Employment in bihar : उद्योग, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे असल मुद्दे चुनावी बहस से क्यों दूर रहे?

Employment in bihar के मुद्दे पर चर्चा कम क्यों होती है? उद्योग, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे जरूरी विषय चुनाव लड़ाई में क्यों पीछे रह जाते हैं। जानिए बिहार में रोजगार को लेकर क्या हैं असल बातें और चुनौतियां।

Employment in bihar : उद्योग, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे असल मुद्दे चुनावी बहस से क्यों दूर रहे?

खबर का सार AI ने दिया · GC Shorts ने रिव्यु किया

    बिहार में रोजगार, उद्योग, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे असल मुद्दे चुनाव प्रक्रिया में क्यों गुम?

     

    बिहार की राजनीति में रोज़गार, उद्योग, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम मुद्दे क्यों पीछे रह जाते हैं?

    बिहार में रोज़गार, उद्योग, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे हैं। ये, मांगे बहुत जरूरी हैं। पर चुनाव के दौरान ये मुद्दे अक्सर दिखाई नहीं देते। क्यों? जनता डूबे हुए है विकास की जमीनी हकीकत में, पर नेताओं की जुबान पर जाति और धर्म का बोलबाला है। असल मुद्दों पर चर्चा कम होती है। लगता है कहीं भटकाव हो गया है रास्ता।

     

    बिहार की पहचान आज मजदूर सप्लायर के रूप में क्यों बदली है?

    बिहार सदियों से समृद्ध रहा है। मगर अब पहचान बदली है। मजदूर सप्लायर के नाम से ही जाना जाता है। क्यों? क्योंकि उद्योग जो कभी यहां फल-फूलते थे, अब पलायन कर चुके हैं। रोजगार के अवसर कम हैं। आम आदमी की जेब खुशहाल नहीं। प्रति व्यक्ति आय बहुत कम, राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे। ये सब सोचनी वाली बात है।

     

    उद्योगों के पलायन और कानून-व्यवस्था की दिक्कतों ने बिहार की प्रगति कैसे रोकी?

    उद्योग जब चले गए, तो काम भी गया। रोजगार के रास्ते बंद हो गए। और अफसोस, कानून का खोखला होना इस समस्या को बढ़ाता रहा। अपराध और अराजकता ने निवेशकों को डराया। सरकारी नीतियां बनीं, पर जमीन पर असर कम हुआ। बिहार के युवा बेरोजगार बैठपन रह गए। विकास की कहानी अधूरी सी रह गई, जो सबसे बड़ा दुख है।

     

    शिक्षा और स्वास्थ्य की कमी बिहार में क्यों बनी सबसे बड़ी समस्या?

    स्कूल तो हैं। लेकिन पढ़ाई का स्तर नाकाफी है। स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित। डॉक्टरों की कमी, अस्पताल दूर। बच्चों का भविष्य अधर में है। माता-पिता चिंतित हैं। पढ़े-लिखे बिहार के युवा रोजगार की उम्मीद छोड़ने लगे हैं। ऐसी व्यवस्था से कैसे बनेगा विकास? ये सवाल हर किसी के दिल में उठता है।

     

    चुनावों में असली मुद्दे क्यों पीछे रह जाते हैं? राजनीति का क्या रोल है?

    बिहार की राजनीति में जाति-धर्म का असर बड़ा है। असल समस्याओं की जगह इन मुद्दों ने ध्यान खींचा है। नेताओं का ध्यान भी वोट बैंक पर ज्यादा होता है। विकास की बातें नज़र नहीं आतीं, केवल भाषणों तक सीमित रह जाती हैं। जनता जानती है पर चुप रहती है। कहीं खो गया है वो लोकतंत्र का असली मकसद।

     

    बिहार के युवाओं की उम्मीद क्या है, और वे क्या चाहते हैं?

    बिहार के युवा बेहतर शिक्षा, बेहतर रोज़गार, और बेहतर स्वास्थ्य सेवा चाहते हैं। वे चाहते हैं कि चुनावी वादे पर काम हो, सिर्फ नारेबाजी नहीं। नौजवान समझदार हो रहा है, और अपने भविष्य की चिंता भी। अगर मौका मिला तो वे बिहार को आगे ले जा सकते हैं। अभी उनकी आवाज़ सुननी होगी।

     

    राजनीति में कैसे आए बदलाव जो असली मुद्दों को आगे लाएं?

    सरकार और नेता मिलकर तय करें कि विकास की बात आगे बढ़े। केवल वोट की राजनीति कम हो। रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य को प्राथमिकता मिले। लोगों का भरोसा वापस आए। आम जनता से संवाद बढ़े। जब ये हुआ तभी बिहार का सच में भला होगा। तभी शिक्षा सुधार, उद्योग बढ़ेंगे और बिहार की तस्वीर बदलेगी।

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