दिल्ली घुटने लगी हवा से लोग थक गए सच में हालात बिगड़ चुके हैं
दिल्ली की हवा फिर भारी हो गई लोग घबरा रहे ग्रैप 3 लागू होते ही सड़कों का रंग बदला और वर्क फ्रॉम होम की मंजूरी ने हालात को थोड़ा उलझा भी दिया
सीधी बात बोलूं तो इस बार दिल्ली की हवा कुछ ज्यादा ही कसैली लगी अचानक आंखों में जलन गला भारी और मन में एक अजीब सा डर जैसे शहर खुद कह रहा हो बस अब रुक जाओ
और हां एक बात और ग्रैप 3 लागू हुआ वर्क फ्रॉम होम की मंजूरी भी पर मन में लगा ये सब तो हर साल का वही चक्कर है कुछ बदला नहीं बस नियम की लिस्ट थोड़ी लंबी हो गई
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दो पुराने किस्से फिर जाग उठे
पहला किस्सा 2018 का सरिता विहार की तरफ जा रहा था हवा इतनी खराब कि ऑटो वाला बीच रास्ते ही बोल पड़ा भैया मैं नहीं चला पाऊंगा दम सा घुट रहा है उस दिन बिजली सी कड़की थी दिल में आज फिर वही कड़ापन महसूस हुआ
दूसरा किस्सा कोविड के टाइम का ऑफिस चला घर से ही एक सहकर्मी ने कॉल पर कहा बाहर निकली थी हवा ने सिर घुमा दिया जैसे चक्कर से घेर लिया हो आज जब फिर वर्क फ्रॉम होम की बात आई तो उसकी वही थकी हुई आवाज याद आई
ग्रैप 3 आया पर बीमारी और गहरी
जहां तक मेरा सवाल है ग्रैप 3 थोड़ा अस्थायी इलाज जैसा लगता है जैसे छत टपक रही हो और हम नीचे बाल्टी रखकर खुश हो लें असली दिक्कत तो शहर के बाहर भी है खेतों में धुआं कारखानों में धूल पर बोझ दिल्ली की नाक पर ही आ गिरता है हर साल
लोग पूछते हैं ये कब रुकेगा जवाब किसी के पास नहीं बस वादे आते हैं
वर्क फ्रॉम होम राहत भी और झुंझलाहट भी
कुछ लोग बोले अच्छा है जान बची कुछ ने थककर कहा घर ही ऑफिस बन गया हवा बाहर निकलने नहीं देती ये भी अजीब है कि जहरीली हवा से बचने का तरीका अब घर में कैद होना बन गया
और सच ये कि वर्क फ्रॉम होम धीरे धीरे दिल्ली के प्रदूषण का अनौपचारिक उपाय बन गया है थोड़ी हंसी आती है पर सच यही है
दिल्ली को सफाई नहीं सुधार चाहिए
मेरे मन में एक बात बार बार आती है हम सब उम्मीद करते हैं कि हवा खुद सुधर जाएगी पर हवा कोई इंसान थोड़ी जो अचानक बदल जाए ये तो हमारे ही काम का असर है सड़क की धूल कारों की भीड़ खेतों की आग सब मिलकर शहर पर एक मोटी चादर डाल देते हैं
अंत का हिस्सा पर अंत जैसा नहीं
दिल्ली अब अपनी ही हवा से हारती दिख रही है ग्रैप 3 लगेगा फिर हटेगा फिर लगेगा ये चक्र चलता रहेगा जब तक असली सुधार जमीन पर नहीं होगा
और हां दिल्ली वाले मजबूत हैं पर हवा के सामने मजबूत शब्द भी छोटा पड़ जाता है लड़ाई शुरू करनी ही पड़ेगी वरना आने वाले सालों में हम मास्क नहीं पूरे चेहरे ढककर घूमने वाले शहर बन जाएंगे
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