कभी-कभी एक पल में सब खत्म हो जाता है। और जो बचता है, वो सिर्फ राख, चीखें और अधूरी कहानियां होती हैं। **दिल्ली लाल किला ब्लास्ट** की खबर जब पहली बार सुनी, तो लगा किसी फिल्म का सीन है। पर फिर देखा, उन टूटी गाड़ियों के बीच बिखरी रोटियां, जली हुई साइकिलें और खामोश मोबाइल फोन — लगा ये हकीकत है, और बहुत कड़वी भी।
ई-रिक्शा चलाकर परिवार पालने वाला अब नहीं लौटा
शाहनवाज़ नाम था उसका। पुरानी दिल्ली के नजदीक रहता था। हर सुबह लाल किले के पास अपने **ई-रिक्शा** से सवारी उठाता, और दिनभर की कमाई से तीन बच्चों का पेट भरता था। उस दिन भी वही रूट था, वही वक्त — फर्क सिर्फ इतना कि वापस आने की कोई कहानी नहीं बची। उसका रिक्शा अब पुलिस लाइन में खड़ा है, और घर में बस खामोशी। उसकी बीवी ने रोते हुए कहा, “वो कहता था, अभी बच्चों को बड़ा करना है... अब कौन करेगा?”

प्रिंटिंग प्रेस में काम करने वाला राजेश, जो सिर्फ टाइम पास कर रहा था
राजेश बस वेट कर रहा था — पांच बजे की शिफ्ट खत्म हो, और वो घर जा सके। वही वक्त था जब धमाका हुआ। **प्रिंटिंग प्रेस** में काम करने वाला ये लड़का ज़्यादा कमाता नहीं था, लेकिन अपने गांव में हर महीने पैसे भेजता था। उसके साथी ने बताया, “वो कह रहा था शाम को चाय पीने चलेंगे... फिर बस धुआं ही धुआं दिखा।”
मौके पर सन्नाटा, जो आज भी कानों में गूंजता है
मैं खुद उस जगह से कुछ ही किलोमीटर दूर था। आवाज़ आई — एक भारी धमाका, फिर भागते लोग। वो सन्नाटा जो इसके बाद फैला, वो शायद ज़िंदगीभर नहीं भूल पाऊंगा। दिल्ली की सड़कें जो हमेशा हॉर्न और हलचल से गूंजती हैं, वहां उस वक्त बस एक डर था। ऐसा डर जो सीने में गूंजता है।
किसी की बाइक, किसी का सपना — सब राख हो गया
एक जगह पर खड़ी तीन गाड़ियां पूरी तरह जल चुकी थीं। पास में किसी का हेलमेट पड़ा था, जिस पर लिखा था “Ride Hard”. और irony देखिए, अब कोई ride बाकी नहीं रही। वहां मौजूद एक बुजुर्ग बोले — “बेटा, दिल्ली अब दिल्ली नहीं रही... हर धमाके में थोड़ा-थोड़ा भरोसा मरता है।” उस बात में सच्चाई थी, कड़वी लेकिन साफ।
सरकार की तरफ से राहत, लेकिन घाव कहीं गहरे हैं
गृहमंत्री ने तुरंत **दिल्ली पुलिस कमिश्नर** से बात की, जांच के आदेश दिए, और मुआवज़े की घोषणा भी हुई। पर जो मां ने बेटे को खोया, या बच्चे ने पिता को — उनके लिए राहत का क्या मतलब? उन्हें अब सिर्फ नाम याद हैं, चेहरों के बिना।
दिल्ली की रफ्तार फिर चल पड़ेगी, पर दिलों में धुआं रहेगा
दिल्ली ऐसी जगह है जो कभी रुकती नहीं। कल सब फिर काम पर निकलेंगे, मेट्रो चलेगी, ट्रैफिक जाम होगा। लेकिन इस शहर की दीवारों में अब एक और कहानी लिखी जा चुकी है — उन लोगों की जो बस गलत वक्त पर गलत जगह थे। और यही ज़िंदगी की सबसे बड़ी विडंबना है।
अंत में...
कई बार सोचता हूं — हम सब दौड़ में इतने मशगूल हैं कि दर्द की कहानियां बस एक ट्रेंडिंग न्यूज़ बन जाती हैं। पर ये हादसे हमें याद दिलाते हैं कि ज़िंदगी वाकई कितनी नाज़ुक है। **लाल किले का इलाका** अब भी वहीं है, बस कुछ दीवारें अब ज़्यादा चुप हैं।


