दिल्ली में सिग्मा गैंग का अंत : बिहार के कुख्यात रंजन पाठक समेत चार बदमाश ढेर
रात थी वो लंबी और डर से भरी। दिल्ली के रोहिणी इलाके में अचानक गोलियों की आवाज गूंजी। कुछ मिनट बाद सड़क पर पुलिस की नीली और लाल लाइट चमक रही थी। यह कोई फिल्म का सीन नहीं था, बल्कि असली मुठभेड़ थी। बिहार के कुख्यात ‘सिग्मा गैंग’ का अंत यहीं हुआ, जब उसका सरगना रंजन पाठक अपने साथियों के साथ मारा गया।
रंजन पाठक – बिहार का वो नाम जिससे डर लगता था
रंजन पाठक कोई मामूली अपराधी नहीं था। मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, समस्तीपुर – हर जिले में उसका नाम पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज था। लोग कहते थे, "जहाँ रंजन कदम रखता है, वहाँ गोली चलती है।" पुलिस महीनों से उसके पीछे थी। उसके ही नेतृत्व में बना था ‘सिग्मा एंड कंपनी’ गैंग। यह गिरोह बिहार के चुनाव के वक्त दहशत फैलाने की तैयारी में था। लेकिन अब यह सिर्फ अतीत बन गया है।
रोहिणी की वो रात जब सब खत्म हुआ
गुरुवार देर रात। दिल्ली पुलिस और बिहार एसटीएफ का एक साझा ऑपरेशन। लक्ष्य – रंजन पाठक। करीब 11 बजे पुलिस को उसकी SUV दिखी। इशारा हुआ, गाड़ी रुकी नहीं। गोली चली। जवाब में पुलिस ने मोर्चा संभाला। 10 मिनट तक लगातार गोलियों की आवाज गूंजती रही। जब धुआं छंटा, तो गाड़ी के अंदर चार लाशें थीं। उनमें सबसे ऊपर थी – रंजन पाठक।
डीजीपी बोले – इस गैंग की योजना थी डर पैदा करने की
अगले ही दिन बिहार के डीजीपी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उनके शब्द छोटे थे पर सख्त। “हमें जानकारी थी कि सिग्मा गैंग बिहार चुनाव में हिंसा फैलाने की साजिश रच रहा है। यह गिरोह संवेदनशील इलाकों में धमाका करने की योजना बना रहा था। हमने दिल्ली पुलिस के साथ कॉर्डिनेशन किया और ऑपरेशन को अंजाम दिया।” बयान साफ था – बिहार में अब दहशत की राजनीति नहीं चलेगी।
तीन हफ्तों की प्लानिंग और एक रात की कार्रवाई
पुलिस सूत्रों के मुताबिक ऑपरेशन कोई अचानक फैसला नहीं था। तीन हफ्तों से रंजन पाठक की मूवमेंट ट्रैक की जा रही थी। कॉल डिटेल, लोकेशन, CCTV सब पर नजर रखी गई। एक शाम पुलिस को पक्का सुराग मिला – वो दिल्ली में है। बस फिर क्या था, बिहार एसटीएफ और दिल्ली पुलिस के अधिकारी रोड पर उतरे और उसे घेरने का प्लान बना लिया। बाकी कहानी अब इतिहास है।
मुठभेड़ के बाद पुलिस को क्या मिला
जगह की तलाशी ली गई। SUV में तीन पिस्तौल, दो राइफलें, 250 से ज्यादा कारतूस, नकली आईडी कार्ड और कुछ रहस्यमयी दस्तावेज मिले। उनमें चुनावी नक्शे और दो नेताओं के फोटो भी थे। पुलिस मानती है कि यह गैंग बिहार में एक सुनियोजित वारदात की तैयारी में था। अब जांच चल रही है कि इसके पीछे कोई और दिमाग भी था या नहीं।
‘सिग्मा एंड कंपनी’ का नेटवर्क कितना बड़ा था
यह गिरोह बिहार के कई जिलों तक फैल चुका था। इसमें ठेकेदारों, गुंडों और कुछ पुराने नेताओं तक का कनेक्शन था। रंजन पाठक पैसों के बदले हथियार सप्लाई कराता था। कई बार उसे पकड़ने की कोशिश हुई लेकिन हर बार वो दिल्ली या हरियाणा भाग जाता। कहा जाता है कि वो खुद बोलता था – “जब तक दिल्ली है, तब तक मैं सेफ हूं।” पर ये भरोसा भी इस बार टूट गया।
चश्मदीद बोले – डर था, फिर राहत मिली
रोहिणी के लोग अभी भी उस रात को नहीं भूले। एक निवासी ने कहा, “हम सोचें आतंकी हमला हो गया। पर जब सुबह पता चला कि वो सिग्मा गैंग के लोग थे, तब राहत हुई।” इलाके में अब भी पुलिस तैनात है, ताकि सबूतों की जांच की जा सके।
राजनीति भी झटपटी सक्रिय हो गई
जैसे ही मुठभेड़ की खबर आई, बिहार के सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई। कुछ नेताओं ने पुलिस की तारीफ की, तो कुछ ने सवाल खड़े किए – “अगर इतना बड़ा नेटवर्क था तो रोकने में इतना वक्त क्यों लगा?” लेकिन एक बात पर सबने हामी भरी – सिग्मा गैंग का खात्मा बिहार की सुरक्षा के लिए बड़ा कदम है।
दिल्ली-बिहार पुलिस की जुगलबंदी दिखी असरदार
इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी जीत दो राज्यों की संयुक्त रणनीति है। डीजीपी ने कहा – “अगर दिल्ली पुलिस साथ न होती, तो ये संभव नहीं था।” यह बयान सिर्फ तारीफ नहीं, एक संकेत भी है कि अब स्टेट बॉर्डर अपराधियों को नहीं बचा सकता। ये सहयोग मॉडल अब दूसरे राज्यों में भी अपनाने की बात चल रही है।
लोगों के मन में डर और उम्मीद दोनों
बिहार के लोगों के लिए खबर राहत लाने वाली जरूर थी, पर डर भी है। क्योंकि सिग्मा गैंग का नेटवर्क बड़ा था, उसके साथी अब भी कहीं छिपे हैं। पुलिस का कहना है कि वो जल्द बाकी नामों तक भी पहुंचेगी। एक अधिकारी ने कहा, “कानून की पकड़ धीमी हो सकती है, पर ढीली नहीं।”


