भारत सरकार की इथेनॉल योजना से गन्ना किसानों को भुगतान पहले के मुकाबले तेजी से मिलने लगा है। सरकार का दावा है कि इस योजना से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। लेकिन किसानों का कहना है कि उन्हें केवल पैसा जल्दी मिल रहा है, असली फायदा नहीं। मक्का किसानों की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है क्योंकि उन्हें उचित दाम नहीं मिल रहे। किसान मानते हैं कि जब तक समर्थन मूल्य नहीं बढ़ेगा, बड़ा लाभ संभव नहीं।
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इथेनॉल: किसानों को लाभ या निराशा?
खबर का सार AI ने दिया · News Team ने रिव्यु किया
इथेनॉल से गन्ना भुगतान में तेज़ी, लेकिन मुनाफ़ा कम
मक्का किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा
सरकार से किसानों की माँग: MSP बढ़ाएँ और पारदर्शिता सुनिश्चित करें
इथेनॉल एक जैविक ईंधन है जिसे गन्ना, मक्का, या दूसरे फसलों से बनाया जाता है। भारत सरकार ने पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने की योजना शुरू की है ताकि तेल के आयात पर निर्भरता कम हो सके। इथेनॉल पर्यावरण के लिए भी बेहतर माना जाता है क्योंकि इससे हवा में जहरीली गैसें कम निकलती हैं।
सरकार इथेनॉल पर किसानों को कैसे फायदा होने का दावा करती है
केंद्र सरकार का कहना है कि जब इथेनॉल बनाने के लिए गन्ना मिलों को ज्यादा चीनी चाहिए, तो वे किसानों से तेजी से गन्ना खरीदती हैं। इससे किसानों को अपना बकाया जल्द मिलता है, जो कई सालों से एक बड़ी समस्या रही है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, गन्ना किसानों का पैसा पिछले कुछ सालों में जल्दी मिल रहा है।
कृषक समुदाय का क्या कहना है इथेनॉल से मिलने वाले लाभ पर
गन्ना किसान जरूर मानते हैं कि मिलों से भुगतान की रफ्तार कुछ तेज हुई है, लेकिन उनकी कुल कमाई में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है। कई किसान कहते हैं कि उन्हें इथेनॉल उत्पादन से कोई अलग या अतिरिक्त लाभ नहीं मिला। गन्ने का दाम पहले जैसा ही है, ना इसके दाम में बढ़ोत्तरी हुई और ना ही कोई अतिरिक्त बोनस मिला।
मक्का किसानों की स्थिति और इथेनॉल इंडस्ट्री
सरकार ने मक्का से भी इथेनॉल उत्पादन की बात कही है, जिससे किसान उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें भी अच्छा मूल्य मिलेगा। मगर अभी मक्का किसान शिकायत कर रहे हैं कि बाजार में मांग बढ़ने के बावजूद उन्हें औने-पौने दाम ही मिल रहे हैं। मक्का की सरकारी खरीद कम है और व्यापारियों के भरोसे किसान फसल बेचने को मजबूर हैं।
फाइल फोटो : मक्का और एथेनॉल मार्किट प्राइस
गन्ने का पैसा जल्दी, लेकिन मुनाफा अब भी कम
इथेनॉल की वजह से जरूर गन्ने के भुगतान में कुछ हद तक तेजी आई है, लेकिन किसान कहते हैं कि जब तक गन्ने और मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं बढ़ेगा, तब तक उनकी जेब में ज्यादा पैसा नहीं पहुंचेगा। लागत लगातार बढ़ रही है, और कई बार मिलें नियमों की अनदेखी भी करती हैं। असल फायदा तभी दिखेगा जब सरकारी नीतियों में जमीनी बदलाव आएंगे।
इथेनॉल पर समर्थन और विरोध दोनों आवाजें क्यों उठ रही हैं
एक ओर, इथेनॉल को हरित ईंधन के रूप में देखा जा रहा है और पेट्रोल में मिलाकर प्रदूषण कम करने पर ज़ोर दिया जा रहा है। पर दूसरी तरफ, किसान वर्ग का मानना है कि केवल भुगतान जल्दी मिलने से उनकी आय में कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं आएगा। किसान तब संतुष्ट होंगे जब गन्ने और मक्का की सही कीमत मिलेगी और खरीद में पारदर्शिता रहेगी।
इथेनॉल उत्पादन को लेकर किसानों की आगे की उम्मीदें
इथेनॉल इंडस्ट्री से किसानों को अब भी कई उम्मीदें हैं। किसान चाहते हैं कि सरकार गन्ने और मक्का के दाम बढ़ाए, जिससे उन्हें और लाभ मिल सके। साथ ही, वे यह भी कहते हैं कि मिलों की मनमानी पर सरकार सख़्ती बरते, ताकि इथेनॉल का असली फायदा किसानों तक पहुंचे। खरीदी से लेकर भुगतान तक हर प्रक्रिया पारदर्शी हो, यही किसानों की इच्छा है।
फाइल फोटो : एथेनॉल प्राइस
सरकारी योजनाओं से किसानों को राहत कब और कैसे मिलेगी
सरकार अगर चाहती है कि इथेनॉल योजना वाकई किसानों के लिए लाभकारी साबित हो, तो जरुरी है कि गन्ने और मक्का दोनों फसलों का दाम समय-समय पर बढ़ाया जाए। साथ ही, मिल मालिकों को आदेशित किया जाए कि वे किसी भी किसान का बकाया समय पर ही चुकाएं। किसानों को उचित तकनीकी सहायता और बाजार से जोड़ा जाए।
इथेनॉल की वजह से गांवों में क्या बदल रहा है
इथेनॉल गांवों की तस्वीर बदल सकता है, अगर सही तरीके से नीतियाँ लागू हों। भुगतान समय से मिले, तो किसान अपनी अगली फसल के लिए जल्दी तैयारी कर सकते हैं। इससे उनकी आर्थिक हालत बेहतर हो सकती है, लेकिन केवल इथेनॉल के भरोसे गांव और किसान की किस्मत नहीं बदली जा सकती।
नाम है सौरभ झा, रिपोर्टर हूँ GCShorts.com में। इंडिया की राजनीति, आम लोगों के झमेले, टेक या बिज़नेस सब पर नजर रहती है मेरी। मेरा स्टाइल? फटाफट, सटीक अपडेट्स, सिंपल एक्सप्लेनर्स और फैक्ट-चेक में पूरा भरोसा। आप तक खबर पहुंचे, वो भी बिना घुमा-फिरा के, यही मकसद है।