक्त पुरानी दिल्ली की तरफ से गुज़र रहा था। सायरनों की आवाज़, भागते लोग और हवा में बारूद की गंध... वो दृश्य भूलना मुश्किल है। एक बुजुर्ग महिला सड़क किनारे बैठी रो रही थी — “मेरा बेटा तो अभी चाय लेकर गया था…”। उस पल समझ आया कि ऐसे हादसे सिर्फ खबर नहीं होते, ज़िंदगियां निगल जाते हैं।
NIA की जांच जारी, मगर अब फोकस परिवारों पर
जहां एक तरफ **NIA जांच** में जुटी है, वहीं दिल्ली सरकार अब पीड़ित परिवारों की मदद पर ध्यान दे रही है। हर जिले में एक अधिकारी को नियुक्त किया गया है जो इन परिवारों से सीधे संपर्क करेगा, ताकि कोई भी सहायता सिर्फ घोषणा तक सीमित न रह जाए।
रेखा गुप्ता ने यह भी बताया कि मृतकों के बच्चों की शिक्षा और बीमा खर्च भी सरकार उठाएगी। उन्होंने कहा, “ये परिवार अकेले नहीं हैं। दिल्ली सरकार उनके साथ है — न सिर्फ आज, बल्कि आने वाले वक्त में भी।”
जनता का गुस्सा और भरोसा दोनों
लोगों का गुस्सा समझ में आता है। “हर बार हादसा होता है, फिर वादे होते हैं, और कुछ महीनों बाद सब भूल जाते हैं।” — ये बात एक ऑटो ड्राइवर ने मुझसे कही। और सच मानिए, ये गुस्सा जायज़ है। लेकिन इस बार थोड़ी उम्मीद है, क्योंकि कम से कम कार्रवाई तेज़ दिख रही है।
सरकार का मुआवजा ऐलान प्रतीकात्मक जरूर है, पर कभी-कभी प्रतीक ही इंसान को खड़ा रख देते हैं। खासकर तब, जब सब कुछ खो चुका हो।
दिल्ली की हवा में अब भी सन्नाटा है
धमाके की जगह अब भी घेराबंदी में है। पुलिस, फायर ब्रिगेड और NIA की टीम लगातार जांच कर रही है। लेकिन आम लोग अब भी उस जगह से गुजरने में हिचकिचा रहे हैं। दुकानदार कह रहे हैं — “बिक्री तो वैसे भी ठप है, अब तो लोग डर के मारे रुकते ही नहीं।” ये वही दिल्ली है, जो हर बार गिरकर भी खड़ी होती है। पर इस बार चोट थोड़ी गहरी है।

एक निजी सोच: राहत से ज्यादा ज़रूरत भरोसे की
Seedhi baat kahun to — मुआवजे से ज़्यादा ज़रूरी है भरोसा बहाल करना। लोगों को ये महसूस कराना कि सिस्टम सिर्फ जांच नहीं करता, बल्कि इंसानियत से भी काम करता है। दिल्ली ने बहुत कुछ देखा है — गैंगवार, दंगे, महामारी, अब ये धमाका। पर हर बार इस शहर ने कहा है, “मैं फिर उठूंगा।”
आखिरी बात
सरकार की घोषणा से पीड़ितों के परिवारों को थोड़ी राहत जरूर मिलेगी, लेकिन डर का साया अब भी मौजूद है। लाल किला सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं, इतिहास की आत्मा है। और जब वहीं धमाका होता है, तो सवाल सिर्फ सुरक्षा का नहीं — हमारी संवेदनशीलता का भी होता है।
शायद अब वक्त आ गया है कि हम सिर्फ मुआवजे नहीं, जवाबदेही की भी मांग करें। क्योंकि दर्द कम नहीं होता, सिर्फ यादें रह जाती हैं — धुएं की तरह, जो धीरे-धीरे हवा में घुल जाता है… पर खत्म नहीं होता।


