सालों से हम सुनते आए हैं कि आर्थिक ग्रोथ का अंदाजा सिर्फ आंकड़ों और रिपोर्ट से नहीं बल्कि आम लोगों की जिंदगी और बाजार से भी लगाया जा सकता है। कई बार ऐसा भी होता है कि लोग मंहगाई, मंदी या तेजी को अपने आस-पास के फैशन और खरीदारी के तरीकों से समझते हैं। उदाहरण के तौर पर, जब बाजार में पैसे की गति बढ़ती है और लोगों के पास खर्च करने की क्षमता बढ़ती है तो यह कपड़ों की शैली और फैशन में भी साफ झलकता है
जितनी छोटी स्कर्ट होगी, उतनी अच्छी होगी इकोनॉमिक ग्रोथ क्यों कहा जाता है
यह लाइन केवल मज़ाक या व्यंग्य नहीं है बल्कि इसके पीछे मनोविज्ञान और आर्थिक संकेत छिपे हुए हैं। जब समाज में पैसों की कमी होती है तो लोग साधारण और सादगी वाले कपड़े पसंद करते हैं। लेकिन जैसे ही इकोनॉमिक ग्रोथ का दौर आता है, लोग न केवल ज्यादा खर्च करना शुरू कर देते हैं बल्कि फैशन में भी बोल्ड और खुलकर आगे आते हैं। खासकर महिलाओं के पहनावे में यह बदलाव सबसे पहले दिखाई देता है। स्कर्ट की लंबाई छोटी होने का मतलब है आत्मविश्वास और खुलेपन का प्रदर्शन, और यह आत्मविश्वास अक्सर तब आता है जब जेब में पैसा और दिमाग में सुरक्षा होती है।
शेयर मार्केट की तेजी और फैशन स्टाइल में बदलाव
शेयर मार्केट और फैशन दोनों का एक अजीब रिश्ता बताया जाता है। जब शेयर बाजार उड़ान भरता है तो लोगों के बीच एक खास उत्साह दिखाई देता है। महिलाएं और नौजवान नई डिजाइन और छोटे कपड़े खरीदने लगते हैं। इसका कारण यह है कि बाजार में पैसा घूम रहा होता है और लोग भविष्य को लेकर सकारात्मक महसूस करते हैं। इस सकारात्मकता के चलते परिधान उद्योग यानी गारमेंट सेक्टर को भी बढ़ावा मिलता है। यह एक तरह से सीधा संकेत होता है कि बाजार में आर्थिक ग्रोथ का माहौल है।
फैशन केवल शोहरत नहीं, यह आर्थिक संकेत भी है
कई बार लोग सोचते हैं कि फैशन केवल फिल्मों, टीवी या अमीरों का शौक है। मगर असलियत यह है कि फैशन हमें अर्थव्यवस्था की नब्ज पकड़ने का मौका देता है। अगर दुकानों पर महंगे ब्रांड, छोटे स्टाइलिश कपड़े और लगातार नए ट्रेंड आ रहे हैं, तो इसका मतलब है कि आम लोग भी खरीदारी कर रहे हैं और उनकी जेबें मजबूत हो रही हैं। ठीक इसके उलट, जब मंदी आती है तो कपड़ों में चमक कम हो जाती है और लोग बड़े खर्च से बचने लगते हैं।
इतिहास में फैशन और मंदी का संबंध
हमारे इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं जब फैशन के बदलते रुझान और आर्थिक हालात ने एक-दूसरे की झलक दिखाई है। 1929 की महान आर्थिक मंदी के समय कपड़े लंबे और साधारण हो गए थे, जबकि 1960 और 1970 के दशक में जब पश्चिमी देशों में तेज आर्थिक विकास हुआ, तब मिनी स्कर्ट का चलन तेजी से बढ़ा। यह उदाहरण यह साबित करता है कि इकोनॉमिक ग्रोथ और कपड़ों की स्टाइल एक-दूसरे को दर्शाते हैं।
आज के समय में बदलती सोच और बदलाव
आज की दुनिया सोशल मीडिया और ग्लोबल मार्केट से जुड़ी हुई है। फैशन अब केवल पेरिस, मिलान या मुंबई की रैंप तक सीमित नहीं है। इंस्टाग्राम या ऑनलाइन शॉपिंग ऐप्स पर दिखने वाले छोटे और आधुनिक कपड़े इस बात का सबूत हैं कि युवा पीढ़ी पहले से ज्यादा खर्च कर रही है। ऐसे दौर में यह कहा जाना कि "जितनी छोटी स्कर्ट होगी, उतनी अच्छी होगी इकोनॉमिक ग्रोथ" केवल एक कहावत भर नहीं बल्कि हकीकत का आईना है।
महिलाओं की आज़ादी और आर्थिक हालात का रिश्ता
यह बात सही है कि कपड़ों की लंबाई का मज़ाक उड़ाना गलत है, लेकिन इसे एक संकेत की तरह पढ़ना चाहिए। जब समाज में महिलाएं सुरक्षित और आत्मनिर्भर महसूस करती हैं तो वे खुले मन से फैशन अपनाती हैं। और यह सब तभी संभव है जब देश की अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही हो और समाज में स्थिरता हो। यानी एक और पहलू यह है कि फैशन समाज की आज़ादी और आत्मविश्वास को भी दिखाता है।


