दिल्ली में यमुना का उफान लोगों की चिंता बढ़ा रहा है दिल्ली के लोग इस समय सबसे बड़ी चिंता में जी रहे हैं। कई दिनों से लगातार जारी बारिश ने राजधानी को परेशानी में डाल दिया है। यमुना नदी का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है और पुराने रिकॉर्ड तोड़ने की स्थिति में है। निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। कई कॉलोनियों में पानी भर गया है और सड़कें तालाब जैसी दिख रही हैं। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे और लोग दफ्तर देर से पहुंच रहे हैं। प्रशासन नाव और बड़े ट्रैक्टरों की मदद से लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचा रहा है। यमुना किनारे बसे गांवों के लोग बेहद दहशत में हैं क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं रात में पानी और ज्यादा न बढ़ जाए। ऐसे दृश्य देखकर साफ समझ आता है कि बारिश जब मेहरबान होती है तो राहत देती है और जब कहर बनकर टूटती है तो रूतबा छीन लेती है।
कश्मीर की झेलम नदी भी खतरे की रेखा के पार
उत्तर भारत में सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि कश्मीर घाटी भी इस समय बुरी तरह से बारिश से जूझ रही है। झेलम नदी का पानी कई जगहों पर खतरे की निशान से ऊपर पहुंच गया है। श्रीनगर और आसपास के इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं। लोग अपने घरों से सामान निकालकर ऊंचे इलाकों में शरण ले रहे हैं। बाजारों में पानी भरने लगा है और दुकानदारों के लिए अपना सामान बचाना मुश्किल हो रहा है। पुराने श्रीनगर शहर की गलियों में नावें चलने जैसी स्थिति बन गई है। प्रशासन लगातार हालात पर नजर रखे हुए है, लेकिन लोगों के चेहरों से चिंता साफ झलक रही है। लोग कह रहे हैं कि यह नजारा किसी कुदरती आपदा से कम नहीं है जहां इंसान सिर्फ बचाने और भागने की स्थिति में रह जाता है। झेलम की लहरें चिंता को और तेज कर रही हैं और उन लहरों के साथ लोगों के सपने और उम्मीदें भी बहते हुए नजर आती हैं।
उत्तराखंड और हिमाचल में भी बारिश का तांडव
दिल्ली और कश्मीर ही नहीं, बल्कि उत्तराखंड और हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में भी हालात बेहद खराब हैं। लगातार भारी बारिश ने पहाड़ों को हिला दिया है। जगह-जगह भूस्खलन हो रहा है, सड़कें टूट गई हैं और यातायात ठप पड़ा है। कई गांवों का संपर्क जिला मुख्यालय से कट गया है। चारधाम यात्रा पर निकले यात्रियों को बीच रास्ते फंसना पड़ा और उन्हें सुरक्षित निकालने के लिए सेना और एनडीआरएफ को काम पर लगाना पड़ा। पहाड़ों पर जो नदियां अमूमन शांति से बहती हैं, उन्होंने अब अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया है। किसी पुल का गिर जाना, किसी सड़क का धंस जाना, किसी बस का बीच रास्ते फंसना—ऐसे दृश्य हर जगह देखने को मिल रहे हैं। वहां रहने वाले लोगों की जिंदगी मानो थम गई है और वे सिर्फ दुआ कर रहे हैं कि बारिश बंद हो जाए।
गांव और शहर दोनों में पसरा खौफ
कुदरत का यह जुल्म सिर्फ बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि गांवों तक फैल गया है। खेत, जिनमें लोग अपने आने वाले दिनों के लिए मेहनत करके अनाज उगाते थे, अब पानी में डूब चुके हैं। किसान सबसे ज्यादा दुखी हैं क्योंकि उनका सालभर का सहारा पानी की धाराओं में बह रहा है। जिस यमुना और गंगा को लोग जीवनदायिनी मानते हैं वही अब विनाशकारी शक्ल में सामने आ रही हैं। गांव के छोटे-छोटे घर, जो मिट्टी और लकड़ी से बने हैं, तेज बारिश में गिर गए हैं। लोग खुले आसमान के नीचे बैठकर बच्चों और बूढ़ों को संभाल रहे हैं। शहरों में भी हालात अलग नहीं हैं। सड़कें खाली दिख रही हैं, दुकानें बंद हैं और हर व्यक्ति की जुबान पर यही सवाल है कि आखिर कब यह कहर खत्म होगा। दिल्ली से लेकर कश्मीर तक किसी की नींद चैन से नहीं है।
प्रशासन की चुनौतियां और लोगों की उम्मीदें
इस मुश्किल घड़ी में प्रशासन पूरी ताकत से जुटा हुआ है, लेकिन चुनौतियां बहुत भारी हैं। दिल्ली में नाव और राहत कैंप बनाए गए हैं, तो कश्मीर में सेना और आपदा प्रबंधन टीम लगातार लोगों को बचा रही है। हेलीकॉप्टर की मदद से बाढ़ में फंसे लोगों को सुरक्षित निकाला जा रहा है। मेडिकल टीमें भी तैनात हैं ताकि यदि कोई बीमार पड़ जाए तो उसकी तुरंत मदद हो सके। लेकिन लोगों की तकलीफें इतनी हैं कि राहत पहुंचने के बाद भी उनका दर्द कम नहीं हो रहा। बारिश के रुकने की प्रार्थना हर व्यक्ति कर रहा है। लोगों को भरोसा है कि सरकार उनके साथ खड़ी है, लेकिन असली राहत तभी मिलेगी जब आसमान से उतरती यह आफत कुछ दिनों के लिए रुक जाएगी।
कुदरत के सामने इंसान क्यों बेबस नजर आता है
हर बार जब ऐसी बारिश होती है तो एक बात साफ हो जाती है कि इंसान कितना ही बड़ा क्यों न बन जाए, कुदरत के सामने वह बेबस ही साबित होता है। दिल्ली की यमुना और कश्मीर की झेलम जैसे बड़े दरिया कुछ ही घंटों में बता देते हैं कि उनकी ताकत क्या है। लोग चाहे ऊंची-ऊंची इमारतें बना लें, सड़कें चौड़ी कर लें, या अपनी सुविधाएं बढ़ा लें, लेकिन जब कुदरत कहर ढाती है तो सबकुछ रोक देती है। इस बार की बारिश ने फिर दिखा दिया कि हमें अपनी प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर चलना होगा। पेड़ न काटना, नदियों के किनारे अवैध निर्माण रोकना और जलभराव जैसी समस्याओं को गंभीरता से लेना ही इस तरह की आपदाओं से बचाव का रास्ता है। वरना दिल्ली से लेकर कश्मीर तक हमें बार-बार यही दुखद हालत देखने को मिलेंगे।